महापद्म नन्द
भारतीय तथा विदेशी दोनों ही साक्ष्य नन्दों को निम्न वर्णीय मानते हैं। पुराणों के अनुसार शिशुनाग वंश का अन्त करने वाला महापद्म नन्द शिशुनाग वंश के अन्तिम शासक नन्दिवर्धन (महानन्दी) की शूद्रा स्वी के गर्भ से उत्पन्न हुआ। विष्णु पुराण के अनुसार, ‘महानन्दी की शूद्रा से उत्पन्न महापद्म अत्यन्त लोभी तथा बलवान एवं दूसरे परशुराम के समान सभी क्षत्रियों का विनाश करने वाला होगा। जैन ग्रन्थ परिशिष्टपर्वन के अनुसार वह नापित पिता और बेश्या माता का पुत्र था। आवश्यक सूत्र उसे नापितदास (नाई का दास) कहता है। महावंश टीका में नन्दों को अज्ञात कुल का बताया गया है जो डाकुओं के गिरोह का मुखिया था। उसने अवसर पाकर मगध पर बलपूर्वक अधिकार जमा लिया। जैनमत की पुष्टि विदेशी विवरणों से भी हो जाती है। विदेशी विवरणों में विशेषकर यूनानी लेखक कर्टियस तथा डियोडोरस का उल्लेख किया जा सकता है। कर्टियस के अनुसार, सिकन्दर के समकालीन मगध के नन्द सम्राट अग्रमीज (यह संस्कृत के अग्रसेन अर्थात् उग्रसेन का पुत्र का रूपान्तर है) के विषय में लिखते हुए बताता है कि उसका पिता जाति का नाई था। वह अपनी सुन्दरता के कारण रानी का प्रेम पात्र बन गया तथा उसके प्रभाव से राजा का विश्वास प्राप्त कर उसके अत्यन्त निकट पहुँच गया।
उसने छल से राजा की हत्या कर दी तथा राजकुमारों के संरक्षण के बहाने कार्य करते हुए उसने राजगद्दी हथिया ली। अन्ततः उसने राजकुमारी की भी हत्या कर दी तथा वर्तमान राजा का पिता हुआ। यहाँ कर्टियस ने जिस राजा की चर्चा की है, वह नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनन्द ही था। महाबोधि वंश में कालाशोक के 10 पुत्रों का
उल्लेख हुआ है। सम्भव है वे सभी अल्पवयस्क रहे हों तथा महापद्मनन्द उसका संरक्षक रहा हो। उसी प्रकार डियोडोरस लिखता है कि धनानन्द का नाई पिता सुन्दर स्वरूप का होने के कारण रानी का प्रेम पात्र बन गया। रानी ने अपने वृद्ध पति की हत्या कर दी तथा अपने प्रेमी को राजा बनाया। वर्तमान शासक उसी का उत्तराधिकारी था। इस प्रकार जहाँ कर्टियस अन्तिम शिशुनाग राजा का हत्यारा प्रथम नन्द शासक को बताता है वहाँ डियोडोरस उसकी रानी पर हत्या का लोछन लगाता है। महाबोधिवंश में महापद्मनन्द का नाम उग्रसेन मिलता है। उसका पुत्र धनानन्द सिकन्दर का समकालीन था। इस प्रकार नन्द वंश शूद्र अथवा निम्न वर्ण से सम्बन्धित था। पुराणों के विवरण से स्पष्ट है कि इस वंश का संस्थापक क्षत्रिय पिता (महानन्दी) तथा शूद्रा माता की सन्तान था। मनुस्मृति में इस प्रकार से उत्पन्न सन्तान को अपसद अर्थात् निकृष्ट बताया गया है।
नन्द वंश में कुल 9 राजा हुए और इसी कारण उन्हें नवनन्द कहा जाता है। महाबोधिवंश में उनके नाम इस प्रकार मिलते हैं- (1) उग्रसेन (2) पाण्डुक (3) पाण्डुगति (4) भूतपाल (5) राष्ट्रपाल (6) गोविषाणक (7) दशसिद्धक (8) कैवर्त (9) धन। इसमें प्रथम अर्थात् उग्रसेन को ही पुराणों में महापद्म कहा गया है। शेष आठ उसी के पुत्र थे।
महापद्म नन्द की उपलब्धियाँ
नन्दों के समय तक मगध के सिंहासन पर बैठने वाले राजाओं में महापद्मनन्द सबसे शक्तिशाली सिद्ध हुआ। उसके शासन काल की प्रमुख घटनाओं के विषय में जानकारी पुराणों में मिलती है। उसे कवि का अंश, सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला (सर्वक्षशतक) दूसरे परशुराम के अवतार आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। उसने अपने समकालीन प्रमुख राजवंशों को हराकर एक छत्र शासन की स्थापना की तथा एकराट की उपाधि धारण की। उसने अपने समकालीन निम्नलिखित राजवंशों को विजित किया
