जातिवाद क्या है? जातिवाद राष्ट्रीय एकीकरण में किस प्रकार बाधक हैं?

जातिवाद

श्री०के० एम० पाणिकार के अनुसार “राजनीति की भाषा में उपजाति के प्रति निष्ठा की भावना हो जातिवाद है।”

काका केलकर के अनुसार “जातिवाद एक अबाधित अन्य और सर्वोच्च समूह भक्ति है, कि न्याय, औचित्य, सामान्तः और विश्व बन्धुत्व की उपेक्षा करती है।”

एन० प्रसाद के अनुसार” जातिवाद राजनीति में परिणित जाति के प्रति निष्ठा है।”

जातिवाद के दुष्परिणाम

राष्ट्रीय एकीकरण में बाधक जातिवाद के फलस्वरूप अनेक गम्भीर समस्याएं उत्पन्न हुई है। ये समस्याएं निम्न हैं:

(1) जातिवाद प्रजातंत्र विरोधी है

आजादी के बाद भारत ने प्रजातंत्र को अपनाया। स्वतंत्रता भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 (1) में कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा, किन्तु जातिवाद प्रजातंत्र के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

यह प्रजातंत्र के तीनों मूल सिद्धांतों स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारा पर प्रहार करता है। जातिवाद में ऊंच-नीच की भावना पायी जाती है। जाति में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का निर्धारण जन्म से ही होता है, इसमें विवाह, शिक्षा, व्यवसाय सभी का क्षेत्र निश्चित है। जातिवाद व्यक्ति के गुण पर नहीं, उसके जन्म पर जोर देता है, जबकि प्रजातंत्र व्यक्ति का मूल्यांकन उसके गुणों के आधार पर करता है। जातिवाद संकुचित निष्ठा, अंध-भक्ति एवं पक्षपति पर आधारित है। जातिवाद प्रजातंत्र की तरह समानता पर नहीं वरन् जन्म से ही असमानता पर आधारित है। एक निम्न जाति में जन्म लेने वाला व्यक्ति चाहे कितना ही गुणी, शिक्षित एवं दक्ष क्यों न हो, यह उच्च जाति के व्यक्ति के समकक्ष नहीं माना जायेगा। विभिन्न जातियों के बीच असमानता का सिद्धांत स्वीकार किये जाने के कारण जातिवाद में भाई-चारे की भावना का अभाव पाया जाता है। जातीय भेद के कारण जातीय तनाव व द्वेष, विषमता एवं घृणा उत्पन्न होती है।

(2) जातिवाद राष्ट्रीय

एकीकरण के मार्ग में बाधक है-जातिवाद के कारण छोटे-छोटे जातीय समूह संगठित हो जाते हैं तथा व्यक्ति की सामुदायिक भावना बहुत अधिक संकुचित हो जाती है। वह राष्ट्रीय दृष्टिकोण से विचार नहीं करके जातिगत कल्याण की दृष्टि से सोचता है। समाज के सैकड़ों-हजारों छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त हो जाने और अपनी जाति या उपजाति को सर्वोपरि समझने से स्वस्थ राष्ट्रीयता के विकास एवं राष्ट्रीय एकीकरण में बाधा उपस्थित होती है। जातिवाद के कारण संविधान की धारा 15 (1) की अवहेलना होती है। इस धारा में बतलाया गया है कि राज्य किसी के साथ किसी भी आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करेगा। वास्तविकता यह है कि अनेक राजनेता और बड़े-बड़े अधिकारी भी जातिवाद की संकुचित मनोवृत्ति के शिकार हैं जो उन्हें राष्ट्रीय हितों की कीमत पर संकुचित जातिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रेरित करती है।

(3) जातिवाद औद्योगिक

कुशलता में भी बाधक आज देश में अनेक उद्योग-धंध का विकास होता जा रहा है जिनमें योग्य एवं प्रतिभाशाली व्यक्तियों को उच्च पदों पर आसीन करने की आवश्यकता है। होता यह है कि बड़े-बड़े उद्योगों में लोग अपनी अपनी ही जाति के व्यक्तियों को उच्च पदों पर आने का अवसर देते हैं। ऐसी स्थिति में औद्योगिक कुशलता में कमी आती है। और श्रेष्ठ प्रतिभाओं का लाभ समाज को नहीं मिल पाता। आज यह बात जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में दिखायी पड़ती है।

