(1) 1857 के विद्रोह का प्रभाव– 1857 के विद्रोह की असफलता तथा अंग्रेजों द्वारा की गयी बर्बर, पाशविक हत्यायें भारतीयों की दीर्घकाल तक स्मरण रहीं। 1857 का विद्रोह इतनी शीघ्रता से फैला था कि उसे जन-विद्रोह कहना ही उपयुक्त होगा। इसके दमन में अंग्रेजों ने जिस अमानवीय कार्यवाही की नीति अपनायी थी, उससे जनता के असन्तोष में वृद्धि हुई थी।
(2) पाश्चात्य शिक्षा तथा विचारों का प्रभाव- भारत की राष्ट्रीयता के उद्भव तथा विकास में पाश्चात्य विचारों तथा शिक्षा प्रणाली का गहरा प्रभाव पड़ा। अंग्रेजों का पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली की स्थापना करने तथा अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का मूल उद्देश्य भारतीय संस्कृति को समाप्त करके भारतीयों में एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना था जो रक्त और वर्ण से तो भारतीय होगा लेकिन रुचि, विचार, अभिव्यक्ति तथा बुद्धि से अंग्रेज होगा। इस नीति के प्रवर्तक मेकाले का विचार था कि पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली के द्वारा भारत में ब्रिटिश कार्यालयों के लिए कम वेतन पर कर्मचारी प्राप्त होंगे।
(3) धार्मिक तथा सामाजिक पुनर्जागरण- 19वीं शताब्दी में भारत में कई ऐसे सामाजिक और धार्मिक सुधार आन्दोलन हुए, जिन्होंने राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इन आन्दोलनों के नेताओं का विश्वास था कि राजनीतिक जागृति के लिए सामाजिक और धार्मिक जागृति आवश्यक थी। अतः उन्होंने सामाजिक बुराइयों तथा धार्मिक अन्धविश्वासों के उन्मूलन के लिए कार्य किया। इन आन्दोलनकर्ताओं ने भारतीयों में अपने गौरवपूर्ण अतीत और अपनी संस्कृति के प्रति आस्था और विश्वास भी उत्पन्न किया।
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(4)मध्यम वर्ग का उत्थान- भारत में राष्ट्रीय चेतना के विकास में नवोदित मध्यम वर्ग की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। अंग्रेजी शासन के प्रसार से मध्यकालीन अनेक राजे-रजवाड़े और उनकी सामन्तवादी शासन प्रणालियाँ समाप्त हो गयी थीं। अंग्रेजी शासन काल में, उनकी प्रशासनिक तथा आर्थिक नीतियों के कारण मध्यम वर्ग का क्रमिक उत्थान हुआ। बड़े-बड़े नगरों में भारतीयों का एक नया अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त वर्ग का उत्थान हो रहा था, जो बुद्धिजीवी था और जिसने इंग्लैण्ड में भी शिक्षा प्राप्त की थी इस वर्ग का उद्देश्य प्रशासन में नियुक्तियाँ प्राप्त करना था। इस काल में प्रशासनिक नियक्तियों को सम्मान का साधन समझा जाता था।
(5) अंग्रेजों की आर्थिक शोषण की नीति- अंग्रेजों की आर्थिक शोषण की नीति ने भारत में राष्ट्रीय चेतना की जागृति में योगदान दिया अंग्रेजों की दृष्टि में भारत उनका एक उपनिवेश था, जिसका वे अधिक से अधिक शोषण करना चाहते थे उन्होंने केवल ब्रिटिश हितों की रक्षा की और भारतियों के हितों की पूर्ण उपेक्षा की। उनका उद्देश्य भारत को अपने निर्मित उत्पादों के लिए बाजार मात्र बनाना था और अपने कारखानों के लिए भारत से कच्चा माल प्राप्त करना था। इसके फलस्वरूप भारत में निर्धनता तथा भुखमरी बढ़ती गयी और भारतीय व्यापार, कृषि उद्योग नष्ट हो गये।
(6) समाचार पत्रों का योगदान- राष्ट्रीय चेतना के विकास में भारतीय समाचार-पत्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। भारतीय प्रेस ने भारतीयों में प्रतिनिधि संस्थाएँ, प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली, स्वशासन तथा आत्मनिर्भरता की भावनायें उत्पन्न की। उन्होंने अंग्रेजी शासन के अत्याचारों राजनीतिक, आर्थिक उत्पीड़न की कटु आलोचना की। उन्होंने अंग्रेजी शासन की कमियों को उजागर किया और लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता उत्पन्न की। अंग्रेजी सरकार ने
भारतीय समाचार-पत्रों का दमन करने के लिए कठोर कार्यवाही की। अनेक समाचार-पत्रो का प्रकाशन बन्द किया गया, उन पर मुकदमा चलाकर कठोर दण्ड दिये गये लेकिन समाचार-पत्रा ने देश सेवा और राष्ट्रीय हित की रक्षा अडिग भाव से की और अपने कर्तव्यों से कभी विचलित नहीं हुए। उन्होंने जनमत के निर्माण में महत्वपूर्ण कार्य किया। इस सन्दर्भ में दि इण्डियन मिरर, दि अमृत बाजार पत्रिका, दि बॉम्बे क्रोनिकल, दि हिन्दू पेट्रियट, दि मराठा, दि केसरी, आन्ध्र प्रकाशिका, दि हिन्दू, दि इन्दुप्रकाश, दि कोहिनूर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में योगदान दिया।
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(7) लार्ड लिटन की दमनात्मक नीति- लार्ड लिटन 1876-1880 के काल में वायसराय था। उनकी दमनात्मक नीति ने राष्ट्रीय जागृति में महत्वपूर्ण कार्य किया। उसने कई ऐसे दमनात्मक कार्य किये, जिनसे भारतीयों में रोष बढ़ा और वे अंग्रेजी शासन का विरोध करने के लिए कटिबद्ध हो गये। उसने आई.सी.एस. परीक्षा में बैठने की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी, जिससे भारतीय युवक परीक्षा में न बैठ सकें। 1877 के भीषण अकाल के समय शानदार दरबार का आयोजन करके क्रूरता और निर्दयता का प्रदर्शन किया। उसने भारतीय शस्त्र अधिनियम और वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित करके जातीय कटुता में वृद्धि की। उसके शासन काल में भारतीय आर्थिक हितों की उपेक्षा करके इंग्लैण्ड के पूँजीपतियों के लाभों की रक्षा की। उसके शासन काल में भारतीय असन्तोष चरम सीमा पर पहुँच गया, जब उसने ब्रिटिश साम्राज्यवादी हितों के लिए अफगान युद्ध पर भारत का करोड़ों रुपया व्यय कर दिया।