भारतीय समाज पर पश्चिम प्रभाव का उल्लेख।

भारतीय समाज पर पश्चिम का प्रभाव- भारतीय समाज पर पश्चिम के प्रभावों को समझने से पहले यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पश्चिमी संस्कृति का अभिप्राय केवल इंग्लैण्ड की संस्कृति से ही नहीं है। इसका सम्बन्ध यूरोप और अमेरिका की उन सभी सांस्कृतिक विशेषताओं से है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक समानता तथा भौतिक विकास को अधिक महत्व देती हैं। इस दृष्टिकोण से भारतीय समाज तथा सामाजिक संस्थाओं पर पश्चिमीकरण के प्रभावों को समझना आवश्यक है।

सामाजिक समस्याओं के निवारण के उपाय की विवेचना कीजिए।

(1) धर्म पर प्रभाव-

भारतीय समाज में मध्यकाल से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक जिन सामाजिक कुप्रथाओं, धार्मिक अन्धविश्वासों और कर्मकाण्डों में वृद्धि होती रही थी, पश्चिमीकरण के प्रभाव से इनमें तेजी से परिवर्तन होना आरम्भ हुआ। ईसाई मिशनरियों ने जब जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता, धार्मिक रूढ़ियों तथा सामाजिक कुप्रथाओं का विरोध करके लोगों को ईसाई धर्म ग्रहण करने की प्रेरणा दी तो भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार की एक नयी प्रक्रिया आरम्भ हुई। इसमें ब्रह्म समाज, आर्य समाज तथा रामकृष्ण मिशन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गयी। पश्चिमीकरण के प्रभाव से मानवतावाद पर आधारित धार्मिक विश्वासों को प्रोत्साहन मिला, धार्मिक कर्मकाण्डों के प्रति उदासीनता बढ़ी तथा सभी धर्मों के प्रति समानता की चेतना विकसित होने लगी।

(2) जाति व्यवस्था में परिवर्तन-

पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से शिक्षित और जागरूक भारतीय यह समझने लगे कि जातियों का विभाजन कोई ईश्वरीय रचना नहीं है बल्कि यह कुछ स्वार्थ समूहों की योजनाबद्ध सामाजिक नीति है। इसके फलस्वरूप भारत में सामाजिक सम्पर्क, खान-पान, छुआछूत और व्यवसाय से सम्बन्धित जातिगत प्रतिबन्धों का प्रभाव तेजी से कम होने लगा। निम्न जातियों ने भी उच्च जातियों के व्यवहारों का अनुकरण करके अपनी सामाजिक स्थिति को ऊंचा उठाना आरम्भ कर दिया। श्रीनिवास ने इस परिवर्तन को संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट किया है।

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(3) संयुक्त परिवारों का विघटन

पश्चिमी संस्कृति ने लोगों को इस बात की प्रेरणा दी कि वे अपनी योग्यता और कुशलता को बढ़ाकर उच्च प्रस्थिति प्राप्त करें और अपनी आय का स्वतंत्रता के साथ उपयोग करें। इसके फलस्वरूप अधिक योग्य और साहसी व्यक्तियों ने संयुक्त परिवारों से अलग होना आरम्भ कर दिया। आज एकाकी अथवा केन्द्रक परिवारों की संख्या में तेजी से वृद्धि होना इसी दशा का परिणाम है। पश्चिमीकरण से उत्पन्न विचारधारा के कारण स्त्रियाँ भी संयुक्त परिवार के पक्ष में नहीं रहीं।

(4) शिक्षा पर प्रभाव-

अंग्रेजी शासन से पहले तक भारत में उच्च जातियों के सम्भ्रान्त परिवारों को ही शिक्षा की सुविधा प्राप्त थी। अंग्रेजों ने भारत में पहली बार एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था आरम्भ की जो धर्म, जाति और आर्थिक स्थिति के भेदभाव के बिना सभी लोगों के लिए सुलभ हो गयी। यह शिक्षा तर्क, वैज्ञानिक खोजों, सामाजिक समानता और स्वतंत्रता के विचारों पर आधारित थी। इसी शिक्षा का परिणाम था कि भारत में पहली बार मनुस्मृति के विधानों का व्यापक विरोध होना आरम्भ हुआ तथा सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन स्पष्ट होने लगे।

