नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जीवन परिचय (निबंध)

प्रस्तावना- शैशवकाल से ही जिसके कोमल मन में विद्रोह की ज्वाला प्रज्वलित हो उठी थी, किशोरावस्था में ही जिसका उर्वर मस्तिष्क विप्लव के झंझावात से दुखी समुद्र की भाँति अशान्त हो उठा था, युवावस्था में ही जिसने समस्त भोग-विलासों एवं नश्वर ऐश्वर्य को त्याग दिया था, ऐसे विद्रोही, विप्लवी एवं त्यागी सुभाषचन्द्र बोस का सम्पूर्ण जीवन विद्रोह तथा वैराग्य का आग्नेयगिरि बना रहा, तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात हो सकती है। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ – ऐसी गर्जना करने वाले भारतमाता के वीर सपूत सुभाष चन्द्र बोस भारतीय राजनीति के क्षितिज पर ध्रुव तारे ही भाँति निश्चल, काल की भाँति निर्भीक एवं हिमालय की भाँति अटल रहे। भारत माता के इस महान सपूत ने सहस्रों भारतीयों को स्वाधीनता की दीपशिखा पर परवानों की भाँति जलना सिखाया।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

जन्म परिचय एवं शिक्षा-

सुभाषचन्द्र बोस का जन्म उड़ीसा राज्य के ‘कटक’ शहर में 23 जनवरी सन् 1897 ई. को हुआ था। आपके पिताजी श्री रायबहादुर जानकी नाथ बोस कटक म्युनिसिपैलिटी तथा जिला बोर्ड के प्रधान थे तथा नगर के एक सुप्रसिद्ध वकील थे। आपके भाई श्री शरतचन्द्र बोस एक महान देशभक्त तथा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। सुभाष चन्द्र की आरम्भिक शिक्षा एक यूरोपियन स्कूल से हुई थी। सन् 1913 में आपने मैट्रिक की परीक्षा में कलकत्ता विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। इसके पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए आपने ‘प्रेजीडेंसी कॉलेज’ कलकत्ता में प्रवेश ले लिया। वहाँ ‘ओटेन’ नाम का अंग्रेज प्रोफेसर सदैव भारतीयों की निन्दा करता था, जो सुभाषचन्द्र से जरा भी सहन नहीं होता था इसीलिए उन्होंने उस अध्यापक की पिटाई कर दी। उस दिन से उसने भारतीयों का अपमान करना तो बन्द कर दिया, परन्तु सुभाष को भी कॉलेज से निलम्बित कर दिया गया। फिर आपने ‘स्कॉटिश चर्च’ कॉलेज में दाखिला लिया तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. आनर्स किया। सन् 1919 में इंग्लैण्ड से आई.सी.एस. की परीक्षा पास करके भारत लौट आए। परन्तु आई.सी.एस. की परीक्षा पास करके भी उन्होंने उसे त्याग दिया क्योंकि वे अंग्रेजों के अधीन रहकर सेवा करना अपने देश का अपमान समझते थे।

शहीद भगतसिंह, जन्म, शिक्षा, देशभक्ति, फाँसी की सजा- सम्पूर्ण जानकारी

देशबन्धु चितरंजनदास का प्रभाव-

सुभाष चन्द्र बोस के जीवन पर देशबन्धु चितरंजन दास का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे उनके द्वारा स्थापित की गई ‘स्वराज पार्टी’ में काम करने लगे तथा उनके द्वारा निकाले गए ‘अग्रगामी’ पत्र का सम्पादन भार ले लिया। ‘प्रिन्स ऑफ वेल्स’ के आगमन पर उन्होंने बंगाल में उनके बहिष्कार आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर वर्मा के मांडले जेल भेज दिया, किन्तु स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें 17 मार्च, 1927 को रिहा कर दिया गया।

