ईसाई विवाह पर टिप्पणी – ईसाई समाज में विवाह को न तो हिन्दुओं की भाँति एक धार्मिक संस्कार मान जाता है और न ही मुसलमानों के समान समझौता वरन् समझौता और संस्कार दोनों माना जाता है। यद्यपि अविवाहित रहकर जोवन यापन करना सबसे अच्छा माना जाता है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति संयम न रख सके तो उसके लिए विवाह कर लेना ही उचित है। प्रोटेस्टेंट लोग विवाह को जीवन के लिए आवश्यक मानते नैति है तथा यह स्वीकार करते है कि विवाह के द्वारा मनुष्य की बौद्धिक और मानसिक उन्नति होती है। विवाह की परिभाषा करते हुए “United Church of Northern India” ने लिखा है- “विवाह समाज में एक पुरुष और लो के बीच एक ऐसा समझौता है जो सामान्यतया सम्पूर्ण जीवनभर चलता है तथा जिसका उद्देश्य शांति, पारस्परिक सहयोग एवं परिवार की स्थापना करना है।’