धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान के 42 वें संशोधन (1976) द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया, जबकि यह शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना में नहीं था। धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र अथवा पंथनिरपेक्ष राष्ट्र का अर्थ है कि भारत में किसी पंथ विशेष को राज्य धर्म की स्थिति या अन्य किसी रूप में प्रमुखता की स्थिति प्राप्त नहीं है। भारतीय संविधान, भारत में एक पंथनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है जिसमें राज्य का कोई अपना धर्म नहीं है। सरकार किसी विशेष धर्म का पोषण नहीं करती है। राज्य धर्म के मामले में पूर्णतः तटस्य है। राज्य न तो किसी धर्म की घोषणा ही करता है और न किसी धर्म का अनादर; वरन् प्रत्येक धर्म का समान आदर करता है।
सात्मीकरण को प्रोत्साहन देने वाली दशाओं का वर्णन करें।
भारत में प्रत्येक नागरिक को अपने विश्वास के अनुसार किसी भी धर्म को मानने तथा किसी भी ढंग से ईश्वर की पूजा करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। धर्म-स्वातन्त्र्य केवल धार्मिक श्रद्धा एवं सिद्धांतों तक ही सीमित नहीं है। वरन् उसके प्रसार एवं प्रचार करने का भी अधिकार इसमें सम्मिलित है। इसी उद्देश्य से राज्य पोषित शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा का प्रतिषेध है। किन्तु अन्य स्वतन्त्रताओं की ही तरह राज्य इस स्वतन्त्रता पर भी सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार और स्वस्थ बनाये रखने के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन लगा सकता है।