राज्यवर्द्धन का राजनैतिक इतिहास लिखिए।

राज्यवर्द्धन का राजनैतिक इतिहास –राज्यवर्द्धन राज्यवर्द्धन प्रभाकरवर्द्धन की तीनों संतानों में सबसे टोटा था। हर्षचरित से पता चलता है कि, प्रभाकरवर्द्धन के शासनकाल के अंतिम दिनों में राज्य की उत्तर-पश्चिमी । सीमाओं पर हुणों ने आक्रमण कर दिया । वृद्धावस्था के कारण प्रभाकर स्वयं युद्ध में जाने लायक नहीं था, अतः हूणों से निपटने का कार्य राज्यवर्द्धन को सौंपा राज्यवर्द्धन एक बड़ी सेना लेकर हुणों को दबाने के लिए चल पड़ा। हर्ष भी अवरोही सेना के साथ उसके पीछे-पीछे गया, लेकिन इ हिमालय के जंगलों में आखेट का आनन्द लेने लगा। राज्यवर्द्धन अपना कार्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि, राजधानी में प्रभाकरवर्द्धन गम्भीर रूप से बीमार पड़ गया। इस बीमारी का समाचार कुरंगक नामक राजदूत ने हर्ष को दिया।

हर्ष यह समाचार सुनते ही राजधानी वापस लौट गया, जहाँ पिता को मृत्युशय्या पर पाया एवं नमक राजयों के प्रयास के बावजूद भी प्रभाकरवर्द्धन को बचाया न जा सका और मृत्यु हो गई तथा माता यशोमति अग्नि में कूद कर सती हो गई। संभवतः अंतिम सांस लेते हुए हर्ष को नहीं संभालने के लिए कहा था उसके इस मंतव्य के पीछे दो कारण दिखाई देते हैं। पहला क राज्यवर्द्धन की बजाय हर्ष को राजा बनाना चाहता था अथवा वह राज्यवर्द्धन की अनुपस्थिति में उसे राजग के सम्बन्ध में किसी अन्य भय की आशंका थी। वास्तविकता जो भी हो लेकिन हर्ष का अपने बड़े भाई के उत्तराधिकार को हथियाने का कोई इरादा न था अतः उसने बड़े भाई राज्यवर्द्धनको ल के लिए बारी-बारी कई राजदूत भेजे। इस समय तक राज्यवर्द्धन हूणों पर विजय पा चुका था। अतः प की मृत्यु का समाचार पाते ही शीघ्र ही राजधानी यानेश्वर वापस लौट आया।

राज्यवर्द्धन जब राजधानी पहुंचा तो उसने समस्त जनता को शोकमग्न पाया। वह राज्य के प्रपंच में नहीं पड़ना चाहता था। वह हर्ष को गद्दी सौंपकर स्वयं संन्यासी बनना चाहता था। राजसता करने के लिए भाई हर्षवर्धन, दरबारियों तथा मंत्रियों का दबाव पड़ ही रहा था कि इसी बीच संकद नामक राज्यश्री के राजदूतद्वारा उसके पति कन्नौज नरेश महवर्मा की हत्या का समाचार मिला। यह समाचार पाकर राज्यवर्द्धन उद्वेलित हो उठा और संन्यास का विचार त्यागकर सिंहासन ग्रह कर लिया। प्रतिशोध की भावना से प्ररित होकर उसने मालव राजवंश को उखाड़ फेंकने की 1 तथा ममेरे भाई मण्डि के साथ दस हजार पुड़सवार सेना लेकर मालवराज के विरुद्ध निकल पड़ा।

हर्षवर्धन राज्यकाल का इतिहास के साहित्यिक साक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।

राज्यवर्द्धन की हत्या

राज्यवर्द्धन ने बड़ी आसानी से मालवनरेश देवगुप्त को पराजित करके मार डाला, लेकिन उसके नित्र गौडनरेश शशांक द्वारा राज्यवर्द्धन मार डाला गया। हर्षचरित के अनुसार कुन्तल नामक सेना के सेनापति ने दरबार में आकर हर्ष को सूचना दी कि

“यद्यपि राज्यवर्द्धन ने खेल ही खेल में मालव सेना को जीत लिया था, लेकिन गौड़ नरेश ने अपने मिथ्योपचार द्वारा उसके हृदय में अपने प्रति विश्वास उत्पन्न करके, अपने ही भवन में ऐसे समय मार डाला जब वह एकमात्र अकेला और निःशस्त्र था।”

हर्षचरित के टीकाकार शंकर राय के विवरण से पता चलता है कि, शशांक ने भोले भाल

राज्यवर्द्धन को अपनी पुत्री के साथ विवाह का प्रस्ताव देकर अपने राजमहल में बुलाया और धोखे से भोजन करते समय मारडाला. इस घटना की पुष्टि ह्वेनसांग के विवरण से भी हो जाती है, जिसमें लिखा है कि, ‘परवर्ती शासक (राज्यवर्द्धन) राजा बनने के तत्काल बाद पूर्वी भारत में स्थित कर्णसुवर्ण (बंगाल) के बौद्ध द्रोही दुष्ट शशांक द्वारा धोखा देकर मार डाला गया।’ बांसखेड़ा अभिलेख में इस घटना का विवरण इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है।

दुष्ट घोड़ों के समान देवगुप्त तथा अन्य राजाओं को, जो चाबुक से प्रहार से अपना मुह फेर देने के लिए बाध्य किये गये थे, एक साथ जीतकर अपने शत्रुओं को जड़ से उखाड़कर, संसार पर विजय दिये। कर प्रजा को संतुष्ट कर, राज्यवर्द्धन ने शत्रु के भवन में सत्य के अनुरोध से अपने त्या

उपरोक्त समस्तयों के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि, कभीज में देवगुप्त से युद्धमे मारकर राज्यवर्द्धन उसके मित्र शशाक को भी दंडित करने का निश्चय किया था लेकीन राजनीत दबेपएच में अनभिज्ञ होने के कारण शशांक के जाल में फंस कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी।

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