पूर्व प्राथमिक शिक्षा की परिभाषा एवं उद्देश्य लिखिए।

पूर्व प्राथमिक शिक्षा की परिभाषा

पूर्व प्राथमिक शिक्षा वह शिक्षा है जो तीन से छः वर्ष के आयु समूह को दी जाती है। यह औपचारिक शिक्षा का प्रथम चरण है। इसे पूर्व प्राथमिक शिक्षा के नाम से भी जाना जाता है। पूर्व प्राथमिक शिक्षा भिन्न-भिन्न स्वरूपों में दी जा रही है, जैसे-आँगनबाड़ी, नर्सरी स्कूल, पूर्व-प्राथमिक विद्यालय, प्रीप्रेटरी स्कूल, किंडरगार्टन, मॉन्टेसरी स्कूल और सरकार एवं निजी विद्यालयों के पूर्व प्राथमिक अनुभाग।

पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की संकल्पना पूर्व-

प्राथमिक शिक्षा की संकल्पन है कि तीन से छः वर्ष की आयु के सभी बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने के लिए सार्वयामिक, समतावादी, आनन्ददायी, समावेशित और बच्चों के परिवेश में से मेल खाते सीखने के अवसरों को समुन्नत किया जाये। यह सब तभी सम्भव हो पायेगा। जब अभिभावक और शिक्षक भावनात्मक रूप से समर्थन दे। संस्कृति से जुड़े, बाल-केन्द्रित प्रोत्साहनवर्धक अधिगम परिवेश सृजित करने में सहभागी बनें। इसका लक्ष्य है कि प्रत्येक बच्चे की क्षमताओं का उसके उच्चतम स्तर तक विकास हो ताकि खेल और विकासात्मक प्रतिमानों के अनुरूप अभ्यास द्वारा जीवनपर्यन्त रहने वाले अधिगम की मजबूत नींव तैयार हो सके। यह पाठ्यचर्या इस बात को भी महत्त्व देती है कि सकारात्मक दृष्टिकोण, अच्छे मूल्य, समीक्षात्मक चिंतन के कौशलों, सहयोग, संप्रेषणा, रचनात्मकता, तकनीक, साक्षरता और सामाजिक भावनात्मक विकास भी हो। इस पाठ्यचर्या की यह भी सोच है कि जब बच्चे पूर्व-प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक विद्यालय की ओर कदम बढ़ाएँ उन्हें किसी प्रकार की भावनात्मक परेशानी न हो और वे भविष्ट में रचनात्मक अ व संतोषप्रद जीवन का आनंद ले सकें।

पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य

  1. एक ऐसे बाल अनुरूप वातावरण का निर्माण करना जहाँ सभी बच्चे अपना महत्त्व समझें, अपने आप में सम्मानित व सुरक्षित महसूस करें और स्वयं के प्रति सकारात्मक भाव रखें।
  2. बच्चों में बेहतर स्वास्थ्य, खुशहाली, पोषण, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी अच्छी, आदतों के लिए मजबूत नींव डालना।
  3. बच्चों को ऐसा परिवेश देना जो उन्हें प्रभावशाली संप्रेषक बनने में मददगार हो और स जहाँ वे प्रभावशाली तरीके से सुनना-बोलना सीख सकें।
  4. बच्चों को लगन से सीखने वाला बनने, समीक्षात्मक रूप से सोच सकने, रचनात्मक बनने और अपने परिवेश से सहयोग, संवाद और जुड़ाव स्थापित कर सकने में मदद करना। पूर्व-प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक विद्यालय में सहज परिगमन के लिए तैयार करना।
  5. अभिभावकों और समुदाय के साथ भागीदार बनकर काम करना जिससे सभी बच्चों को पनपने के अवसर मिल सकें।

विशेषताएँ

पूर्व-प्राथमिक विद्यालय के बच्चे अपने परिवेश में रंगों, आकृतियों, ध्वनियों, आकारों और नमूनों के प्रति अत्यन्त जिज्ञासु और उत्साही होते हैं। उनकी अपने आस पास के परिवेश को जानने-समझने की और विभेदीकरण की क्षमता दिन-प्रतिदिन समृद्ध होती जाती है। यह आरम्भिक अधिगम बड़ों और साथियों दोनों ही के साथ संप्रेषण से होता है जिसमें भाषा की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बच्चों को इस प्रकार के हर अवसर उपलब्ध करवाने चाहिए जिससे वे अपने आस-पास और इससे भी कहीं आगे जाकर माननीय सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश को समझने के लिए प्रश्न कर सकें और खोजबीन कर सकें।

अपने परिवेश की जाँच पड़ताल करते समय बच्चे अवलोकन करने, प्रश्न करने, चर्चा करने, अनुमान लगाने, विश्लेषण करने, खोजबीन और तरह-तरह की अवधारणाओं तथा विचारों की रचना करते हैं, उनमें सुधार करते हैं और इस प्रकार अवधारणाओं के प्रति समझ बनाते हैं वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना, एक-दूसरे के साथ मिलकर साझा करने की आदत डालना, अपनी बारी की प्रतीक्षा करना और मित्रों के साथ सहयोग करना सीखते हैं। बच्चे यह बताने में सक्षम हो जाते हैं कि वे कब खुश हैं और कब उदास हैं। अपने प्रति भी उनकी समझ आकार लेने लगती है। इसलिए प्रस्तुत पाठ्यचर्या में इस प्रकार की विशिष्ट विषयवस्तु और शिक्षण कला को अंतर्निहित किया गया है जो बच्चों की आयु और विकासात्मक जरूरतों को पूरा कर सके, साथ ही दिशा निर्देशक सिद्धांतों के रूप में सैद्धांतिक और अवधारणात्मक रूपरेखा का आधार बन सके। इस प्रकार से यह पाठ्यचर्या आयु विशेष में दिये जाने वाले अनुभवों में लचीले का प्रावधान तो प्रस्तुत करती ही है,

समाजीकरण के प्रमुख साधनों अथवा अभिकरणों की विवेचना कीजिये।

साथ ही नीति-निर्धारण में विविधता का भी ध्यान रखती है’ बहुस्तरीय, बहुआयु वर्ग वाली कक्षाओं की वास्तविकताओं का भी ध्यान रखती है और पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में जाने की प्रक्रिया सरल बनाती है। इसका परिणाम इस रूप में प्रतिबिंबित होता कि बच्चे अपने ‘स्व’ की छति के प्रति सकारात्मक भाव रखते हैं, अपने प्रति आत्मविश्वास पैदा करते हैं, बेहतर कार्य कर पाते है और इससे उनके विद्यालय में बने रहने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top