हमारे देश में शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति के उपाय बताइये Means of Equalization of Educational Opportunities in India

भारत में शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति के उपाय (Means of Equalization of Educational Opportunities in India)- शैक्षिक अवसरों की समानता के दो मुख्य पहलू हैं- पहला यह कि देश के सभी बच्चों और युवकों को बिना किसी भेदभाव के किसी भी स्तर की, किसी भी प्रकार की शिक्षा समान रूप से सुलभ कराना और दूसरा यह कि किसी भी वर्ग के बच्चों अथवा युवकों के किसी भी स्तर की किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं का निवारण करना। परन्तु भारत में इन दोनों कार्यों को करना बहुत कठिन है। इनके मार्ग में चार बड़ी बाधाएँ हैं- पहली देश की बढ़ती हुई जनसंख्या, दूसरी संसाधनों की कर्मी, तीसरी अधिकांश जनता का पिछड़ापन और निर्धनता और चौथी एक बड़ी जनसंख्या का दूर-दराजों- रेगिस्तानी, पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में छोटी-छोटी बस्तियों में रहना। इस दिशा में हमारे देश में सर्वप्रथम विचार किया कोठारी आयोग (1964-66) ने। उसने इन सब बाधाओं को मद्देनजर रखते हुए शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए-

हमारे देश में शैक्षिक अवसरों की असमानता क्यों हैं ? अथवा भारत में शिक्षा के असमानता हेतु उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए।

कोठारी आयोग (1964-66) के सुझाव-

  1. कक्षा 1 से कक्षा 8 तक की शिक्षा अनिवार्य एवं निःशुल्क की जाए और इस लक्ष्य को दो पंचवर्षीय योजनाओं में प्राप्त किया जाए।
  2. प्राथमिक स्तर पर छात्रों को पाठ्यपुस्तकें, लेखन सामग्री और माध्यान्ह भोजन निःशुल्क दिया जाए।
  3. पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की जाए और कबीलों के बच्चों के लिए आवासीय आश्रम स्कूल खोले जाएँ।
  4. मन्द बुद्धि और विकलांग बालकों के लिए अलग से स्कूल खोले जाएं, इनमें विशेष प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों की नियुक्ति की जाए।
  5. माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के निर्धन छात्रों को शुल्क मुक्त किया जाए।
  6. माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा स्तर के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में बुक बैंक योजना लागू की जाए।
  7. माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के निर्धन एवं योग्य छात्रों को पुस्तकें क्रय करने के लिए आर्थिक सहायता दी जाए।
  8. शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर विभिन्न छात्रवृत्तियों की समुचित व्यवस्था की जाए और व्यावसायिक स्कूल-कॉलिजों में सामान्य स्कूल कॉलिजों की अपेक्षा अधिक छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।
  9. उच्च शिक्षा स्तर पर निर्धन और मेधावी छात्रों, विशेषकर विज्ञान एवं तकनीकी वर्ग के छात्रों को ऋण छात्रवृत्तियाँ दी जाएँ।
  10. दूर-दराज में रहने वाले छात्रों को सवारी सुविधा अथवा छात्रावास सुविधा प्रदान की जाए।
  11. स्त्रियों को पुरुषों की भाँति किसी भी प्रकार की शिक्षा सुलभ कराई जाए, स्त्री-पुरुषों की शिक्षा के प्रसार के भारी अन्तर को दूर किया जाए।

शैक्षिक अवसरों की समानता का अर्थ एवं परिभाषा बताइये। अथवा शैक्षिक अवसरों की समानता की आवश्यकता बताइये।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 के प्रस्ताव-

केन्द्र सरकार ने कोठारी आयोग के उपर्युक्त सुझावों के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में निम्नलिखित घोषणाएँ की

