जनजातियों की प्रमुख समस्याऐं क्या है?

जनजातियों की समस्याएँ-

जनजातियों की समस्याएँ-भारत की प्रमुख समस्याओं में जनजातीय समस्याओं का उल्लेख सर्वप्रमुख रूप से किया जाता है। भारत की जनजातीय समस्याएँ निम्नलिखित है सामाजिक समस्या

(i) कन्या मूल्य की समस्या- जनजातियों में कन्या-धन को लेकर काफी समस्याएं उत्पन हुई है- जहाँ कुछ समय पूर्व तक जनजातीय लोगों में कन्या-मूल्य वस्तुओं के रूप में चुकाया जाता था, वहाँ मुद्रा अर्थ-व्यवस्था के कारण अब कन्या मूल्य की माँग नकद के रूप में बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरूप जो लोग बढ़ते हुए कन्या- मुल्क को नकद के रूप में नहीं चुका पाते, उनके लिए विवाह करना एक कठिन समस्या हो गया है। यही कारण है कि कुछ जनजातियों में कन्या हरण की समस्या बढ़ती जा रही है।

(ii) बाल विवाह की समस्या- जनजातियों में बाल विवाह का सर्वाधिक प्रचलन हो गया। है। वे अपने बच्चों का विवाह अल्पायु में ही करने लगे हैं। यह जनजातियों में सबसे प्रमुख समस्या है। जनजातीय लोगों में विवाह साधारणतः युवा अवस्था में होते थे, अब उनमें बाल-विवाह होने लगे हैं जो उच्च समझे जाने वाले हिन्दुओं के सम्पर्क का परिणाम है।

(iii) वेश्यावृत्ति एवं यौन रोगों का पनपना- जनजातीय लोगों की निर्धनता का लाभ उटाकर ठेकेदार, साहकार, व्यापारी एवं कुछ अजनजातीय लोग उनकी स्त्रियों के साथ अनुचित यौन सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं जिससे वेश्यावृत्ति, पूर्व- वैवाहिक तथा अतिरिक्त वैवाहिक यौन सम्बन्ध की समस्या इनमें पनपी है। जो जनजातीय लोग औद्योगिक केन्द्रों पर श्रमिकों के रूप में अपने परिवारों को गाँवों में छोड़कर गए हैं, उनमें भी वेश्यावृति एवं यौन रोग पनपे हैं। जब वे गाँवों में जाते हैं तब गुप्त रोग अपनी स्त्रियों में फैला देते हैं।

(iv) शिक्षा व मनोरंजन के केन्द्र- युवागृहों का पतन- युवागृह आदिवासियों में मनोरंजन, सामाजिक प्रशिक्षण, आर्थिक हितों की पूर्ति तथा शिक्षा के प्रमुख साधन रहे हैं। यहाँ बालक-बालिकाओं एवं अविवाहित युवक-युवतियोंको कर्तव्य पालन का पाठ सिखाया जाता रहा है। सभ्य समाज के लोगों ने इन युवागृहाँ को हीनता को दृष्टि से देखा, परिणामस्वरूप जनजातीय लोग भी इनके प्रति पृष्ण का भाव रखने लगे। अब यह संस्था समाप्त हो रही है जिसके फलस्वरूप जनजातियों पर कई हानिकारक प्रभाव पड़ रहे हैं।

आर्थिक समस्याएं

(i) स्थानांतरित खेती से सम्बन्धित समस्या- जनजातीय जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग कृषि कार्यों में लगा हुआ है। कृषि कार्यों में लगी जनजातियों में से कुछ स्थानान्तरित खेती करती है। वे पहले जंगलों में आग लगा देते हैं और फिर उस भूमि पर कृषि कार्य करते हैं। जब कुछ समय बाद वह भूमि योग्य नहीं रहती तो उसे छोड़कर वे किसी अन्य स्थान पर भी इसी प्रकार खेती करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि भूमि का कटाव बढ़ जाता है, जंगलों में कीमती लकड़ी जल जाती है और उपज भी कम होती जाती है। परिणामस्वरूप जनजातीय लोगों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

(ii) ऋणग्रस्तता की समस्या- पहले जनजातियों की अर्थ व्यवस्था में वस्तु-विनिमय प्रचलित था, अब वे मुद्रा अर्थ-व्यवस्था से परिचित हुए। इसका लाभ व्यापारियों, मादक वस्तुओं के विक्रेताओं और सूदखोरों ने उठाया तथा भोले आदिवासियों को खूब ठगा। वे ऋणग्रस्त हो गए और अपनी कृषि भूमि को साहूकारों के हाथों या तो बेच दिया या गिरवी रख दिया।

(iii) नवीन भूमि व्यवस्था एवं कृषि भूमि का अभाव- भूमि सम्बन्धी नवीन व्यवस्था के कारण भूमि पर से जनजातियों का स्वतंत्र अधिकार समाप्त हो गया, अब उन्हें स्थानान्तरित खेती की नए कानूनों के अनुसार आज्ञा नहीं थी। साथ ही वे अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों एवं घने जंगलों में रहते हैं जहाँ कृषि योग्य भूमि का अभाव है।

(iv) कृषि मजदूरों एवं औद्योगिक श्रमिकों की समस्या – जनजातीय लोगों को आर्थिक मजबूरी के कारण कृषि क्षेत्र में, चाय बागानों में एवं औद्योगिक संस्थानों में श्रमिकों के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ा। यहाँ इन्हें मजदूरी इतनी कम दी जाती है कि ये अपनी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते।

