बल्लाल सेन
विजयसेन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बल्लाल सेन 1159 ई. के लगभग सेन का शासक बना। बंगाल से पालवंश की बची हुई सत्ता को समाप्त कर उसने सम्पूर्ण बंगाल तथा बिहार के ऊपर अपना अधिकार कर लिया और पाल शासकों द्वारा धारण की जाने वाली ‘गौडेश्वर’ की उपाधि उसने स्वयं धारण कर लिया। उसकी अन्य उपाधियाँ परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर, निःशंक शंकर आदि थी। इस प्रकार बल्लालसेन ने न केवल अपने पैतृक साम्राज्य को सुरक्षित रखा, अपितु उसमें वृद्धि भी किया बल्लालसेन स्वयं विद्वान तथा विद्वानों का संरक्षक था। उसने दानसागर नामक ग्रन्थ की रचना की थी तथा एक अन्य ग्रन्य ‘अद्भुत सागर’ की रचना प्रारम्भ किया था किन्तु उसे पूर्ण नहीं कर पाया।
राधाकृष्णन कमीशन की प्रमुख सिफारिशों लिखिये ।
उसका आचार्य अनिरुद्ध अपने युग का प्रकाण्ड विद्वान था। बल्तालसेन ने 1179 ई. अर्थात् कुल बारह वर्षों तक शासन किया। अपने पिता के समान वह भी शैवमतानुयायी था तथा उसने कन्नौज से कई ब्राह्मण कुलों को बुलाकर बंगाल में बसाया था। –