अज्ञेयजी का जीवन-परिचय – सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय जी’ का जन्म पंजाब के जालन्धर जनपद के करतारपुर नामक स्थान पर 7 मार्च, सन् 1911 ई. को हुआ था। उनके पिता का नाम हीरानन्द शास्त्री था। सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता पिता का बार-बार स्थानान्तरण होने के कारण उनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्होंने जो कुछ सीखा अपने माता-पिता से ही सीखा। अज्ञेय जी को अपने पिता द्वारा एकत्रित पुस्तकों का अध्ययन करने में विशेष रुचि थी। बी.एस.सी. एवं एम. ए. करने बाद अज्ञेय जी देश के स्वाधीनता आन्दोलन की ओर आकृष्ट हुए और उसमें सक्रिय भाग लिया।
सन् 1930 ई. के दशक के प्रारम्भ में उनका सम्पर्क क्रान्तिकारी गुटों से हुआ और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी तथा उसके नेता चन्द्रशेखर आजाद और भगवतीचरण बोहरा के वे निकट आये। अज्ञेय जी ने सन् 1930 से 1934 ई. तक जेल की सजा काटी तथा सच्चे स्वतन्त्रता सेनानी बने। उन्होंने जेल में ही अपनी विशिष्ट कृति शेखर एक जीवनी नामक उपन्यास लिखा। उन्होंने पत्रकार और सम्पादक के रूप में भी अपना विशिष्ट स्थान बनाया।
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सन् 1952 से 1955 ई. तक वे आकाशवाणी के भाषा सलाहकार भी रहे। सन् 1962 ई. में उन्हें हिन्दी साहित्य अकादमी के पुरस्कार से नवाजा गया। सन् 1979 ई. में उनके कविता-संग्रह ‘कितनी नावों में कितनी बार’ को भी भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। अपने जीवन पर्यन्त साहित्य की महान सेवा करते हुए अज्ञेय जी 4 अप्रैल 1987 ई. को सदैव के लिये स्वर्गलोक को प्राप्त हो गये।