सांस्कृतिक समस्याएँ

(i) धार्मिक समस्याएं- कुछ जनजातीय लोगों पर हिन्दू धर्म का प्रभाव पड़ा जैसे भील और गोंड पर तो कुछ पर ईसाई धर्म का प्रभाव पड़ा जैसे आसाम व बिहार की जनजातियाँ पर। परिणामस्वरूप कई जनजातीय लोगों ने धर्म-परिवर्तन भी कर लिया है। धर्म-परिवर्तन के कारण जनजातीय एकता को ठेस पहुँचती है, अब एक ही जनजाति में हिन्दू धर्म, ईसाई धर्म एवं जनजातीय धर्म को मानने वाले लोग -मिल जाएँगे। परिणामस्वरूप उनमें आपस में भेदभाव बढ़े हैं। जहाँ धर्म जनजातीय जीवन से सम्बन्धित अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को सुलझाने का माध्यम था, वहाँ वही अब उनके जीवन में असन्तोष, तनाव एवं विघटन पैदा कर रहा है।

(ii) भाषा सम्बन्धी समस्याएं- बाह्य संस्कृतियों से सम्पर्क के कारण कई जनजातियों में ‘द्विभाषावाद की समस्या उत्पन्न हुई है। एक ही जनजाति के लोग अपनी भाषा के अलावा किसी बाह्य समूह की भाषा भी बोलने लगते हैं। वे लोग जिन पर बाह्य संस्कृति का अधिक प्रभाव होता है वे अपनी स्वयं की भाषा भूलने तक लगते हैं। इससे एक ही जनजाति के लोगों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान में बाधा पड़ती है। इससे एक ओर सामुदायिक भावना कम होने लगती है तथा दूसरी ओर सांस्कृतिक मूल्यों व आदशों में गिरावट आती है, परिणामस्वरूप सामाजिक विघटन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

(4) दुर्गम निवास स्थान- एक समस्या लगभग सभी जनजातियाँ पहाड़ी भागों, जंगलों, दलदल भूमि और ऐसे स्थानों में निवास करती है जहाँ सड़कों का अभाव है। साथ ही वर्तमान यातायात एवं संचार के साधन अभी वहाँ उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि उनसे सम्पर्क करना एक कठिन कार्य हो गया है। यही कारण है कि वैज्ञानिक आविष्कारों के मधुर लाभों से वे अभी तक अधिकांशतः अपरिचित ही हैं और उनकी आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी एवं राजनीतिक समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाया है। वे अन्य संस्कृतियों से भी अपरिचित है। परिणामस्वरूप उनका अपना विशिष्ट जीवन दृष्टिकोण हो है जिसमें व्यापकता का अभाव है।

जनजाति की परिभाषा दीजिये और उसकी प्रमुख विशेषतायें बताये।

अन्य समस्याएँ

(1) शिक्षा सम्बन्धी समस्याएं – जनजातीय लोग अशिक्षित है इसलिए अशिक्षा के कारण वे अनेक अन्धविश्वासों, कुरीतियों एवं कुसंस्कारों से घिरे हुए हैं। आदिवासी लोग आधुनिक शिक्षा के प्रति उदासीन है क्योंकि यह शिक्षा उनके लिए अनुत्पादक है जो लोग आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं, वे अपनी जनजातीय संस्कृति से दूर हो जाते हैं और अपनी मूल संस्कृति को घृणा की दृष्टि से देखने लगते हैं। आज की शिक्षा जीवन निर्वाह का निश्चित साधन प्रदान नहीं करती। अतः शिक्षित व्यक्तियों को बेकारी का सामना करना पड़ता है।

(2) राजनीतिक चेतना की समस्या- जनजातियों की परमपरागत राजनीतिक व्यवस्था अपने ही ढंग की थी जिनमें अधिकांशतः वंशानुगत मुखिया ही प्रशासन सम्बन्धी कार्य करते थे। उनकी सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था में प्रदत्त अधिकारों एवं गातेदारी का विशेष महत्व था, किन्तु आज चे नवीन राजनीतिक व्यवस्था से परिचित हुए हैं। उन्हें भी मताधिकार प्राप्त है। वे अपनी सामाजिक आर्थिक समस्याओं के प्रति सजग है। वे अपने राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग अपनी समस्याओं के समाधान के सन्दर्भ में करने लगे हैं।

(3) एकीकरण की समस्या – भारतीय जनजातियों में अर्थव्यवस्था, समाज व्यवस्था, संस्कृति, धर्म एवं राजनीतिक व्यवस्था के आधार पर अनेक भिन्नताएं पायी जाती हैं। वे देश के अन्य लोगों से पृथक हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि देश में जनजातियों की विशिष्ट समस्याओं से उन्हें मुक्ति दिलाने के लिए सभी देशवासियों द्वारा सामूहिक प्रयास किए जाएं। जनजातियां अपने को अन्य लोगों से पृथक् न समझकर देश की मुख्य जीवन धारा से जोड़े तभी हम गरीबी, शोषण, अज्ञानता, अशिक्षा, बीमारी, बेकारी और खराब स्वास्थ्य की समस्याओं से निपट सकेंगे। इन समस्याओं से निपटने के लिए विभिन्न जन-समूहों का सहयोग एवं राष्ट्रीय जीवन की मुख्य धारा में बहना तथा एकीकरण आवश्यक है। इसके लिए अल्पसंख्यक समूहों को देश की आर्थिक-राजनीतिक अर्थव्यवस्था में भागीदार बनाना होगा और विकास योजनाओं में उन्हें साथ लेकर चलना होगा। इस प्रकार जनजातियों का एकीकरण भी बहुत बड़ी समस्या है।

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