जिन समूहों से व्यक्ति अपना तादाम्य स्थापित करता है वे उसके अन्तःसमूह हैं। ऐसे समूहों में सजाति के प्रति चेतना का भाव प्रमुख होता है। यही कारण है कि उनके प्रति ऐसी मनोवृत्ति पनपती है, जिससे कुछ समूहों को ‘अपना समूह’ व उनके कार्यों और उद्देश्यों को अपना कार्य और उद्देश्य मानने लगते हैं। यही नहीं अन्तः समूह में सहानुभूति का तत्व होता है और सदस्य निकटता का अनुभव करते हैं। व्यक्तित्व कल्याण समूह-कल्याण के साथ जुड़ जाता है। अन्तःसमूह अनेक प्रकार के होते हैं जिनका व्यक्ति सदस्य होता है, ये व्यक्तियों पर दबाव डालते हैं जिससे कि उनके विश्वास और ढंग समूहों के अनुकूल हो जायें।