चार्ल्स ग्राण्ट के शैक्षिक प्रयास – ईस्ट इण्डिया के द्वारा मिशनरियों के धर्म प्रचार कार्य पर लगायी रोक को मिशनरियों ने धर्म विरोधी नीति की संज्ञा दी थी तथा इस तथाकथित (ईसाई धर्म विरोधी नीति के कारण उनमें असंतोष की भावना व्याप्त हो गई। भारत में इस नीति का विरोध करने में असफल रहने पर मिशनरियों तथा उनके समर्थकों ने भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड में आंदोलन करना प्रारम्भ कर दिया। आंदोलन करने वाले व्यक्तियों में चार्ल्स प्राण्ट प्रमुख था। वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारी के रूप में अनेक वर्षों तक भारत में कार्य कर चुका था तथा अवकाश प्राप्ति के बाद इंग्लैण्ड वापस लौट गया था। वह सन् 1802 में ब्रिटिश पार्लियामेट का सदस्य तथा 1805 में कम्पनी का अध्यक्ष भी बना। उसने सन् 1792 में एक पुस्तिका प्रकाशित की थी जिसमें ग्रेट ब्रिटेन के एशियाई प्रजाजनों की सामाजिक स्थिति पर विचार प्रस्तुत किये गये थे। इस पुस्तिका में हिन्दुओं तथा मुसलमानों की अज्ञानता का वर्णन किया तथा इस अज्ञानता के निवारण हेतु पंचसूत्री योजना प्रस्तुत की।