अरब आक्रमण का भारत पर पड़े प्रभावों का मूल्यांकन कीजिए।

अरब आक्रमण से भारत पर पड़े प्रभावों का मूल्यांकन

सिन्ध पर अरब शासन के प्रभाव की समीक्षा एवं मूल्यांकन विभिन्न रूपों में हुआ है। स्टैनले लेनपूल मानते हैं कि यह एक महत्वहीन घटना थी जिसका कोई दूरगामी परिणाम प्रस्तुत नहीं हुआ जबकि हैवेल के अनुसार यह एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुआ जिसके फलस्वरूप अरबों ने भारतीयों से विभिन्न विज्ञान सीखे और बौद्धिक जानकारियां हासिल की। मैकलीन नामक विद्वान ने इस घटना को सिन्ध के आर्थिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना है। ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि सिन्ध में अरबों द्वारा निर्मित एवं संचालित प्रशासनिक-नीतियों ने आगे चलकर मध्यकालीन भारत के तुर्क-अफगान एवं मुगल शासकों को भी प्रभावित किया।

सिन्ध में अरब शासक के बारे में विद्वानों का प्रारंम्भिक दृष्टिकोण यह था कि इसका कोई व्यापक या दूरगामी प्रभाव नहीं पड़ा, किन्तु इस राय का कारण यह था कि सिन्ध पर अरब शासन के अनेक स्रोत इस घटना का कोई विस्तृत विवरण नहीं देते हैं। इस सम्बन्ध में हमारी जानकारी मुख्यतः अरब यात्रियों द्वारा प्राप्त होती है जैसे अल-मसूदी एवं अल-बिताजूरी से अल-बिलाजूरी से प्राप्त जानकारियों को और अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। उसी काल की एक कृति, जिसका बादमें फारसी में अनुवाद हुआ, “चचनामा’ है जो अत्यन्त मूल्यवान तथ्यों का स्रोत है। इन सभी विवरणों का सावधानी से किया गया अध्ययन अनेक दिलचस्प एवं महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध कराता है।

राजनीतिक प्रभाव-

राजनीतिक रूप से अरब शासकों ने कोई खास प्रभाव नहीं डाला। उनका शासकीय नियन्त्रण भी एक छोटे से क्षेत्र तक सीमित रहा और स्थानीय भूपतियों के कुलीनवर्ग का नियन्त्रण ग्रामीण इलाकों पर बना रहा। भारत का राजनीतिक जीवन, कुल मिलाकर सिन्ध में अरबों की मौजूदगी से अप्रभावित रहा किन्तु अरबों द्वारा संचालित प्रशासनिक नीतियों ने जिस शासकीय प्रतिमान की स्थापना की उसे परवर्ती मध्यकालीन भारतीय शासकों ने भी अपनाया। सशक्त प्रशासनिक नियन्त्रण के लिए ब्राह्मण कुलीन वर्ग का समर्थन, जिजया का क्रियान्वयन तथा स्थानीय जन समुदायों की सुरक्षा, शहरी केन्द्रों के आस-पास के विस्तृत भू-भागों का नियइत्यादि ऐसे कार्य थे जिन्हें उद्दों बदल के साथ बाद वाले शासकों ने भी अपनाया।

विजित क्षेत्रों में अरबों ने कुछ नए राज्य संगठित किए जिनमें मंसूरा (आधुनिक कराची) महफूजा (आधुनिक हैदराबाद, सिन्ध) और मुल्तान प्रमुख थे। कालान्तर में मंसूरा और महफूजा के राज्य एक हो गए और सिन्ध और मुल्तान अरब शासन के दो केन्द्र बन गए। भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य राज्यों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा और भारत का राजनैतिक जीवन पूर्ववत् ही बना रहा। सिन्ध में अरबों द्वारा स्थापित शासन-प्रणाली का प्रभाव आगे चलकर तुर्क अफगान शासकों की कुछ प्रशासनिक नीतियों पर देखा जा सकता है जैसे स्थानीय प्रजा के महत्वपूर्ण वर्गों के सहयोग की पशप्ति, नगरीय क्षेत्रों से प्रशासनिक नियन्त्रण, गैर-मुस्लिम प्रजा की स्थिति निर्धारित करने के नियम आदि। अतः परोक्ष ढंग से अरबों की शासन व्यवस्था के प्रशासनिक परिणाम महत्वपूर्ण कहे जा सकते हैं।

आर्थिक जीवन पर प्रभाव-

आर्थिक और सामाजिक जीवन को अरबों ने प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया। उन्होंने सिन्ध में कृषि, उत्पादन और व्यापार एवं वाणिज्य को प्रोत्साहन दिया। मरुभूमि क्षेत्र में कृषि का विकास करने और खजूर की खेती को बढ़ावा देने में अरबों का योगदान निर्णायक रहा। ऊँट पालने में उन्होंने उन्नत तरीके प्रचलित किए और अच्छी नस्ल के अँट स्थानीय तौर पर उपलब्ध होने लगे चर्म शिल्प में उन्होंने प्रगति लाई। नर्म और चिकने चमड़े का उत्पादन होने लगा और इससे बने चमड़े के सामान अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में महंगे दामों पर बिकने लगे। सिन्ध क्षेत्र पर अधिकार होने के पश्चात् अरबों का भारतीय नगरों से व्यापार और भी सम्पन्न बना। अरब व्यापारियों की बस्तियों पूर्वी तट पर भी स्थापित हुई और दक्षिण-पूर्वी एशिया के साथ उनका व्यापार अधिक सम्पन्न हुआ। चीन के साथ भी समुद्र मार्ग से व्यापार की उन्नति हुई।

