परिवार का बाल विकास में भूमिका बताइए।

परिवार का बाल विकास में भूमिका

बालक की जन्म परिवार में होता है, इंद्रिय ज्ञान और शारीरिक समताओं का विकास नहीं यहीं से प्रारंभ होता है। मस्तिष्क में भावों का निर्माण तथा संस्कारों का सृजन परिवार से प्रारंभ होता है। अतः परिवार का वातावरण विकास का सबसे बड़ा आधार का कार्य करता है। वातावरण दो चीजों से निर्मित होता है-प्रथम अवसर या सुविधाएँ, द्वितीय आपसी संबंध अवसर या सुविधाएँ अथवा परिस्थितियाँ बाह्य वातावरण के रूप में कार्य करती हैं जबकि परस्पर संबंध आंतरिक वातावरण बनाने का कार्य करता है और इसका प्रभाव दूरगामी होता है। संबंधों से भावों एवं संवेदनाओं के विकास को प्रेरणा मिलती है। संबंधों में जहाँ भी कड़वाहट या निरसता, आयी वहाँ कर्तव्य में विकृतियाँ उत्पन्न होने लगती हैं। समायोजन एवं विकास दोनों प्रभावित होता है।

परिवार ईंटे-गारे से बनी इमारत के बीच रहने वाले लोगों का समूह नहीं है वरन् संबंधों का होना आवश्यक है। जैसा कि मजूमदार कहते हैं-“परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो एक मकान में रहते हैं। उनमें रक्त का संबंध होता है, स्थान और स्वार्थ तथा पारस्परिक कर्तव्य भावना के आधार पर समान होने की चेतना रखते हैं।”

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।

परिवार रक्त या दंत संबंधों से बँधा कर्तव्यों का वह समूह है जो माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन, पति-पत्नी, चाचा-चाची, दादा-दादी, आदि के भावनात्मक संबंधों का निर्वाह करते हैं, उनमें आपस में भावात्मक एकता रहती है। आपस में निःस्वार्थ तथा समण की भावना से एक दूसरे की सहायता करते हैं। सभी सदस्यों में तादात्म स्थापित रहता है। वे एक ही कुल या गृहस्थी का निर्माण करते हैं, उसे परिवार कहते हैं।

वर्तमान समय में पारिवारिक ढाँचा, मूल्य और संबंधों में बदलाव दिखाई दे रहा है जिसके कारण बालकों का विकास अपेक्षित नहीं हो रहा है।

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