भारतवर्ष पर पारसी प्रभाव – भारत के पश्चिमोत्तर भाग पर ईरानी (पारसीक) आधिपत्य लगभग दो सौ सालों तक बना रहा। इस आक्रमण का भारत पर बहुत प्रभाव पड़ा। इससे भारत और ईरान के बीच व्यापार को बढ़ावा मिला। इस सम्पर्क के सांस्कृतिक परिणाम और भी महत्वपूर्ण हुए। ईरानी लिपिकार (क) भारत में लेखन का एक खास रूप ले आए जो आगे चलकर खरोष्टी नाम से मशहूर हुआ। यह लिपि अरबी की तरह दायों में बायीं ओर लिखी जाती थी। ईसा पूर्व तीसरी सदी में पश्चिमोत्तर भारत में अशोक के कुछ अभिलेख इसी लिपि में लिखे गए। यह लिपि ईसा की तीसरी सदी तक इस देश में चलती रही। पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में ईरानी सिक्के भी मिलते हैं जिनसे ईरान के साथ व्यापार होने का संकेत मिलता है।
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अशोक कालीन स्मारक विशेष कर घंटा के आकार के गुंबज कुछ हद तक ईरानी प्रतिरूपों पर आधारित थे। अशोक के राज्यादेशों की प्रस्तावना और उनमें प्रयुक्त शब्दों में भी ईरानी शब्द दिपी के लिए अशोक कालीन लेखकों ने लिपि शब्द का प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त, यूनानियों को भारत की अपार सम्पति की जो जानकारी मिली वह इन ईरानियों के जरिए ही मिली। इस जानकारी से भारत की सम्पत्ति के लिए उनका लालच बढ़ गया और अन्ततोगत्वा भारत पर सिकन्दर ने आक्रमण कर दिया।