हॉब्स के शासन सम्बन्धी विचार- हॉब्स की सम्प्रभुता की धारणा पर ही उसकी शासन एवं कानून सम्बन्धी धारणा आधारित है। उसके शासन के वर्गीकरण का आधार यह है कि प्रभुत्व शक्ति कितने व्यक्तियों में निहित है। इस आधार पर वह शासन के तीन रूप बताता है। सम्प्रभुता यदि एक व्यक्ति में निहित हो तो वह राजतंत्र है, यदि कुछ व्यक्तियों में निहित हो तो वह कुलीनतंत्र है और यदि सभी व्यक्तियों में निहित हो तो वह लोकतंत्र है। वह कहता है कि इन तीनों रूपों के अतिरिक्त न तो शासन का अन्य कोई रूप होता है और न अरस्तू की तरह उसका कोई भ्रष्ट स्वरूप। वह मिश्रित शासन व्यवस्था का भी विरोधी है। उसके अनुसार यह एक मूर्खतापूर्ण विचार है। उसके द्वारा बताये गये शासन के उपरोक्त तीनों रूपों से वह राजतंत्र को सर्वश्रेष्ठ मानता है. क्योंकि यह एक स्थायित्व और समृद्धि लाने वाली और विभिन्न संघर्षो को कम करने वाली व्यवस्था है।
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कानून सम्बन्धी विचार
हॉब्स के विचारों के अनुसार सम्प्रभुता का स्वरूप वैधानिक सम्प्रभुता का स्वरूप है। अतः उसका सम्प्रभु कानूनों द्वारा नियंत्रित नहीं है। वह कानून निर्माता तो है लेकिन स्वयं के सम्बन्ध में उन कानूनों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। कानून की परिभाषा करते हुए हॉब्स कहता है कि- “वास्तविक कानून उस व्यक्ति का आदेश है जिसे दूसरों को आदेश देने का अधिकार प्राप्त है।”