क्षेत्रीय दृष्टिकोण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख विषयों का उल्लेख कीजिए।

भारतीय समाज में क्षेत्रीय दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए-समाजशास्त्र में पाठ्कीय दृष्टिकोण की भांति क्षेत्रीय दृष्टिकोण की भी उपादेयता है। पाठ्कीय दृष्टिकोण में जहाँ विद्वानों को लिखित जानकारियां मिलती हैं, वहीं क्षेत्रीय दृष्टिकोण में विद्वानों को क्षेत्र विशेष में जाकर सर्वेक्षण करके जानकारियां प्राप्त करनी पड़ती हैं। इस प्रकार क्षेत्रीय दृष्टिकोण वह दृष्टिकोण है जिसके अंतर्गत किसी क्षेत्र विशेष का अध्ययन वर्तमान में वहाँ जाकर किया जाता है। इस प्रकार विशेष में हो रहे परिवर्तनों एवं समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

भारतीय समाज में शास्त्रीय दृष्टिकोण का वर्णन कीजिए।

भारत में क्षेत्रीय अध्ययन के विषय

पिछले 50 वर्षों से भारत में वैज्ञानिक पद्धति से क्षेत्रीय अध्ययन किया जा रहा है। सर्वप्रथम प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति ने भारतीय ग्रामों में व्याप्त गरीबी, गंदगी और विघटन को हमारे सामने रखा। ग्रामीण असन्तोष की आवाज सरकार के कानों तथा नगरीय लोगों तक पहुँची। इन परिस्थितियों के फलस्वरूप भारत में क्षेत्रीय अध्ययन प्रारम्भ हुए, विभिन्न विषयों पर तथ्य और आँकड़े संकलित किये गये। धीरे-धीरे क्षेत्रीय अध्ययनों की ओर लोगों का झुकाव बढ़ता गया। सन् 1950 में भारत सरकार ने नेशनल सैम्पल सर्वे (National Sample Survey) नामक संस्था की स्थापना की। भारत में सन् 1920 से 1950 तक जो अध्ययन किये गये, वे अधिकांशतः अर्थिक पक्षों से सम्बन्धित थे। सन् 1950 के दशक में डॉ० मजूमदार के नेतृत्व में क्षेत्रीय अध्ययन प्रारम्भ हुए। सन् 1955 का वर्ष भारत में मानवशास्त्रीय एवं समाजशास्त्रीय अध्ययनों की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस वर्ष पहली बार भारतीय ग्रामों पर चार पुस्तकों एवं अनेक पत्रों का प्रकाशन हुआ यथा (1) डॉ० एल०सी० दुबे की ‘इण्डियन विलेज’, (2) मजूमदार द्वारा सम्पादित रूरल प्रोफाइल’, (3) मैरियट द्वारा सम्पादित ‘विलेज इण्डिया’, (4) एम०एन० श्रीनिवास द्वारा सम्पादित ‘इण्डियन विलेजज’ इन पुस्तकों में भारत में किये गये अध्ययनों के प्रमुख विषयों पर प्रकाश डाला गया है जिसका विवरण निम्नलिखित है-

भारतीय राष्ट्रीयता के विकास के कारणों की विवेचना कीजिये

(1) भारत में प्रारम्भिक क्षेत्रीय अध्ययन अर्थशास्त्रियों द्वारा किया गया, प्रमुख ध्येय ग्रामीण अर्थव्यवस्था, भू-स्वामित्व, आदिम साम्यवाद, निवास के प्रतिमान, आदि को ज्ञात करना। था। इनमें हेनरीमेन, पावेल, अल्टेकर, मार्क्स, मुखर्जी आदि के अध्ययन मुख्य हैं। बाद के अध्ययन जो समाजशास्त्रियों और मानवशास्त्रियों द्वारा किये गये हैं उनमें ग्रामीण सामाजिक संरचना और स्तरीकरण पर भी अनेक अध्ययन हुए हैं। स्तरीकरण के अन्तर्गत गाँवों में पायी जाने वाली वर्ग व्यवस्था और जाति व्यवस्था के अध्ययन किये गये। जाति पंचायत, प्रभु जाति, जजमानी प्रथा, जाति में होने वाले परिवर्तन और नवीन आयामों से सम्बन्धित अध्ययन करने वालों में श्रीनिवास योगेन्द्र सिंह, आन्द्रे बिताई, धुरिये मुखर्जी, बेली, मेयर, पोकॉक, वाइजर, लेविस आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का वर्णन कीजिये

(2) अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययन ग्रामीण राजनीतिक व्यवस्था (Rural Political System) तक ही सीमित रखे। उन्होंने ग्रामीण शक्ति संरचना, मतदाता व्यवहार, नेतृत्व और गुटों का अध्ययन किया है।

(3) गाँव में होने वाले परिवर्तनों का भी अनेक विद्वानों ने अध्ययन किया है। उन्होंने • भूमि सुधार आन्दोलन, जर्मीदारी उन्मूलन, सामुदायिक विकास योजना और पंचायती राज, नगरीकरण, शिक्षा, यातायात आदि के प्रभाव और उनसे जनित ग्रामीण परिवर्तनों का अध्ययन

(4) कुछ ऐसे भी अध्ययन हुए हैं जो ग्रामीण विवाह और नातेदारी से सम्बन्धित हैं। इन अध्ययनों में परिवार, विवाह व नातेदारी की प्रकृति और उनमें वर्तमान में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख किया गया है।

(5) भारतीय सामाजिक जीवन से सम्बन्धित अनेक अवधारणाओं जैसे- संस्कृतिकरण, सार्वभौमिकरण, लघु समुदाय, कृषक समाज, पश्चिमीकरण, लौकिकीकरण आदि का परीक्षण करने एवं उनकी उपादेयता का अध्ययन करने के लिये भी अनेक अध्ययन हुए हैं।

(6) इसके अतिरिक्त हरित क्रांति, भूदान, ग्रामदान, सर्वोदय, ग्रामीण पुनर्निर्माण, कृषि एवं ग्रामीण समस्या आदि विषय वस्तुओं पर भी क्षेत्रीय अध्ययन किये गये।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top