(4) नैतिकता का पतन

जातिवाद कुछ सीमा तक नैतिक पतन के लिए भी उत्तरदायी है। जातिवाद की भावना व्यक्ति को पक्षपातपूर्ण व्यवहार के लिए प्रेरित करती है। अनेक नेता, मंत्री तथा उच्च पद प्राप्त अधिकार अपनी जाति के लोगों के साथ पक्षपात करते रहे हैं. भाई-भतीजावाद को पनपाते रहे हैं। वे सभी सुविधाएं अथवा लाभ अपनी जाति वालों को पहुंचाने का प्रयत्न करते रहे हैं। परिणाम यह हुआ है कि राजनीति एवं प्रशासन के क्षेत्र में भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिला है।

(5) भेदभाव को बढ़ाया

जातिवाद व्यक्ति-व्यक्ति के बीच भेदभाव की दीवार खड़ी कर देता है। व्यक्ति अपनी जाति से ऊपर उठकर समाज, राष्ट्र और मानवता के दृष्टिकोण से सोच ही नहीं पाता। जातिवाद के कारण विभिन्न जातियों के बीच जातीय संघर्ष बढ़े हैं। यह सारी स्थिति किसी भी दृष्टि से श्रेयस्कर नहीं है।

(6) भ्रष्टाचार

जातिवाद की भावना ने सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार एवं भाई-भतीजावाद को जन्म दिया है। जाति के नाम पर वोट मांगना एवं देना, उम्मीदवार खड़े करना एक आम बात है। ऐसे व्यक्तियों में राष्ट्रीय निष्ठा के स्थान पर जातीय निष्ठा ही अधिक होती है, लोगों में संकुचित मनोवृत्ति पैदा होती है, सरकारी एवं गैर-सरकारी नौकरियों में तथा लाभ प्रदान करने में अपनी जाति के व्यक्ति को ही प्राथमिकता दी जाती है। इससे विभिन्न जातियों में परस्पर अविश्वास, मनमुटाव एवं संघर्ष पैदा होता है। इस प्रकार जब व्यक्ति अपनी जाति के सदस्यों के लिए गैर-कानूनी कार्य भी करने लगता है तो भ्रष्टाचार पनपता है।

(7) सामाजिक समस्याओं का उदय

कठोर जातीय नियमों के कारण ही समाज में आज अनेक समस्याएं पायी जाती हैं। बाल-विवाह, दहेज प्रथा, विधवा पुनर्विवाह पर रोक, कुलीन विवाह आदि समस्याएं जातिवाद की ही देन हैं। परिवार एवं विवाह के सन्दर्भ में व्यक्ति जाति द्वारा निर्धारित नियमों का ही पालन करता है क्योंकि वह जानता है कि ऐसा न करने पर उसे जाति से बहिष्कृत कर दिया जायेगा और जाति के सदस्यों का उसे संरक्षण प्राप्त नहीं होगा। जातिवाद की भावना रूढ़िवादी विचारों की समर्थक एवं नवीन परिवर्तन की विरोधी है। अतः जाति से जनित समस्याएं अनेक प्रयत्नों एवं आंदोलनों के बावजूद भी समाप्त नहीं हो पायी है।

(8) जातीय संघर्ष

जातिवाद की भावना ने सामाजिक तनाव एवं जातीय संघर्षो को भी जन्म दिया है। जब एक जाति अपने को श्रेष्ठ समझकर अपने सदस्यों का ही पक्ष लेती है और अन्य जातियों से घृणा करती है तो जातियों में परस्पर टकराव पैदा होता है, जातीय दंगे, मार-पीट, तोड़-फोड़ एवं आगजनी की घटनाएं घटती है जाटों एवं राजपूतों के बीच जातिवाद के आधार पर अनेक संघर्ष हुए हैं।

सांस्कृतिक सापेक्षवाद (Cultural Relativism) क्या है?

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि जातिवाद व्यक्ति-व्यक्ति के बीच भेदभाव की दीवार खड़ी करता है। व्यक्ति अपनी जाति से ऊपर उठकर समाज, राष्ट्र और मानवता के दृष्टिकोण से सोच ही नहीं पाता। यह स्थिति किसी भी दृष्टि से श्रेयस्कर नहीं कही जा सकती है। अतः स्पष्ट है कि जातिवाद राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बहुत बड़ी बाधा है।

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