गृहस्थ आश्रम का समाजशास्त्रीय महत्व निम्नलिखित है
(1) संतानोत्पत्ति
गृहस्थ आश्रम में प्रवेश व्यक्ति विवाह संस्कार के बाद करता है। इस आश्रम में वह अपने वंश को आगे बढ़ाने हेतु संतानोत्पत्ति करता है, क्योंकि मोक्ष प्राप्ति के लिए संतान का होना आवश्यक माना जाता है।
(2) पारिवारिक कल्याण
गृहस्थ आश्रम में प्रवेश के साथ हो व्यक्ति की जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। अब उसे अपना एवं अपने परिवार के कल्याण हेतु भौतिक सुख, सुविधाओं को उपलब्ध कराना, प्रमुख कार्य बन जाता है।
(3) पुरुषार्थों का पालन
गृहस्थ आश्रम में व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष इनचारों पुरुषार्थों का पालन करता है।
(4) ऋण से मुक्ति
आश्रम व्यवस्था में व्यक्ति अपने ऋणों से मुक्ति पाने हेतु पह का सम्पादन करता था।
जैसे-
- (1) देव ऋण के लिए यज्ञ एवं हवन करना।
- (2) गुरु ऋण के लिए अध्ययन-अध्यापन करना।
- (3) पितृऋण के लिए सन्तानोत्पत्ति करना।
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(5) अन्य आश्रमों को सहयोग देना
गृहस्थ आश्रम अन्य तीनों आश्रमों का आधार होता है। इसलिए व्यक्ति इस आश्रम में रहते हुए अन्य तीनों आश्रमों को धन, धान्य एवं अन्य आवश्यक सामग्रियों का दान कर उसे जीवित रखने में सहायता प्रदान करता है।