अभिसमय की परिभाषा। ब्रिटिश शासन पद्धति के प्रमुख अभिसमयों का वर्णन।

अभिसमय से तात्पर्य – विश्व के प्रत्येक संविधान में उसके लिखित अंश के अतिरिक्त कुछ ऐसी अलिखित परम्पराओं का विकास भी हो जाता है जिसका आवश्यक रूप से पालन किया जाता है। ब्रिटिश संविधान में ऐसी बहुत सी बाते हैं, जो शासन व्यवस्था के संचालन में कभी औपचारिक रूप से तय नहीं हुई कहीं लिखी भी नहीं गई, फिर भी उनका पालन होता है। यह संविधान के अभिसमय है और ब्रिटिश संविधान की शान भी है। डायसी ने इन्हें “सांविधानिक अभिसमयों” की संज्ञा दी हैं। निःसन्देह सांविधानिक अभिसमय ब्रिटिश शासनतन्त्र को चलाने के लिये आवश्यक है। जान स्टुअर्ट मिल ने इन्हें “संविधान के अलिखित नियम” तथा “देश की रचनात्मक राजनीतिक नैतिकता” कहा है।

अखिल भारतीय कांग्रेस (1907) में ‘सूरत की फूट’ के कारणों एवं परिस्थितियों का विवरण।

हरमन फाइनर ने अभिसमय का विवेचन करते हुए कहा है “अभिसमय राजनीतिक व्यवहार के वे नियम हैं, जिनकी स्थापना परिनियमों, न्यायिक निर्णयों या संसदीय परम्पराओं के अन्तर्गत नहीं, बल्कि इनसे पृथक उनके पूरक के रूप में और उनसे भिन्न लक्ष्यों की पूर्ति के लिये होती है।” आँग के शब्दों में “अभिसयम उन समझौतों, आदतों या प्रथाओं से मिलकर बनते हैं जो राजनीतिक नैतिकता के नियम मात्र होने पर भी बड़ी से बड़ी सार्वजनिक सत्ताओं के दिन-प्रतिदिन के सम्बन्धों और गतिविधियों के अधिकतर भाग का संचालन करते हैं।” ये अभिसमय प्रत्येक देश में अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप स्वयं विकसित होने लगते हैं फिर वे संविधान के अलिखित अंश बन जाते हैं और इनका भी पालन होने लगता है। परन्तु वे कानून नहीं होते हैं।

महत्वपूर्ण अभिसमय

ब्रिटेन का संविधान अभिसमयों के ही ताने-बाने पर बना हुआ है। संविधान का रूप इन्हीं अभिसमयों के द्वारा सँवारा गया है। कुछ अभिसमयों का पालन शासन संचालन में सुविधा की दृष्टि से किया जाता है। कुछ अभिसमय सरकार और संसदीय कार्यवाही का निर्धारण करते हैं और उनका उद्देश्य सरकार, जनमत अथवा निर्वाचक मण्डल के निर्णय के बीच समन्वय स्थापित करना होता है। कुछ अन्य अभिसमय साधारण प्रकार के ऐसे समझौते होते हैं जो किसी संस्था विशेष की कार्य प्रणाली को सुगम बनाते हैं। अध्ययन की सरलता की दृष्टि से इन्हें निम्नलिखित चार वर्गों में बाँटा जा सकता है-

उदारवादी काँग्रेस का प्रमुख अधिवेशन Major Sessions of the Liberal Congress

  1. राजा से सम्बन्धित अभिसमय।
  2. संसद से सम्बन्धित अभिसमय।
  3. मन्त्रिमण्डल से सम्बन्धित अभिसमय
  4. राष्ट्रमण्डल से सम्बन्धित अभिसयम।

1.राजा से सम्बन्धित अभिसमय।

  1. राजा प्रतिवर्ष संसद का सत्र बुलाता है।
  2. राजा अपने मन्त्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य करता है।
  3. संसद में बहुमत प्राप्त दल के नेता को राजा प्रधानमन्त्री पद के लिये आमंत्रित करता है। किसी भी दल का स्पष्ट बहुमत न होने पर राजा स्वविवेक से कार्य कर सकता है।
  4. राजा मन्त्रिमण्डल की बैठकों में भाग नहीं लेता।
  5. राजा संसद का एक वर्ष में एक अधिवेशन अवश्य बुलाता है।
  6. प्रधानमन्त्री के परामर्श पर राजा लोकसभा को विघटित कर देता है।
  7. संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर राजा को अपनी स्वीकृति देनी होती है।
  8. राजा कोई गलती नहीं करता।

2.संसद से सम्बन्धित अभिसमय-

  1. संसद का वर्ष में कम से कम एक अधिवेशन अवश्य होनी चाहिये।
  2. कॉमन सभा किसी विधेयक पर तभा विचार करे जब राजा की तत्सम्बन्धी सिफारिश प्राप्त हो ।
  3. कॉमन सभा का अध्यक्ष दलगत राजनीति में भाग नहीं लेता। आम चुनाव में उनका विरोध नहीं किया जाता। वह जब तक चाहे कॉमन सभा का अध्यक्ष रह सकता है।
  4. लार्ड सभा जिस समय न्यायालय का कार्य करती है उस समय कानूनी लॉर्ड्स ही उसमें भाग लेते हैं।
  5. कॉमन सभा अनुदान की माँग में कमी कर सकती है। वह चाहे तो उसे अस्वीकार भी कर सकती है।
  6. प्रत्येक विधेयक पर तीन बार वाचन होता है।
  7. यदि कॉमन सभा में किसी विधेयक पर समान मत प्राप्त हो तो स्पीकर अपना निर्णायक मत देता है।
  8. एक भाषण शासक दल और उसके बाद एक भाषण विपक्षी दल की ओर से होता है।
  9. विपक्षी दल का अपना एक छाया मन्त्रिमण्डल होता है।

1885-1905 ई. के मध्य उदारवादियों के कार्यक्रम एवं कार्य पद्धति की विवेचना।

3.मन्त्रिमण्डल से सम्बन्धित अभिसमय-

  1. बहुमत दल का नेता प्रधानमन्त्री बनता है। प्रधानमन्त्री अपने दल के सदस्यों में से मन्त्रिमण्डल का गठन करता है।
  2. प्रधानमन्त्री कॉमन सभा का सदस्य होना चाहिये लार्ड सभा का नहीं।
  3. मन्त्रिमण्डल सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त पर कार्य करता है। किसी भी मन्त्री के विरुद्ध कॉमन सभा में अविश्वास का प्रस्ताव पास होने पर सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल को त्यागपत्र देना पड़ता है।
  4. मन्त्रिमण्डल की कार्यवाही और निर्णय गुप्त रखे जाते हैं।

4.राष्ट्रमण्डल से सम्बन्धित अभिसमय-

  1. राष्ट्रमण्डल के सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन सम्राट या रानी करेंगे।
  2. राष्ट्रमण्डल सम्बन्धी विषयों पर सम्राट अपने राष्ट्रमण्डलीय मन्त्री के परामर्श के अनुसार कार्य करेगा।
  3. किसी भी उपनिवेश के सम्बन्ध में संसद तभी कानून बनाएगी, जब उपनिवेश की ओर से कोई लिखित प्रार्थना प्राप्त हो।

इस प्रकार ब्रिटेन के संविधान को गतिशील बनाने वाले और भी अनेक अभिसमय है। अभिसमयों के उपर्युक्त वर्गीकरण और संकलन में केवल कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण अभिसमयों का ही उल्लेख किया गया है।

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