(5) विवाह संस्था पर प्रभाव-

ब्रिटिश शासन से पहले तक बाल विवाह, बहुपत्नी विवाह, कुलीन विवाह, विधवा विवाह पर नियंत्रण तथा कन्यादान से सम्बन्धित स्त्रियों के अन्धविश्वास हमारी प्रमुख समस्याएँ थीं। पश्चिम के प्रभाव से विवाह के परम्परागत नियमों का पालन करने की जगह योग्य जीवन साथी के चुनाव तथा स्वस्थ पारिवारिक जीवन को अधिक महत्व दिया जाने लगा। इसके फलस्वरूप विलम्ब विवाह, विधवा पुनर्विवाह, अन्तर्जातीय विवाह तथा प्रेम विवाहों में वृद्धि होने लगी। वैयक्तिक स्वतन्त्रता को प्रोत्साहन मिलने से विवाह विच्छेद की संख्या में भी वृद्धि हुई लेकिन यह दशा उस स्थिति से अच्छी प्रमाणित हुई जिसमें स्त्रियाँ सम्पूर्ण शोषण के बाद भी एक घुटन भरी पारिवारिक जिन्दगी व्यतीत करने के लिए मजबूर थीं।

(6) सांस्कृतिक व्यवहारों में परिवर्तन-

खान-पान, वेश-भूषा, सम्मान प्रदर्शन, शिष्टता के तरीके तथा उत्सवों का आयोजन आदि कुछ विशेष सांस्कृतिक व्यवहार हैं। खान-पान में काँटे और छुरी के उपयोग द्वारा मांसाहारी भोजन का प्रचलन, पश्चिमी वेश-भूषा, सम्मान प्रदर्शन के लिए हैलो तथा हाथ मिलाने की संस्कृति एवं शिष्टाचार के पश्चिमी तरीकों का प्रचलन भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभाव को स्पष्ट करता है। परम्परागत उत्सवों की जगह जन्मदिन पर केक काटने के प्रचलन तथा मित्रों के लिए चाय पार्टियों के आयोजन आदि भी पश्चिमी प्रभाव का ही परिणाम है।

समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र की विवेचना व समाजशास्त्र के स्वरूपात्मक एवं समन्वयात्मक सम्प्रदाय की आलोचानात्मक विवेचना कीजिए।

(7) स्त्रियों की दशा में सुधार-

पश्चिमीकरण के प्रभाव से जब वैयक्तिक स्वतंत्रता और समानता की भावना बढ़ी, तब भारत में स्त्रियों ने भी विभिन्न व्यवसायों और सेवाओं में प्रवेश करने के साथ सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में अधिक-से-अधिक अधिकारों की माँग करना आरम्भ कर दिया। परिवार, विवाह तथा आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में स्त्रियों के बढ़ते हुए अधिकार आज इसी दशा का परिणाम हैं। समतावादी मूल्यों के कारण अब पुरुष वर्ग भी स्त्रियों को अधिक स्वतंत्रता और अधिकार देने के पक्ष में होता जा रहा है।

(8) मानवतावाद का विकास-

मानवतावाद पश्चिमी संस्कृति की एक ऐसी विशेषता है जिसमें व्यक्ति की जाति, धर्म, आयु, लिंग अथवा प्रजाति पर ध्यान दिये बिना सभी लोगों में मानव अधिकारों की चेतना पैदा करने के प्रयत्न किये जाते हैं। ब्रिटिश शासन काल में सार्वजनिक स्कूलों, अस्पतालों और न्यायालयों की स्थापना होने से मानवतावाद को प्रोत्साहन मिला। उस समय मानवतावाद की जो प्रक्रिया आरम्भ हुई थी, आज वह समाज के उपेक्षित और पिछड़े वर्गों की चेतना में स्पष्ट रूप से सामने आने लगी है।

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