बोदां के सम्प्रभुता की सीमाएँ- बोदा के अनुसार- “सम्प्रभुता पर पहली सीमा प्राकृतिक नियमों की है जिनका निर्माण सम्प्रभु नहीं, ईश्वर के द्वारा किया जाता है। अतः सम्यक न बाध्यकारी से बँधा हुआ है। वह इनका उल्लंघन नहीं कर सकता है। उसके अनुसार, “कानून शक्ति से सम्प्रभुता के स्वतंत्र होने के सम्बन्ध में कुछ कहा गया है, उसका ईश्वरीय या प्राकृतिक कानून से कोई सम्बन्ध नहीं है।” अतः बोदा सम्प्रभु को ईश्वरीय कानून से नियंत्रित मानता है।
इन नियमों उसके अनुसार ईश्वरीय नियम बुद्धि द्वारा ज्ञात किये जाने वाले, मनुष्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को निर्धारित करने वाले नैतिक नियम हैं जिनका पालन सामाजिक व्यवस्था के सुसंचालक के लिए आवश्यक है। आगे वह कहता है कि अगर राजा को इन प्राकृतिक नियमों से स्वतंत्र व अनियंत्रित मान लिया जाये तो उसके परिणाम बड़े भयंकर होंगे। तब हमें चोर डाकुओं के संगठन के सरदार को भी सम्प्रभु मानना पड़ेगा क्योंकि उसमें उनके सरदार की इच्छा ही कानून होती है और वह किसी बाह शक्ति के आधिपत्य में नहीं होती।
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लेकिन बोदां के अनुसार ऐसे व्यक्ति को सम्प्रभु नहीं माना जा सकता क्योंकि उसके आचरण प्राकृतिक नियमों के अनुकूल नहीं हैं। अतः बोदां सम्प्रभुता पर प्राकृतिक कानून की मर्यादा स्थापित करता है और उसे उससे नियंत्रित मानता है।