हंसा मेहता समिति ने स्त्री-शिक्षा हेतु क्या सुझाव दिया है?

हंसा मेहता समिति

श्रीमती हंसा मेहता समिति सन् 1962 में राष्ट्रीय श्री-शिक्षा परिषद ने श्रीमती हंसा मेहता की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। इस समिति ने स्त्री-शिक्षा के पाठ्यक्रम के संबंध में उपयोगी सुझाव दिये। लड़के-लड़कियों के पाठ्यक्रम में अंतर करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि शिक्षा का संबंध वैयक्तिक क्षमता और अभिरुचि से होता है। प्राथमिक स्तर पर दोनों का पाठ्यक्रम एक समान है। माध्यमिक स्तर पर पाठ्यक्रम में विविध विषय रखे जायें। बालिकाओं के लिए व्यावसायिक शिक्षा संस्थाएँ भी स्थापित की जायें।

स्त्री-शिक्षा

हमारे देश की नारी-शिक्षा संचार के अन्य देशों की अपेक्षा अत्यंत प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण है। विकासशील देशों में स्त्रियों को पुरुषों के साथ पारिवारिक सामाजिक एवं आर्थिक जिम्मेदारियों का पालन करना पड़ता है, अतः उनकी शिक्षा की अवहेलना नहीं की जा सकती। स्त्री शिक्षा की अवहेलना करना समाज की भावी पीढ़ी के साथ अन्याय करना है। स्लियाँ समाज का आधार हैं, उन्हें शिक्षित करना पूरे समाज को शिक्षित करना है।

नेपोलियन ने कहा था- “मुझे सुशिक्षित माताएं दो, मैं एक सुशिक्षित राष्ट्र का निर्माण कर दूंगा

प्रतिरक्षा मंत्री जगजीवन राम ने एक बार कहा- “एक कन्या को पढ़ा देने से आगे आने वाली दूँगा।” पीढ़ी सुशिक्षित होगी।”

अतः स्त्री शिक्षा का समुचित प्रबंध करना राष्ट्र की अनिवार्य आवश्यकता है। बालक की प्रारंभिक पाठशाला पर है और माता ही उसकी प्रथम शिक्षिका है। किसी ने कहा है-“जो हाथ पालने को झुलाता है यह संसार का शासन भी करता है।” स्त्रियाँ परिवार का मेरूदंड है। इनकी प्रगति पर ही हमारा सर्वांगीण विकास निर्भर करता है। शिक्षित स्त्रियों न केवल परिवार की उन्नति करती है बल्कि समाज को भी सुसंस्कृत और उन्नतिशील बनाने में सहायता प्रदान करती हैं। देश और समाज की प्रगति के लिए उन्हें समुचित शिक्षा देना अनिवार्य है।

पश्चिम देशों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि लियाँ ही शिशुओं को शिक्षा देने के लिए सर्वरूपेण उपयुक्त हैं। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने सी शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि स्त्री-शिक्षा के बिना लोग शिक्षित नहीं हो सकते। स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर तक सीमित नहीं रहना चाहिए, क्योंकि विभिन्न परिस्थितियों के कारण उन्हें जीवन के विभित्र क्षेत्रों में कार्य करने की आवश्यकता हो सकती है। अतः स्त्रियों के लिए शिक्षा की ऐसी रूपरेखा बनायी जायो जो उनके जीवन को सफल बनाने में सहायक हो। यदि समाज का नव-निर्माण करना है, तो स्त्रियों को वास्तविक और प्रभावपूर्ण ढंग से पूरूषों के समान शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देना चाहिए।

माण्टेसरी शिक्षा पद्धति की विवेचना कीजिए।

शिक्षा संबंधी विभिन्न समस्याओं में श्री-शिक्षा की समस्या एक प्रमुख समस्या है। स्त्री-शिक्षा में निरंतर प्रगति हो रही है। देश में स्त्री-शिक्षा का विकास किस प्रकार हुआ, यह जानने के लिए स्त्री-शिक्षा के इतिहास पर प्रकाश डालना आवश्यक है।

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