चन्द्रगुप्त मौर्य की पश्चिमी भारत की विजय – चन्द्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य की सहायता से सर्वप्रथम पंजाब एवं सिन्ध (पश्चिमोत्तर भारत) विजय की योजना बनाई अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में विदेशी शासन के विरुद्ध लोगों को भड़काना आरम्भ किया। उसने पंजाब के लड़ाकू कबीलों की एक सेना संगठित की तथा हिमालय के पर्वतीय राजा पर्वतक से मैत्री भी स्थापित की। इस समय तक पंजाब की स्थिति बिगड़ती जा रही थी। यूनानी सत्ता सिकन्दर की विजय के बावजूद स्थायी नहीं हो पायी थी। यवनों के विरूद्ध विद्रोह होते रहते थे। वस्तुतः सिकन्दर जब भारत में या तभी सिन्ध में विद्रोह हुआ था।
असीरियन सभ्यता की कला एवं स्थापत्य का वर्णन कीजिए।
अतः भारत छोड़ने के पूर्व अपने विजित क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए सिकन्दर ने इन्हें तीन सत्रपियों में विभक्त कर दिया था। फिलिप को एक बड़े क्षेत्र का क्षत्रप बनाया गया। उसके अधीन अम्मी का राज्य, निचली काबुल घाटी से हिन्दुकुश तथा सिन्ध से चेनाब तक का क्षेत्र था। आम्भी उसका था। झेलम और व्यास के बीच का क्षेत्र पोरस के नियन्त्रण में था।
पिथन सिन्य का क्षत्रप बनाया गया। सिकन्दर की यह व्यवस्था कारगर सिद्ध नहीं हो सकी। चन्द्रगुप्त और चाणक्य यूनानी सत्ता के विरुद्ध असन्तोष मड़काते रहे। उन्हें अपने प्रयास में सफलता भी मिली और पंजाब में मुक्ति संघर्ष आरम्भ हो गया। सिकन्दर की वापसी और उसकी मृत्यु (323 ई.पू.) के बाद तो स्थिति और भी अनियंत्रित हो गई। यूनानियों के विरुद्ध विद्रोह होने लगे थे। ऐसे ही एक विद्रोह के दौरान यूनानी क्षत्रप फिलिप की हत्या कर दी गई थी। जस्टिन के अनुसार इन विद्रोहियों का नेता चन्द्रगुप्त था। यूनानी सत्ता के कमजोर पड़ते ही चन्द्रगुप्त ने सिन्ध और पंजाब पर अधिकार कर लिया एवं राजा बन बैठा।