कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।

कबीर का जीवन-परिचय – जन्म निर्गुण भक्तिधारा के ज्ञानमार्ग की उपासना पद्धति का अनुसरण कर निराकार ब्रह्म के उपासक सन्त कबीरदास के जीवन से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यो की प्रमाणिकता संदिग्ध है। कुछ विद्वानों के अनुसार जो उनके सम्प्रदाय के अनुयायी थे, कबीर की जन्म तिथि स० १४५५ (सन् १३६६ ई०) जेट पूर्णिमा दिन चन्द्रवार को मानी जाती है, इसका उल्लेख ‘कबीर-चरित्र-बोध’ में मिलता है, जो इस प्रकार है-

“चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक टाट ठए।

जेठ सुदी बरसायत को, पूरनमासी प्रकट भए

किन्तु जेष्ठ की पूर्णिमा रा० १४४५ को गणनानुसार शुक्रवार को है और १४५६ सं. की जेष्ठ पूर्णिमा को मंगलवाल है अतः सम्भवतः १४४४ सम्वतसर के व्यतीत हो जाने के बाद वाला सन् ही कबीर का जन्म है अर्थात् सं० १४५६ को इनका जन्म हुआ होगा। किन्तु अभी भी कबीर के जन्म के सम्बन्ध में विवाद ही है।

माता-पिता

कबीर के माता-पिता के सम्बन्ध में भी अनेक मत हैं। कुछ लोग इन्हें विधवा ब्राह्मणी। का पुत्र मानते हैं तथा कुछ लोग इनके माता-पिता का नाम नीमा और नीरू बताते हैं, नीमा और नीरू जुलाहा दम्पत्ति थे, कहा जाता है विधवा ब्राह्मणी ने कबीर को जन्म देकर लोक-लआ के भय से इन्हें जन्म के तुरन्त बाद छोड़ दिया था जिसको नीमा नीरू नामक जुलाहा दम्पत्ति ने अपना लिया था।

जन्म-स्थान

कबीर के जन्म के स्थान के सम्बन्ध में भी मतभेद है। कुछ लोग इनका जन्म स्थान काशी मानते हैं किन्तु कबीर ने एक स्थान में उन्होंने ‘कुरह’ या ‘कुलपक्ष’ (कुदेश) कहा है जो काशी नहीं हो सकता शायद वह किसी ऐसे क्षेत्र में पैदा हुए हो जो अत्यधिक पिछड़ा हो और वहाँ आचार-विचार की अति शिथिलता थी। यह प्रदेश क प्रदेश हो सकता है, जहाँ मुसलमानों की बहुलता थी।

पारिवारिक स्थिति

कबीर की पत्नी का नाम लोई कहा जाता है किन्तु कबीर ने कई बार अपनी पत्नी के नाम का संकेत अपने काव्य में किया है यथा

“मेरी बहुरिया का धनिआ नाउ राखिओ राम जनिया नाऊ

गुरु – कबीर निर्गुण आराधक होते हुए भी वैष्णव धर्मानुयायी थे। गुरु रामानन्द उनके गुरु थे, कहा जाता है कि वाराणसी के घाट पर ब्रह्म मुहुर्त में सीढ़ियों पर लेटकर धोखे से रामानन्द का पैर कबीर के ऊपर पड़ गया और रामानन्द के मुँह से निकला राम-राम कबीर का गुरु-मन्त्र बन गया था।

मृत्यु – कबीर की मृत्यु के सम्बन्ध में यह किंवदन्ती है कि वे अपने जीवन काल में बनारस में रहे किन्तु मरते समय (इस सामाजिक अन्धविश्वास को तोड़ने के लिए कि मगहर में मरने वाले को नरक मिलता है) वे मृत्यु के समय मगहर आ गये और वहीं से. १५५१ को कबीर का प्राणान्त हुआ।

साहित्यिक व्यक्तित्व – कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे उन्होंने एक स्थान पर स्वयं कहा है-

“मसि कागद छुयो नहीं, कलम गही नहीं हाथ

अतः यह सत्य है कि कबीर की कोई रचना लिपिबद्ध नहीं है। इसके पश्चात् भी उनके द्वारा रचित कई ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है। इन ग्रन्थों में ‘अगाध-मंगल’, ‘हंस-मुक्तावली’, ‘ज्ञानसागर’ ‘कबीर की साखी’, ‘बीजक’, ‘ब्रह्म निरुपण’, ‘अक्षर-भेद की रमैनी’, ‘उग्र-गीता’ ‘कबीर की वाणी’, ‘कबीर- गोरस की गोष्ठी’, ‘मुहम्मद बोध’, ‘रेखता विचार माला’, ‘विवेक सागर’, ‘शब्दावली’ आदि प्रमुख हैं।

दहेजप्रथा एक सामाजिक कलंक पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

१. साखी – ‘साखी’ से आशय है साक्षी अर्थात् इसमें कबीर की शिक्षा और सिद्धान्तों से सम्बन्धित बाते दोहों के माध्यम से कही गयी है।

२. सवद – इस संग्रह में कबीर के गेयपद संग्रहीत है, पद गेय होने के कारण इनमें संगीतात्मकता पूर्णरूप से विद्यमान है। इन पदों में कबीर के ब्रह्म से अलौकिक प्रेम और उनकी साधनापद्धति का निरूपण किया गया है।

३. रमैनी – इन पदों में कबीर के दार्शनिक एवं रहस्यवादी विचार व्यक्त हुए हैं. इसकी रचना चौपाई छन्द में है।

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