गैर सरकारी संगठनों द्वारा संचालित शिक्षा के क्षेत्र में एकलव्य व एम. बी. फाउण्डेशन के शैक्षिक योगदानों की विवेचना कीजिए।

गैर सरकारी संगठनों की पहल

पिछले कुछ वर्षों से गैर सरकारी व स्वयं सेवी संगठन (Non-Governemental Organizations) सबके लिए शिक्षा (EFA) के लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में गैर सरकारी संगठनों ने प्रशंसनीय कार्य किया है। उनके अनेक पथप्रदर्शक पहल (Initatives) ने शिक्षा के नए शिक्षाशास्त्रीय मण्डलों (Pedaguagic Modes) शिक्षक प्रशिक्षण (Teachers training) तथा शैक्षिक प्रबन्धन (Eduational administration) तथा अन्य ऐसी ही क्रियाओं की ओर सरकार और शिक्षाशास्त्रियों का ध्यान आकर्षित किया है। ये संस्थाएँ आगे बढ़कर स्कूली शिक्षा में सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ाने तथा परामर्शदाता की निर्णायक भूमिका निभाने का प्रयास कर रही हैं। इनमें से कुछ संस्थाएं अग्र प्रकार हैं

1. एकलव्य (मध्य प्रदेश ) (Akllavya Madhya Pradesh)-

एकलव्य एक गैर सरकारी संस्था (NGO) है जो मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के ‘होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम’ से उत्पन्न हुई है। यह संस्थान करीब 25 वर्षों से प्राथमिक शिक्षा के कार्यों में लगी है। इस संस्थान ने प्राथमिक कक्षाओं (1 से 5) के लिए नए प्रकार की शिक्षण-अधिगम सामग्रियों (TLMs) के पैकेज विकसित किए हैं जिससे कक्षा शिक्षण में सुधार हो सके। यह संस्था ग्रामीण प्राथमिक स्कूलों के साथ मिलकर कार्य कर रही है। इस संस्था के निष्कर्षो के आधार पर नए स्वरूप वाली पाठ्य पुस्तकें, शिक्षण सामग्री, कक्षा की गतिविधियों तथा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाए गए हैं। इनकी सामग्री ग्रामीण बालकों के अनुभवों पर आधारित है। शिक्षक भी प्रायः स्थानीय भाषा का प्रयोग करते हैं, इससे बच्चे उनके साथ घुल-मिलकर कक्षा गतिविधियों में भाग लेते हैं। एकलव्य के पैकेज में एक ऐसी सक्रिय कक्षा (Active class) की अवधारणा है, जहाँ आत्मविश्वास से भरे, सजग बच्चे अपने कार्यों में रुचि लेते हैं।

एकलव्य के कार्यक्रम में अन्तर्क्रिया और प्रयोगों का सिलसिला चलता रहता है। एकलव्य शिक्षक समाख्या और मध्य प्रदेश राज्य शैक्षिक अनुसन्धान और प्राशिक्षण परिषद् (SCERT) ने परस्पर सहयोग से प्राथमिक स्कूलों में गुणवत्ता सुधार के लिए पैकेज (सर्वांग सम्पूर्ण) तैयार किया जिसे पहले 16 जिलों और फिर पूरे राज्य में लागू किया गया है। इस प्रक्रिया में वे अधिकांश सिद्धान्त जिन पर एकलव्य के कार्यक्रम आधारित थे, पाठ्यक्रम विकास की प्रक्रिया (Process of Curriculum development) के अभिन्न अंग बन गए हैं इसके कार्यक्रमों में 5000 से भी अधिक शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों तथा प्रशासकों ने भाग लिया है।

2. एम. बी. फाउण्डेशन, आन्ध्र प्रदेश (M.V. Foundation, Andhra Pradesh)

एम. बी. फाउण्डेशन हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश) के निकट शंकरा पल्ली मण्डल के पास सन् 1987 में प्रारम्भ हुआ। शंकरापल्ली मण्डल लगभग 30 गाँवों का एक समूह है। यहाँ के गरीब परिवारों के बहुत थोड़े बच्चे कभी स्कूल पहुंचे होंगे। रोजी रोटी कमाने के लिए अधिकतर बच्चे खेतों में अपना माता-पिता का हाथ बँटाने थे, अनेक बच्चे अन्य दूसरे धन्धों में लगे थे। लड़कियों के समूह ‘कनकाम्बरम’ के बगीचों में नारंगी फूल बीनकर माला बनाते थे। बड़े फार्मों में अनेक छोटे बच्चे बन्धुआ मजदूर के रूप में काम करते थे। इन बच्चों ने स्कूल का स्वप्न नहीं। देखा था।

