बिन्दुसार का शासनकाल – बिन्दुसार अपने पिता चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद मौर्यवंश का शासक बना। विविध प्रथ उसका नाम अमित्र केडीज अथवा अमित्रपात (शत्रुओं का विजेता) मिलता है। उसे दक्षिण भारत का पूर्ण विजेता कहा गया है। उसकी अन्य विजयों के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती है। उसके शासन काल की सबसे बड़ी विशेषता चन्द्रगुप्त द्वारा स्थापित साम्राज्य को यथावत् बनाए रखना है। उसके शासन काल में कलिंग एवं तक्षशिला में विद्रोह हुए जिस पर उसने नियन्त्रण स्थापित किया। उसके साथ ही उसने विदेशी राज्यों से भी सम्बन्ध बनाए रखा। प्रशासन के क्षेत्र में बिन्दुसार ने अपने पिता चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा प्रवर्तित राजतन्त्रीय शासन व्यवस्था को बनाए रखा। अपने साम्राज्य को उसने भी प्रान्तों में विभाजित किया था जहाँ प्रान्तपति के रूप में उपराजा या कुमार शासन कसे थे।
दिव्यावदान के अनुसार अवन्ति प्रान्त का उपराजा कुमार अशोक था। बिन्दुसार की मंत्रिपरिषद प्रधान खल्लाटक था जिसने कौटिल्य के बाद यह पद ग्रहण किया होगा। सुबन्धु और राधागुप नीतिनिपुण विद्वान उसके मन्त्री के रूप में उसे परामर्श देते थे। यूनानियों से उसने दार्शनिकों की मांग की थी जो उसकी दार्शनिक अभिरूचि एवं विद्या के प्रति अनुराग को प्रदर्शित करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अशोक की भाँति ही उसका पिता बिन्दुसार भी आजीवक सम्प्रदाय के लोगों का आदर सम्मान करता था।
कनिष्क एवं बौद्ध धर्म की महायान शाखा।
महावंश में एक संदर्भ आता है कि अशोक का पिता साठ हजार ब्राह्मणों को भोजन देता था। महावंश के इस साक्षर के आधार पर कुछ विद्वानों की धारणा है बिन्दुसार वैदिक या ब्राह्मण धर्मानुयायी था। बिन्दुसार का पारिवारिक जीवन भी समृद्ध था। उसकी अनेक रानियाँ थीं। बौद्ध ग्रन्थों में धम्मा, सुभर्दागी आदि का उल्लेख मिलता है। महावंश में उसके एक सौ एक पुत्रों का भी उल्लेख मिलता है। साहित्यिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है बिन्दुसार के अन्तिम दिन सुखमय नहीं थे। तक्षशिला प्रान्त में दरबारियों ने षडयन्त्र कराकर राजनैतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न कर दी थी। उसके पुत्रों में उत्तराधिकार युद्ध छिड़ गया था जिसे बीमार होने के कारण वह रोक नहीं सका और मृत्यु को प्राप्त हुआ।