हरित गृह प्रभाव
हरित गृह प्रभाव गैस लघु तरंग सौर्थिक विकिरण के लिए तो प्रायः पारदर्शी होती है परन्तु भूतल द्वारा विकीर्णिव अधिकांश बहिर्गामी दीर्घ तरंग विकिरण को बाहर जाने से रोक लेती हैं। यही कारण है कि भूतल और उसके सम्पर्क का वायुमण्डल निरंतर गर्म होता रहता है। इस प्रकार वायुमण्डल की अनेक गैसें धरातल की बहिर्गामी दीर्घ तरंग विकिरण की ऊषा को उसी प्रकार रोक लेती हैं जैसे हरित गृह कांच का बना होता है जो सूर्य की किरणों को तो प्रवेश करने देता है परन्तु धरातल से परावर्तित ऊषा को कांच की दीवार एवं छत द्वारा अवरोधित कर दिया जाता है जिससे हरित गृह के अंदर तापमान बढ़ जाता है।
1. हरित गृह प्रभाव एवं जलवायु
हरित गृह गैसों द्वारा पार्थिव विकिरण के निरंतर अवशोषण से निचला वायुमण्डल अधिक गर्म होने लगता है और वहां से ऊष्मा का धरातल की ओर प्रतिलोम विकिरण प्रारम्भ होता है। परिणामस्वरूप धरातल एवं निचले वायुमण्डल के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होने लगती है और स्थानीय प्रादेशिक तथा विश्वस्तरीय जलवायु में परिवर्तन होने लगता है।
वायुमण्डल में CO की सान्द्रता में वृद्धि एवं परिणामस्वरूप भूतल के तापमान में वृद्धि के संबंधों का काफी अध्ययन हुआ है जिनके परिणामी प्रभावों अर्थात जलवायु पर होने वाले प्रभावों के • बारे में पूर्वानुमान एक दूसरे के विपरीत एवं भ्रामक है।
संयुक्त राज्य अमेरिका की पर्यावरणीय संरक्षण एजेन्सी (1987) की विज्ञप्ति के अनुसार 2023 ई. तक वायुमण्डल में CO, एवं उसी के सामन हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करने वाली अन्य सूक्ष्म गैसों की सान्द्रता दोगुनी हो जायेगी जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान तापमान में 1.5°C से 4.5°C की वृद्धि हो जायेगी। एस. मैंनावे तथा आर. टी. वेबाराल्ड के सामान्य प्रतिरूप (Model) के अनुसार यदि वायुमण्डल में CO, का सान्द्रण वर्तमान स्तर से दोगुना हो जाता है तो भूतलीय तापमान में 2.0°C तथा जलीय चक्र की गतिशीता में 7% की वृद्धि संभव है लेकिन बादलों की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। एक अनुमान के अनुसार विगत सौ वर्षों में हमारी पृथ्वी के तापमान में 0.5 से 0.7°C की वृद्धि हुई है और 1880 से 1940 ई. के बाद उत्तरी गोलार्द्ध में जीवाश्म ईंधनों के जलाने से उत्पन्न हरित गृह गैसों के कारण 0.4°C की वृद्धि हुई है। परन्तु 1940 ई. के पश्चात औद्योगिकीकरण के कारण CO के सान्द्रण में वृद्धि होते हुए भी तापमान कम हुआ। है। दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तरी गोलार्ड से विपरीत परिणाम प्राप्त हुए हैं वहां 1940 से 1960 ई. तक तापमान में 0.6°C की निरंतर वृद्धि हुई है।
उपर्युक्त संदर्भ में एस.एच. स्नाइडर का मत है कि वायुमण्डलीय CO, सान्द्रण में दोगुने की वृद्धि हो जाने पर 300PPM से 600PPM में 15°C से 3.0°C की वृद्धि हो जायेगी। परिणामस्यरूप तापमान बढ़ने से वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन बढ़ेगा, बादल अधिक बनेंगे जिससे प्रवेरी सौर्थिक विकिरण का परावर्तन हो जायेगा और भूतल पर सूर्य ताप कम प्राप्त होगा। इन सबका परिणाम यह होगा कि पृथ्वी का तापमान कम हो जायेगा।
वायुमण्डलीय हरित गृह गैसों की सान्द्रता एवं परिणामस्वरूप तापमान की स्थिति में यद्यपि परस्पर विरोधी कथन अवश्य हैं परन्तु अधिकतर वैज्ञानिक इस मत पर सहमत हैं कि वायुमण्डल में इन गैसों की अत्यधिक सान्द्रता के कारण भूतल एवं निचले धरातल का तापमान अवश्य बत जायेगा। तापमान वृद्धि के कारण स्थानीय प्रादेशिक एवं विश्वस्तरीय जलवायु में परिवर्तन हो
जायेगा। चूंकि जीवमण्डलीय पारिस्थितिक तंत्र का विकास जलवायु द्वारा नियंत्रित होता है अतः जीवमण्डल सबसे अधिक प्रभावित होगा।
मान्टेसरी की शिक्षा पद्धति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
2.फसलों एवं कृषि पर प्रभाव
हरित गृह प्रभाव से कृषि एवं फसलों में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन निम्न प्रकार से किया जा सकता है
- (i) तापमान में हरित गृह प्रभाव के कारण 1.5-4.5°C की वृद्धि हो जाने से वाष्पोत्सर्जन की क्रिया बढ़ जायेगी जिससे गेहूं एवं मक्का नमी की कमी के कारण झुलस जायेंगे।
- (ii) हरित गृह प्रभाव के कारण वाष्पन में वृद्धि एवं वर्षण में हास होगा, परिणामस्वरूप मृदा में नमी की कमी हो जायेगी। विश्व के अधिकतर देशों में कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार सम्पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र की अपार क्षति होगी।
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