राजपूत काल में उत्तर भारत की राजनैतिक दशा पर प्रकाश डालिए।

राजपूत काल में उत्तर भारत की राजनैतिक दशा

हर्षवर्धन के पश्चात् उत्तर भारत की राजनैतिक एकता समाप्त हो गयी। ऐसी स्थिति में उत्तर भारत में अनेक वंशों का उदय हुआ जिनमें अधिकांश राजपूत थे। इन राजपूत वंशों ने लगभग छः शताब्दियों तक भारत पर शासन किया। इस काल को राजपूत काल कहा जाता है। राजपूत काल में उत्तर भारत की राजनैतिक दशा अत्यन्त खराब थी। सम्पूर्ण देश में राजपूतों के छोटे-छोटे राज्य स्थापित हो गये थे। राजपूत नरेश अपने झूठे सम्मान और आत्मगौरव की वृद्धि हेतु परस्पर संघर्ष करते हुए शक्ति नष्ट करने में लगे हुए थे। सीमा सुरक्षा की उपेक्षा की जा रही थी। उत्तरी भारत में राष्ट्रीयता की भावना पूर्णतया नष्ट हो चुकी थी। छोटे-छोटे राज्य परस्पर ईष्या एवं बैर भाव में फँसे हुए थे।

अतः देश प्रेम और राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न नगण्य हो चुका था। राजपूत काल में उत्तरी भारत सत्ता के त्रिकोणीय संघर्ष में लिप्त था। राष्ट्रकूट, प्रतिहार एवं पालवंशीय शासकों के संघर्ष से राष्ट्रीय शक्ति नष्ट हो गयी थी। ऐसी स्थिति में भारत पर अरबों और तुर्की मुसलमानों ने आक्रमण किया जिनका भारतीय राजपूत शासक मुकाबला न कर सके और शीघ्र ही भारत पर मुस्लिम सत्ता स्थापित हो गयी।

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