मुन्शी प्रेमचन्द का संक्षिप्त जीवन परिचय बताइए।

मुन्शी प्रेमचन्द का जीवन परिचय – प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 में बनारस जिले में हुआ था। इनका नाम धनपतराय था। बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त अधिकांश समय तक शिक्षा विभाग में सम्मानित पद को सुशोभत करते रहे। आपकी प्रथम हिन्दी कहानी ‘सौत’ सरस्वती के दिसम्बर सन् 1915 के अंक में प्रकाशित हुई थी। आपने गाँधी दर्शन से पूर्ण प्रभावित होकर सक्रिय रूप से गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और जीवन की यथार्थ अनुभूति लेकर और विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए क्रमश: ‘मर्यादा’, ‘माधुरी’, ‘जागरण’ और ‘हंस’ आदि पत्रों का सम्पादन किया।

प्रेमचन्द जी का कहानी साहित्य इतना विशाल और विस्तृत है कि इसमें सम्पूर्ण युग की आत्मा का समावेश हो गया है। ‘प्रेमचन्द’ का आविर्भाव हिन्दी कहानी साहित्य के प्रांगण में उस उषाकाल में हुआ जब कहानी रूपी बालरवि का मन्द मन्द प्रकाश क्षितिज पर दिखाई देने लगा था, उपर्युक्त विचारों में सत्यता का अभाव है। वास्तव में प्रेमचन्द जी का महत्व इसी में है। उन्होंने कहानी में नव-जीवन शक्ति को संस्कार तथा स्फूर्ति प्रदान की। कहानी में बाह्य घटनाओं का सन्निवेश किया। आकर्षक घटनाओं का संकलन और क्रमबद्ध आयोजन वस्तुतः उनकी कहानी कला की प्रमुख विशेषता है। उनका प्रदेय इस दृष्टि से भी है कि सर्वप्रथम उन्होंने हिन्दी पाठकों का ध्यान उच्चवर्ग से हटाकर मध्य और विशेषतः निम्न वर्ग के लोगों की नित्य प्रति समस्याओं की ओर आकर्षित किया।

अज्ञेयजी का जीवन-परिचय दीजिए।

मानवता के सुख-दुख को यथार्थ प्रतीत करके अपनी संवेदनामूलक अनुभूति को अपनी क्रियात्मक कहानियों में अत्यन्त सुन्दर स्वाभाविक और कलात्मक परिपूर्णता के साथ व्यक्त करते हैं। ‘रानी सारन्या’, ‘कफन’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘पंच परमेश्वर आत्माराम’, ‘नमक का दरोगा’, ‘पूस की रात’, ‘सुजान भगत’, ‘मंत्र’, ‘सवा सेर गेहूँ’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘विध्वंस’, ‘बूढ़ी काकी’ आदि उनकी उत्कृष्ट कहानी कला की परिचायिका है। प्रेमचन्द जी आज भी प्रासंगिक है, वह किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं।

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