अस्मिता और समाजीकरण के प्रत्यय को स्पष्ट कीजिये।

अस्मिता और समाजीकरण के प्रत्यय – व्यक्ति को अच्छा बनाना ही सदैव समाज का दायित्व रहा है, क्योंकि आदर्श मानव की संकल्पना मूल्यों से जुड़ी है। हमारी इच्छाएं, अनुभूतियाँ एवं प्रेरणा आदि जो आदर्श व्यक्तित्व से उद्धृत हो रहे हैं, ये मूल्यों का निर्माण करते हैं और वर्तमान प्रसंग में यह कहने में तो कोई अतिशयोक्ति न होगा कि हमारा भारतीय समाज भौतिक प्रगति की अच्छी दौड़ के चलते अपने मूल्यों और आदर्शों को खो रहा है। यह स्थिति क्यों आई? इसका आधार क्या है? यह विचारणीय विषय है।

गुन्नार मिर्डल ने बताया है कि यदि हमें समाज में गरीबी पर विजय प्राप्त करनी है तो यहाँ से असामनता को हटाना होगा। हमारे देश में पितृसत्तात्मकता एवं रूढ़िवादिता होने के कारण महिलाओं के साथ प्रत्येक क्षेत्र में असमानतापूर्ण व्यवहार किया जाता है। उनको कार्य के क्षेत्र, में, वेतन के क्षेत्र में, अध्ययन के क्षेत्र में एवं प्रस्थिति के क्षेत्र में निम्न स्थान प्राप्त है। महिलाएँ जो देश की जनसंख्या का लगभग आधा भाग हैं, यदि इनका विकास अवरुद्ध होगा तो प्रत्यक्षतः देश का भी विकास अवरुद्ध होगा। महिलाएं जन्मदात्री हैं, अगली पीढ़ी की सर्जक हैं, यदि वे ही पूरी तरह से विकसित नहीं हैं, तो वे किस प्रकार एक सुदृढ़ नई पीढ़ी को जन्म दे पाएंगी। इस प्रकार महिलाओं का विकास प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में देश के विकास को प्रभावित करता है। मानव मूल्यों के ह्रास का एक कारण तो सम्पूर्ण समाज में दोहरे मापदण्डों का प्रचलित

12वीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।

होना है। समाज में हमारे समक्ष सहयोग, पारम्परिक सद्भावना और सहायता के अवसर आते हैं. परन्तु हमारा आत्मकेन्द्रित मस्तिष्क उन अवसरों को संघर्ष, एकाकीपन, प्रतिस्पर्द्धा आदि में परिवर्तित करता है। प्रकट में तो वह प्रेम और सहयोग की बात करता है, परन्तु व्यवहार में द्वेष और विरोध का मार्ग अपनाता है। समाज के नेतृत्व का दम भरने वाले हमारे महानुभाव उपदेश देकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और श्रेष्ठ आचरण का उत्तरदायित्व प्रजा जन पर डाल देते हैं। प्रजा जन अपने आदर्श व नेतृत्व का नैतिक पतन देखकर उन्हीं जैसा बनने का सपना पालने लगते हैं। फलतः प्रगति की दिशा सकारात्मक न होकर नकारात्मक हो जाती है और ह्रास एवं तथाकथित मूल्यों व आदर्शोंों का लोप हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप मानव समाज का बड़ा भाग निराशा, उदासी, मानसिक तनाव और अविश्वास के गर्त में डूबता जा रहा है। मानव समाज की इस दुःखद स्थिति का कारण अपनी आत्मा की आवाज न सुनने की असमर्थता है। जिसकी वजह से समाज एक नैतिक ह्रास एवं चारित्रिक संक्रान्ति की स्थिति में पहुंच गया है। फलस्वरूप भारतीय समाज घोर दुर्दशा की ओर कदम बढ़ाता प्रतीत होता है।

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