मुन्ज की उपलब्धियों पर प्रकाश
सीयक द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उसका दत्तक पुत्र मुंज सन् 973 ई. में सिंहासन पर बैठा प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार सीयक द्वितीय ने मुंज को पास पर पड़ा हुआ पाया था अतः कोई पुत्र न होने के कारण उसने उसका अपने पुत्र की भाँति ही पालन-पोषण किया। मुंज घास पर पाये जाने के कारण ही उसका नाम मुंजराज रखा गया। बाद में सीयक को अपना पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम सिन्धुराज रखा मुंज आगे चलकर इतिहास में वाक्पति और उत्पलराज के नाम से प्रसिद्ध हुआ, अपनी वीरता और प्रशासनिक व्यवस्था से मुंज ने परमार वंश को अभूतपूर्व गौरव प्रदान किया।
(1) कल्चुरियों से युद्ध
मुंजराज एवं कलचुरि नरेश युवराज के बीच हुए युद्ध में युवराज को पराजय का समाना करना पड़ा परन्तु बाद में मुंजराज और युवराज के मध्य सन्धि हो गयी और मुंज ने उसके जीते हुए भू-भाग को वापस कर दिया।
(2) हूणों से युद्ध
विक्रमादित्य पंचम के कौमदान पर से प्रकट होता है कि मुंज ने हूणों को परास्त किया था। हूणों ने सीयक द्वितीय के समय में भी परमार राज्य पर आक्रमण किये थे।
(3 ) गुहिलों से युद्ध
मुंज के समकालीन मेवाड़ राज्य में शक्तिकुमार शासन कर रहा था जो गुहिल वंश का शासक था। मुंज ने गुहिलों पर आक्रमण कर कुछ भू-भाग पर अधिकार कर लिया।
(4) चालुक्यों से युद्ध
कल्याणी की चालुक्य शाखा के शासक तैलप द्वितीय से मुंज की कट्टर शत्रुता थी। मुंज उसे छः बार परास्त कर चुका था. सातवीं बार मुंज तैलप द्वितीय द्वारा बन्दी बना लिया गया तैलप द्वितीय ने मुंज को कारागार में डाल दिया तथा बाद में उसकी हत्या कर दी गयी।
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मुंज की महानता
मुंज परमार शासकों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अपने साहस और शक्ति के बल पर मुन्ज ने परमार राज्य की सीमाओं में काफी विस्तार किया उसके समय में मालवा की राजधानी उज्जैन की ख्याति चारों दिशाओं में फैल गयी मुंज एक योद्धा के साथ-साथ एक विद्वान और कवि भी था। उसने कई विद्वानों को राज्याश्रय प्रदान किया। प्रसिद्ध विद्वान पद्मगुप्त जिसने नवसहशांक चरित नामक काव्य की रचना की मुंज की राजसभा में रहते थे। धनंजय और धनिक नामक विद्वान जिन्होंने क्रमशः दशरूपक और यशोरूपावलोक की रचना की, जैसे अन्य विद्वान भी उसकी राजसभा को सुशोभित करते थे। मुंज ने स्थापत्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया। अनेकों मन्दिरों और तालाबों का निर्माण करवाया। मुंज द्वारा बनवाया गया मुंज सागर आज भी विद्यमान है। इस प्रकार से मुंज ने परमार वंश की सीमाओं में विस्तार के साथ-साथ अपने समय में कला, साहित्य और स्थापत्य क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया।
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