नगरीय जीवन का विकास-

अरबों ने नगरीय जीवन को विकसित आधार दिया। व्यापारियों की सुविधा के लिए उन्होंने कारवां-सराय आदि का निर्माण कराया मस्जिदें बनवाई, व्यापार और वाणिज्य से सम्बद्ध यातायात की सुविधाएँ विकसित कीं। धीरे-धीरे इस क्षेत्र के व्यापार पर बौद्ध व्यापारियों का नियन्त्रण समाप्त हो गया और अरब व्यापारियों का अधिकार स्थापित हो गया। ग्रामीण जीवन पर अरब शासन का विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।

सामाजिक जीवन पर प्रभाव

सामाजिक जीवन पर भी अरब शासन का प्रभाव पड़ा। अरबों ने स्थानीय महिलाओं के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। अरबी भाषा का प्रचलन हुआ। संस्कृत के अतिरिक्त स्थानीय भाषा में अरबों ने अभिरूचि ली। 886 ई. में पहली बार सिन्धी भाषा में कुरान का अनुवाद हुआ। धीरे-धीरे धर्म परिवर्तन के माध्यम से इस्लाम का प्रसार हुआ। स्मरणीय है कि इस्लाम का प्रसार एकाएक नहीं हुआ बल्कि एक लम्बे समय में धीरे-धीरे शान्तिपूर्ण ढंग से हुआ। इसका प्रभाव नगरीय क्षेत्रों में अधिक हुआ जहाँ बौद्ध धर्मावलम्बी अधिक संख्या में थे। कालान्तर में बौद्ध-धर्म सिन्ध में वस्तुतः लुप्त हो गया। हिन्दू धर्म का अस्तित्व ग्रामीण क्षेत्रों में बना रहा। अरबों ने स्थानीय परम्पराओं और रीति-रिवाजों को अपनाया और इस तरह सामाजिक जीवन में समन्वय आरम्भ हुआ।

सांस्कृतिक समन्वय-

अरबों के शासन और सम्पर्क का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव सांस्कृतिक जीवन पर पड़ा। अरबों के शासन का योगदान उस समस्त क्षेत्र में पड़ा जो जल्द ही मुस्लिम बहुल जनसंख्या का निवास स्थल बन गया। यहाँ आकर बसने वाले अरबों ने स्थानीय स्त्रियों से विवाह किये।सिन्धी भाषा ने भी अरबी भाषा के प्रभाव को आत्मसात कर लिया। सिन्धी भाषा लेखन में अरबी लिपि का प्रयोग होने लगा एवं इसके शब्दकोष में अरब मूल से विकसित अनेकों शब्द आ गये।

बौद्धिक स्तर पर हुई अन्तःक्रिया के बढ़े अच्छे परिणाम निकले। यह अन्तःक्रिया निरन्तर चलती रही तथा अब्बासी खलीफाओं के काल में चरमोत्कर्ष तक आ पहुँची। संस्कृत में लिखे ज्योतिष, खगोलशास्त्र चिकित्सा, दर्शनशास्त्र एवं साहित्य के अन्यों का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ। इन अनुवादित पुस्तकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी, सूर्य सिद्धान्त, पंचसिद्धान्तिक एवं चरक तथा सुश्रुत की संहिताएं साग्य खण्डिका तथा पंचतंत्र की कहानियाँ कई भारतीय विद्वानों एवं चिकित्सकों को अब्बासी शासकों के बगदाद स्थित राजदरबार में निमंत्रित किया गया, विशेषकर अल-मंसूर (753-74) एवं हारून- अल रशीद (786-809) जैसे खलीफाओं के दरबार में खलीफा अल-मामून ने बैत-उल हिक्मा (विद्यापीठ) की स्थापना की जहाँ विभिन्न भाषाओं में लिखी गयी पुस्तकों का अरबी में अनुवाद किया जाता था। इस कार्य के लिए अनेक भारतीय विद्वानों को बुलाया गया। प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट शासकों ने खलीफा के दरबार से उस समय भी अपना सम्पक्र बनाए रखा, जिस समय सिन्ध से अरब शासन समाप्त हो चुका था।

इस सम्पूर्ण काल के दौरान, अनेक अरब-प्रमणकर्ता भारत भ्रमण हेतु आते रहे। उनमें से दो, मुलेमान एवं अल-मसूदी ने नवीं शताब्दी के पूवार्द्ध और उत्तरार्द्ध में क्रमशः भारत भ्रमण किया और विस्तार से अपना यात्रा विवरण लिखा सिन्धी मुस्लिम विद्वानों ने भी अति महत्वपूर्ण योगदान किये विशेषकर इस्लाम में हदीस एवं फिकह के अध्ययन में।

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इस प्रकार, सिन्ध पर अरबों के शासन के कारण अत्यन्त महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव उत्पन्न हुए जिनसे जीवन के विभिन्न आयामों को यथेष्ट समृद्धि मिली। इस्लाम के साथ भारत का पहला प्रत्यक्ष सम्पक्र बना। इन दोनों महान सभ्यताओं के बीच प्रारम्भिक सम्बन्धों के फलस्वरूप उस मिश्रित संस्कृति के विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई, जिस संस्कृति को हम भारत के मध्ययुगीन पटल पर इतने स्वथ्य और सकारात्मक रूप में क्रियाशील पाते हैं।

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