आपद धर्म – प्रायः संकटकालीन परिस्थिति में किसी भी वर्ण विशेष के व्यक्ति का जीवन-यापन अपने धर्म विशेष से नहीं होता है। ऐसे समयों के लिए हमारे धर्मशास्त्रकारों ने उनके कर्मों में कुछ छूट प्रदान की है। इसी को आपद्धर्म कहते हैं। मनु के मतानुसार आपद काल में प्रत्येक वर्ण के लिए दस कार्यों की छूट दी गई है। अध्ययन, कौशल, सेवा, कृषि, वृत्ति, पशुपालन (विपणिः), धृति (संतोष), भैक्ष्यम् (भिक्षाटन) एवं कर्ज देना (कुशीद)। महाभारत के अनुसार ऐसी परिस्थिति में ब्राह्मण क्षत्रिय का एवं उसके भी अभाव में वैश्य का व्यवसाय अपने जीवन-यापन के लिए स्वीकार कर सकता है।
प्रदत्त व्यवस्थापन (प्रयोजित विधायन) क्या है? इसके क्या गुण-दोषों का वर्णन कीजिये।
इसी प्रकार क्षत्रिय के बारे में कहा गया है कि वह वैश्य की वृत्ति अपना सकता है। वैश्य के सम्बन्ध में मनु ने कहा है कि संकट के काल में वह शूद्र का व्यवसाय स्वीकार कर सकता है। शुद्र के लिए यह छूट दी गई है कि यदि शूद्र का अपने निर्दिष्ट कर्म से काम न चले तो वह वैश्य अथवा क्षत्रीय का व्यवसाय स्वीकार कर सकता है।