(1) इक्ष्वाकु – इस वंश के लोग कोशल में शासन करते थे। वर्तमान अवध को क्षेत्र इस राज्य के अन्तर्गत था। महापद्मनन्द द्वारा कोशल विजय की पुष्टि सोमवेदकृत कथासरितसागर से भी होती है। तदनुसार अयोध्या के समीप नन्दों का एक सैनिक शिविर था।
(2) पाञ्चाल- इस राजवंश के लोग वर्तमान रुहेलखण्ड (बरेली-बदायूँ-फर्रुखाबाद क्षेत्र) में शासन करते थे। ऐसा लगता है कि महापद्म के पहले उनका मगध से कोई संघर्ष नहीं हुआ था।
(3) काशी- इससे तात्पर्य काशी के वंशजों से हैं। बिम्बिसार के समय से ही काशी मगधका एक प्रान्त था। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जिस समय शिशुनाग ने गिखिज को अपनी राजधानी बनाई, उसने अपने पुत्र को बनारस का उपराजा नियुक्त किया था। ऐसा लगता है कि इसी वंश के उत्तराधिकारी की हत्या कर महापद्मनन्द ने काशी को प्राप्त किया था।
(4) हैहय- इस राजवंश के लोग नर्मदा नदी के एक भाग पर शासन करते थे। उसकी राजधानी माहिष्मती थी। इसे भी मगध में सम्मिलित कर लिया गया था।
( 5 ) कलिंग यह राजवंश उड़ीसा प्रान्त में शासन करता था। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है कि किसी नन्द राजा ने कलिंग के एक भाग को जीता था।
(6) अश्मक- इस वंश के लोग आन्ध्र प्रदेश की गोदावरी सरिता के तट पर शासन करते थे। आन्ध्र प्रदेश के निजामाबाद के समीप नवनन्द देहरा नामक एक नगर स्थित है। कुछ विद्वानों के अनुसार वह इस प्रदेश में नन्दों के आधिपत्य का सूचक है। परन्तु इस विषय में हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कह सकते।
(7) कुरू- मेरठ, दिल्ली तथा बानेश्वर के भू-भाग पर कुरु राजवंश का शासन था। इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ में थी।
(8) मैथिल – मंचित लोग मिथिला के निवासी थे। मिथिला की पहचान नेपाल की सीमा में स्थित वर्तमान जनकपुर से की गई है।
(9) शूरसेन- आधुनिक ब्रजमण्डल की भूमि पर शूरसेन राजवंश का शासन था। उसकी राजधानी मथुरा थी।
(10) वीतिहोत्र – पुराणों के अनुसार वीतिहोत्र लोग अवन्ति के प्रद्योतों तथा नर्मदा तटवर्ती हैहयों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित थे। सम्भवतः उनका राज्य इन्हीं दोनों के बीच स्थित रहा होगा।
महापद्म नन्द का साम्राज्य विस्तार
उपरोक्त विजयों के पश्चात् महापद्मनन्द ने मगध को एक विशाल साम्राज्य में परिणित कर दिया। इस प्रकार महापद्मनन्द के प्रयत्नों से प्राचीन भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमाएँ गंगाघाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गई। विन्ध्यपर्वत के दक्षिण में विजय स्थापित वाला वह पहला मगध का शासक था। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से भी उसकी कलिंग विजय सूचित होती है।
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इसके अनुसार नन्द महापद्म नन्द का साम्राज्य विस्तार उपरोक्त विजयों के पश्चात् महापद्मनन्द ने मगध को एक विशाल साम्राज्य में परिणित कर दिया। इस प्रकार महापद्मनन्द के प्रयत्नों से प्राचीन भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमाएँ गंगाघाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गई। विन्ध्यपर्वत के दक्षिण में विजय स्थापित वाला वह पहला मगध का शासक था। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से भी उसकी कलिंग विजय सूचित होती है। इसके अनुसार नन्द