हॉब्स, लॉक, रूसो के सामाजिक समझौते के सिद्धान्त के अन्तर्गत सम्प्रभुता का वर्णन किया है। लेकिन सम्प्रभुता के सम्बन्ध में इन तीनों विचारकों के मत भिन्न-भिन्न हैं। रूसो ने हॉब्स तथा लॉक के विचारों का अनुकरण करके एक नये राजनीतिक दर्शन को जन्म दिया है। इसके विचार निम्न हैं-
हॉब्स का सम्प्रभुता का सिद्धान्त
हॉब्स के विचारों पर इंग्लैण्ड के गृह युद्ध का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। वह गृह युद्ध को समाप्त करने के लिए निरंकुश राजतंत्र के समर्थन में था। अतः उसने एक ऐसे राजा के पक्ष में अपनी पुस्तक लेवियायन लिखी जो सर्वशक्तिशाली निरंकुश एवं समस्त अधिकारों से पूर्ण हो हम ने बोया के सम्प्रभुता के सिद्धान्त को संशोधित किया और उसके द्वारा शासक पर लगायी गयी सीमाओं को समाप्त कर दिया। इसके लिए उसने सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया कि यह समझौता एकपक्षीय था। व्यक्तियों ने आपस में समझौता करके अपने समस्त अधिकार एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह को सौंप दिये जो कि इस समझौते में सम्मिलित नहीं था। अतः वह किसी की शर्तों से भी बंधा हुआ नहीं था। हॉब्स का सम्प्रभु विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका सभी शक्तियों से पूर्ण है। वह राज्य और सरकार में कोई भेद नहीं मानता। राजा के पास सब अधिकार थे, लेकिन कर्त्तव्य कोई नहीं था। प्रत्येक व्यक्ति उसकी आज्ञा पालन के लिए बाध्य है। यदि वह ऐसा नहीं करता तो समाज पुनः प्राकृतिक अवस्था में पहुँच जायेगा।
इस कारण यह निरंकुश सम्प्रभु का समर्थक था राजा को प्रजा का अधिकार सौंपा गया है। यदि प्रजा का आत्मरक्षा का उद्देश्य सिद्ध नहीं होता तो उसको राजा का विरोध करने का अधिकार है जबकि उसके साथ बहुमत हो ।
लॉक का सम्प्रभुता सम्बन्धी सिद्धान्त
लॉक ने अपने विचारों का प्रतिपादन अपने ग्रन्थ में प्रतिपादित किया है। उसने यह ग्रन्थ 1988 ई. की रक्तहीन क्रान्ति के बाद लिखा जिसमें उसने क्रान्ति का समर्थन किया। उसने संवैधानिक शासन का समर्थन करके विलियम का औचित्य इंग्लैण्ड की राजगद्दी पर सिद्ध करना चाहा था। लॉक का सम्प्रभुता का सिद्धान्त हॉब्स से भिन्न है। लॉक के अनुसार- “व्यक्तियों ने आपस में समझौता करके अपने अधिकार हॉब्स की भाँति एक निरंकुश सम्प्रभु को नहीं दिये, बल्कि शान्ति तथा व्यवस्था स्थापित करने के लिए समाज का निर्माण किया। कुछ अधिकार सौंपकर मानव ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सम्पत्ति एवं जीवन रक्षा का दायित्व समाज को सौंप दिया। समाज ने दूसरा समझौता सरकार से किया और राज्य की व्यवस्था की। सरकार को संचालन के समाज ने कुछ अधिकार संपि, वह पूर्ण सत्ताधारी नहीं थी। यदि सरकार अपने उत्तरदायित्त्वों को पूरा नहीं करती तो उसको पदच्युत किया जा सकता है। इस प्रकार लॉक ने संवैधानिक शासन का समर्थन किया। व्यक्ति या व्यक्ति समूह के पास राजसत्ता है, लेकिन उसे समाज के अधीन रहना पड़ता है। सर्वोच्च शक्ति समाज में निहित है, शासक में नहीं। लॉक का शासक निरंकुश नहीं हो सकता था।
रूसो का सम्प्रभुता सम्बन्धी सिद्धान्त
रूसो लॉक के समान प्राकृतिक अवस्था को अच्छा मानता है जिसमें मानव में सहानुभूति, सहयोग तथा सामाजिकता की भावना थी। संयम के साथ-साथ मनुष्य में अपने पराये की भावना जाग्रत जिससे कलह, द्वेष, ईर्ष्या, उत्पन्न हो गये। रूसो के अनुसार इस अशान्त अवस्था को दूर करने के लिए सामाजिक समझौता किया गया। यह समझौता लॉक के समान ही समाज और व्यक्ति के मध्य हुआ लेकिन यह मानव को सामान्य इच्छा के अधीन बताता है। सामान्य इच्छा के आधार पर ही रूसो राज्य का निर्माण करता है।
रूसो के समझौते में मानव ने अपने सम्पूर्ण अधिकार समाज को सौंप दिये और समाज ने पुनः उनको लौटा दिया। इस प्रकार मनुष्य राज्य का अंग बन गया। वह सम्प्रभुता का भागीदार था। इस प्रकार सम्प्रभुता का निवास समाज में होता है। सामान्य इच्छा के कानूनों को कार्यान्वित करने के लिए सरकार की स्थापना की जाती है। यह सरकार सामान्य इच्छा के अनुसार कार्य नहीं करती है, तो उसको हटाया भी जा सकता है। रूसो ने सामान्य इच्छा के सिद्धान्त को अपनाकर सम्प्रभुता को जनता में निहित माना है और इस तरह उसने प्रजातन्त्र का समर्थन किया है। रूसो द्वारा समाज सम्प्रभुता का स्वामी है तथा वह निरंकुश है। उसकी वह निरंकुशता अटल तथा स्थायी है।