एम. वी. फाउण्डेशन सन् 1987 में इस स्वप्न को साकार करने में जुटा हुआ है। एम. बी. फाउण्डेशन केवल औपचारिकेतर शिक्षा प्रणाली (NPE) में थोड़ा फेरबदल करने में विश्वास नहीं करता, जहाँ स्कूलों का समय मजदूर बच्चों की सुविधानुसार निश्चित किया जाता है। इसके विपरीत यह बाल श्रमिकों की जंजीरे तोड़ने में आस्था रखता है। इनका विचार है कि यदि बाल श्रम (Child Labour) को समाप्त करना है तो बच्चों को स्कूल वापस भेजना होगा। एम वी फाउण्डेशन ने अलग-अलग आयु वर्ग के बच्चों के लिए अलग-अलग नीतियाँ और कार्यक्रम बनाए हैं, जैसे क

5-8 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे, जो बेकार घूमते हैं, थोड़ा बहुत माँ-बाप की सहायता करते। हैं ऐसे बच्चों को थोड़ा तैयार कर औपचारिक शिक्षा में प्रवेश दिलाया जाता है। इसके लिए माँ बाप को राजी किया जाता है कि ये बच्चे प्रवेश पा सके।

9-14 वर्ष आयु के बच्चे पक्के बाल श्रमिक बन जाते हैं और इनकी समस्या अधिक जटिल बन जाती हैं ये बच्चे माँ बाप के लिए आय का स्रोत बन जाते हैं। ऐसे बच्चे के लिए, फाउण्डेशन ने औपचारिकेतर शिक्षा की रणनीति अपनाई, लेकिन ऐसे केन्द्र बच्चों को आकर्षित न कर सके, अतः ऐसे केन्द्रों को रचनात्मक केन्द्रों (Creastive Centres) के रूप में विकसित किया गया है। जहाँ नन्हें मजदूर आराम कर सकते हैं। ये केन्द्र धीरे-धीरे उत्प्रेरणा केन्द्र (Catalyst Cenres) बन गये हैं जहाँ ऐसे बाल श्रमिकों के लिए ग्रीष्म शिविर (Sumer Camps) लगाए जाते हैं। बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग ग्रीष्म शिविर लगाये जाते हैं, जिनकी अवधि 3 से 9 माह तक की होती है। इन शिविरों में औपचारिक स्कूलों में प्रवेश की दृष्टि से तैयारी करायी जाती है। शिविर की समाप्ति के पश्चात् कुछ बच्चों को कक्षा 3 तथा कुछ को कक्षा 4 व 5 में प्रवेश दिला दिया जाता है।

हर्ष के शासन प्रबन्ध पर एक लेख लिखिए।

एम. बी. फाउण्डेशन ने अपने स्वयं सेवकों के अतिरिक्त प्रतिबद्ध स्थानीय स्वयंसेवकों का भी सहयोग प्राप्त किया है। एम. बी. एफ. स्थानीय संसाधनों का रचनात्मक प्रयोग करता है। इनके स्वयं सेवक वे युवा महिला व पुरुष हैं, जो स्वयं भी स्थानीय वंचित सामाजिक वर्गों के होते है। बेरोजगार व आवारा कहे जाने वाले युवकों की ऊर्जा का उपयोग बच्चों का स्कूल भेजने में, शिविरों के संचालन में, बच्चों के शिक्षण में किया जाता है। जिससे कि स्कूल व्यवस्था सुचारु रूप से चले। ग्रीष्म शिविर बेकार पड़ी सरकारी इमारतों में लगाए जाते हैं। माँ बाप को सामंजस्य बैठाने के लिए राजी किया जाता है, जिससे कि वे काम की जिम्मेदारी का बँटवारा इस प्रकार करें कि बच्चा स्कूल जा सके। फिर भी एम. वी. फाउण्डेशन का अनुभव है कि, “शिक्षा के ‘सार्वजनीकरण’ अभियान’ में सरकारी संस्थानों के उपयोग का कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि गैर सरकारी स्वैच्छिक संस्थाएँ (NGOs) आवश्यक स्तर पर आधारभूत ढाँचा नहीं उपलब्ध करा सकतीं।”

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