  1. ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में और अधिक स्कूल-कॉलिज खोले जाएँगे और इन क्षेत्रों के बच्चों और युवकों को सभी स्तरों की शिक्षा सुलभ कराई जाएगी।
  2. देश में सामान्य विद्यालय प्रणाली (Common School System) लागू की जाएगी, अर्थात एक क्षेत्र में रहने वाले सभी वर्गों के बच्चे एक प्रकार के स्कूल में पढ़ेंगे, एक साथ पढ़ेंगे।
  3. पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कबीलों के बच्चों की शिक्षा की विशेष व्यवस्था की जाएगी और इनको आवश्यक आर्थिक सहायता दी जाएगी।
  4. मन्द बुद्धि और विकलांग बच्चों के लिए अलग से विद्यालय खोले जाएँगे।
  5. बालिकाओं की शिक्षा का प्रसार किया जाएगा।
  6. पब्लिक स्कूलों में निम्न एवं निर्धन वर्ग के बच्चों के लिए स्थान आरक्षित किए जाएँगे और उनके लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
  7. शिक्षा के सभी स्तरों पर निम्न वर्ग के बच्चों को आर्थिक सहायता दी जाएगी।
  8. शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रवृत्तियों में वृद्धि की जाएगी।
  9. विशेष योग्यता एवं क्षमता वाले छात्रों के लिए विशेष छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाएगी।

भारत में शिक्षा में समानता का क्या अर्थ है ? शिक्षा में समानता की क्या अथवा आवश्यकता है ? शिक्षा में समानता लाने के कुछ उपाय बताइये।

इस शिक्षा नीति पर अमल होना शुरू ही हुआ था कि केन्द्र में जनता दल की सरकार बन गई। इस सरकार ने 1979 में अपनी शिक्षा नीति की घोषणा की। इस नीति में कक्षा 1 से कक्षा 8 तक की शिक्षा की व्यवस्था को प्रथम वरीयता दी गई और द्वितीय वरीयता प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था को दी गई। साथ ही दीन-हीनों की शिक्षा व्यवस्था का वायदा किया गया, पर इस दिशा में काम बहुत कम किया गया। 1986 में युवा प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शैक्षिक अवसरों की समानता के सन्दर्भ में लगभग यही निर्णय लिए गए जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में लिए गए थे। कुछ निर्णय इसके अपने थे। यहाँ उन सबका वर्णन संक्षेप में प्रस्तुत है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के प्रस्ताव-

  1. एक निश्चित कार्य योजना के अन्तर्गत सर्वप्रथम कक्षा 1 से कक्षा 5 तक की शिक्षा | अनिवार्य एवं निःशुल्क की जाएगी और उसके बाद कक्षा 6 से कक्षा 8 तक की शिक्षा अनिवार्य एवं निःशुल्क की जाएगी और यह लक्ष्य 1995 तक प्राप्त कर लिया जाएगा।
  2. पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कबीलों आदि उपेक्षित वर्ग के बच्चों की शिक्षा की विशेष व्यवस्था की जाएगी।
  3. उपेक्षित वर्ग के बच्चों को आर्थिक सहायता दी जाएगी, इनके लिए विशेष छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाएगी।
  4. मन्द बुद्धि और विंकलांग बालकों के लिए अलग से स्कूल खोले जाएँगे।
  5. माध्यमिक स्तर पर गति निर्धारक विद्यालय (Pace Making Schools) खोले जाएँगे, इनमें उपेक्षित क्षेत्रों (ग्रामीण) और उपेक्षित वर्ग (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति) के मेधावी छात्रों के लिए आवासीय निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
  6. पब्लिक स्कूलों और कैपीटेशन फीस वाले उच्च शिक्षा महाविद्यालयों में निर्धन एवं मेधावी छात्रों के लिए स्थान आरक्षित किए जाएँगे और इन्हें निःशुल्क शिक्षा दी जाएगी।
  7. स्त्री-पुरुषों की शिक्षा में कोई भेद नहीं किया जाएगा। स्त्रियों को पुरुषों की भाँति किसी भी प्रकार की शिक्षा-विधि, आयुर्विज्ञान, विज्ञान, तकनीकी और प्रबन्ध आदि के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

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