रूसो की सम्प्रभुता हॉब्स की सम्प्रभुता की भाँति पूर्ण रूप से निरंकुश है यहाँ तक कि उसने हॉस से भी अधिक उसको निरंकुश बना दिया है। हाँ एक स्थिति में सम्प्रभु का विरोध करने का अधिकार देता है। यदि वह प्रजा के आत्मरक्षा के उत्तरदायित्व को निभाये। रूसो किसी अवस्था में सामान्य इच्छा के उल्लंघन करने का अधिकार नहीं देता किन्तु इन दोनों में एक का अन्त महत्त्वपूर्ण है। हॉब्स इस सम्प्रभुता को राज्य के अध्यक्ष माने जाने वाले लेवियाथन में एक व्यक्ति में या अनेक व्यक्तियों के समूह में निहित मानता है किन्तु रूसो इसे समस्त जनता को प्रदान करता है। इस अन्तर को मूर्त रूप देने के लिए रूसो ने अपने ग्रन्थ सामाजिक समझौता के प्रथम संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर कटे सिर वाले लेवियायन का चित्र दिया या हॉब्स ने निरंकुश सत्ता राज्य को प्रदान की थी, वहीं रूसो ने प्रजा को प्रदान की थी। हॉब्स की भाँति रूसो भी यह मानता है कि सम्प्रभुता रखने वाला व्यक्ति उसे किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दे सकता है। रूसो ने राज्य के निरंकुश अधिकार का समर्थन करते हुए लिखा है कि, “प्रकृति जैसे प्रत्येक व्यक्ति को अपने • शरीर के अंगों पर निरंकुश अधिकार देती है वैसे ही सामाजिक अनुबन्ध उससे होने वाले राजनीतिक संगठन को अपने सब अंगों पर पूर्ण अधिकार प्रदान करता है। किन्तु हॉब्स के निरंकुश अधिकारों का आधार आवश्यकता से उत्पन्न भय की भावना है। रूसो इसका आधार सहमति को मानता है। प्रजा शासक को पूर्ण अधिकार अपनी इच्छा से सामाजिक अनुबन्ध प्रणाली द्वारा देती है कि इससे सब नागरिकों को लाभ पहुँच सके।
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इस प्रकार एक ओर रूसो जहाँ हॉब्स की भांति निरंकुश है वहीं लॉक की भाँति व्यक्ति के अधिकारों का प्रबल समर्थक है। उनकी सुरक्षा के लिए वह शासक को अनेक शर्तों में बाँध देता है। अपनी प्रारम्भिक रचनाओं के अन्तर्गत विषमता के उद्गम पर निबन्ध में वह कट्टर व्यक्तिवादी है। निश्चित ही उस पर लॉक का स्पष्ट प्रभाव है। लॉक ने सरकार की सत्ता को मर्यादित करते हुए कहा कि वह समाज का ट्रस्टी है जिसका कार्य व्यक्ति तथा समाज की भलाई करना है। रूसो ने लॉक के सहमति के सिद्धान्त को स्वीकार करते हुए दो संशोधन किये।
1.लॉक के अनुसार सामाजिक समझौता होने के समय जब एक बार इसे करने वाले अपनी सहमति प्रदान कर देते हैं तो उसके बाद में वह इसमें कोई रुचि नहीं लेते, जब तक कि शासन सत्ता उनके वैयक्तिक अधिकारों का हनन न करे। किन्तु रूसो की सर्वोच्च शासक जनता सतत क्रियाशील और जागरूक होते हुए सामान्य इच्छा द्वारा नियम निर्माण के कार्य में लगी रहती है।
2. दूसरा अन्तर यह है कि लॉक बहुमत के शासन को श्रेष्ठ समझते। हुए उसे बहुत महत्त्व दे देता है, लेकिन रूसो ने मनमाने और अत्याचारपूर्ण शासन की सम्भावना को समाप्त करने के लिए सामान्य इच्छा के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इसके अन्तर्गत मनुष्यों को एक बार अधिकार देने के बाद फिर से सारे अधिकार प्राप्त हो जाते हैं और जिसका उद्देश्य सदैव जनकल्याण है। इस प्रकार रूसो का सिद्धान्त हॉब्स की भाँति निरंकुश होते हुए भी लॉक से अधिक लोकतंत्रात्मक है। सामान्य इच्छा के सिद्धान्त के आधार पर उसने हॉब्स और लॉक के विचारों का सम्मिश्रण किया है। एक ओर सम्प्रभुता का अधिकार बहुमत के हाथ में न देकर सम्पूर्ण समाज को प्रदान कर वह लॉक से भी अधिक प्रजातंत्र का अधिकार बहुमत के हाथ में न देकर सम्पूर्ण समाज को प्रदान कर वह लॉक से भी अधिक प्रजातंत्र का समर्थक बन गया है। दूसरी ओर सामान्य इच्छा एक व्यक्ति की भी हो सकती है। यह कहकर उसने निरंकुश वाद का समर्थन किया है। वास्तव में रूसो की विचारधारा लॉक के वैधानिकवाद तथा हाँसा के निरंकुशवाद के मध्य एक समझौता था।