राजनीतिक जीवन-

सुभाष चन्द्र बोस भारतीय नेताओं के औपनिवेशिक साम्राज्य की माँग से पूर्णतया सहमत नहीं थे, वे तो पूर्ण स्वतन्त्रता के अभिलाषी थे। अग्रिम वर्ष के कांग्रेस अधिवेशन में यही प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। कांग्रेस में गरम व नरम दो दल थे। सुभाष चन्द्र बोस गरम दल के नेता थे तथा महात्मा गाँधी नरम दल के। वे गाँधी जी के विचारों से सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि केवल सत्य तथा अहिंसा के रास्ते पर चलकर स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं की जा सकती है, वरन् हमें अंग्रेजों से अपने अधिकार पाने के लिए लड़ना पड़ेगा और यदि इसके लिए खून की नदियाँ भी बहानी पड़े, तो कोई गलत कार्य नहीं होगा। परन्तु विचारों में मतभेद होते हुए भी वे गाँधी जी का पूर्ण सम्मान करते थे तथा उनके साथ मिलकर काम करते थे। सन् 1929 ई. के ‘नमक कानून तोड़ो आन्दोलन’ का नेतृत्व सुभाष जी ने ही किया था। सन् 1938 तथा 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुने गए। बाद में नेताजी ने विचार न मिलने के कारण कांग्रेस दल से इस्तीफा दे दिया तथा ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना की, जिसका लक्ष्य ‘पूर्ण स्वराज्य तथा ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ था।

आजाद हिन्द फौज का गठन तथा मृत्यु –

सन् 1940 में ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया, किन्तु जेल में नेता जी ने आमरण अनशन की घोषणा कर दी। तब सरकार ने उन्हें जेल से मुक्त कर घर में ही नजरबन्द कर दिया। एक रात सबकी आँखों में धूल झोंककर एक मौलवी के वेष में आप घर से बाहर निकल आए। वहाँ से वे पहले कलकत्ता तथा फिर पेशावर पहुँच कर पेशावर में सुभाषचन्द्र उत्तमचन्द्र नामक व्यक्ति की मदद से एक गूँगे मुसलमान का वेष धारण कर काबुल पहुँच गए और फिर वहाँ से जर्मनी गए।

अभिसमयों का संविधान में स्थान तथा महत्व बताइये । अथवा कानूनों और अभिसमयों में क्या अन्तर है?

जर्मनी में ही आपने ‘आजाद हिन्द फौज’ की नींव रखी। नेता जी का विचार था कि अहिंसक आन्दोलनों से ब्रिटिश सरकार भारत नहीं छोड़ेगी, अपितु हमें तो उन्हें मारकर भगाना होगा। इसी उद्देश्य से उन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ बनाई थी। उन्होंने नवयुवकों को देश भक्ति के लिए लड़ना सिखाया। परिणामस्वरूप सैकड़ों नवयुवक ने अपने खून से हस्ताक्षर कर एक पत्र नेताजी को दिया। विश्व के 19 राष्ट्रो ने ‘आजाद हिन्द फौज’ को स्वीकार कर लिया। ‘जय हिन्द’ तथा ‘दिल्ली चलो’ नारो से ‘इम्फाल’ तथा ‘अरामान’ की पहाड़ियाँ गूँज उठी। आजाद हिन्द फौज ने जापान की मदद से मलाया तथा वर्मा के अंग्रेजों को मार गिराया तथा पूर्वोत्तर में भारतभूमि पर ‘तिरंगा’ लहरा दिया, किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के कारण आपकी सारी योजनाओं पर पानी फिर गया। 23 अगस्त, 1945 को टोक्यो रेडियो से यह शोक समाचार प्रकाशित हुआ कि नेता जी एक विमान दुर्घटना में मारे गए। किसी को भी नेता जी का शव नहीं प्राप्त हुआ इसलिए किसी ने भी इस बात पर विश्वास नहीं किया। परिणामतः नेता जी की मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है।

उपसंहार- सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र विश्वास तथा सम्मान के साथ ‘नेताजी’ की उपाधि प्राप्त करने वाले सुभाष चन्द्र बोस की देशभक्ति आज भी हम भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत है। आज भी उनके गाए गीत ‘कदम-कदम बढ़ाए जा’ हमारे कानो में गूँज रहे हैं। वे तो अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे, तभी तो सभी उनकी वाणी के आकर्षण में फँस जाते थे तथा उन्हें अपना आदर्श मानते थे।

    Leave a Comment

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Scroll to Top