राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।

राज्यपाल की नियुक्ति- राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इस प्रकार वह केन्द्र द्वारा नामांकित व्यक्ति होता है। राज्यपाल की नियुक्त न तो प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से की जाती है और न ही विशेष रूप से राष्ट्रपति के लिए गठित निर्वाचक मण्डल द्वारा, जो अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति का चुनाव करता है।

राज्यपाल के लिए योग्यताएँ- अनुच्छेद 157 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति में • राज्यपाल के पद पर नियुक्त होने के लिए अलिखित योग्यताएं होनी चाहिए-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

राज्यपाल संसद के किसी सदन अथवा राज्य विधान मण्डल का सदस्य नहीं हो सकता है। वह किसी लाभ के पद को ग्रहण नहीं करेगा।

राज्यपाल उन सभी भत्तों तथा विशेषाधिकारों के लिए अधिकारी है जो समय-समय पर संसद विधि द्वारा निर्धारित करे। वर्तमान समय में राज्यपाल का वेतन 5,500 रुपये प्रति माह है। राज्यपाल को सरकारी आवास का बिना किराया दिये उपयोग करने का अधिकार प्राप्त है। उसके कार्यकाल के दौरान उसके वेतन तथा भत्ते में कोई कमी नहीं की जा सकेगी।

राज्यपाल की पदावधि

अनुच्छेद 156 के अनुसार, राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपना पद धारण करेगा। सामान्य रूप से राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, राष्ट्रपति किसी भी समय राज्यपाल को उसके पद से हटा सकता है। यदि राज्यपाल चाहे तो वह लिखित त्याग पत्र राष्ट्रपति को भेज सकता है।

राज्यपाल की शक्तियाँ

संविधान द्वारा राज्यपाल की प्रदत्त शक्तियों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) कार्यपालिका शक्तियाँ

अनुच्छेद 166 के खण्ड (1) तथा खण्ड (2) के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है जिसका प्रयोग वह स्वयं अपने अधीनस्थ – अधिकारियों द्वारा करेगा। समस्त आज्ञायें एवं लिखित निर्देश राज्यपाल के नाम से विधिवत प्रमाणीकृत किये जायेंगे जो उसके द्वारा बनाये गये नियमों के अनुसार होंगे।

(2) वित्तीय शक्तियाँ

राज्यपाल की सिफारिश के बिना विधानसभा में कोई भी धन विधेयक पेश नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 203 (3) यह उपबन्धित करता है कि राज्यपाल की सिफारिश के बिना अनुदान की माँग पेश नहीं की जा सकती है। अनुच्छेद 202 यह उपबन्धित करता है कि विधान मण्डल के सदन अथवा दोनों सदनों के समक्ष राज्यपाल द्वारा ही वार्षिक वित्तीय विवरण, जिसे साधारतया बजट कहते हैं, पेश किया जाता है।

(3) विधायिनी शक्तियाँ

अनुच्छेद 174 (1) एवं (2) के अनुसार, राज्यपाल विधान मण्डल के एक सदन अथवा दोनों सदनों को निश्चित समय एवं विनिर्दिष्ट स्थान पर अधिवेशन के लिए आहूत करता है, परन्तु दोनों अधिवेशनों के मध्य 6 माह से अधिक समय नहीं बीतना चाहिए अनुच्छेद 171 (2) एवं (5) के अनुसार, वह राज्य के विधान मण्डल को सम्बोधित करता है। राज्यपाल की अनुमति के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता है।

राज्यपाल कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति की अनुमति हेतु अपने पास रोक सकता है राज्यपाल विधान परिषद् के 16 सदस्यों को नामजद भी करता है जो साहित्य, कला विज्ञान सहकारी आन्दोलन और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखते हैं।

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राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विधायिनी शक्ति होती है। अनुच्छेद 123 के अधीन राष्ट्रपति को जो अधिकार संसदीय क्षेत्र से प्राप्त हैं उसी प्रकार के अधिकार अनुच्छेद 213 के अन्तर्गत विधानमण्डलीय क्षेत्र में राज्यपाल को प्राप्त हैं, यदि कभी विधान मण्डल सत्र में न हो एवं राज्यपाल का यह समाधान हो जाय कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान जिनके अधीन शीघ्र कार्यवाही करना आवश्यक है, तो राज्यपाल ऐसे दण्डादेश जारी कर सकता है जो उस परिस्थिति में उचित हो। संविधान के 38वें संशोधन अधिनियम, 1975 ई. द्वारा अनुच्छेद 213 में उपखण्ड 4 जोड़कर वह स्पष्ट कर दिया गया है कि राज्यपाल का समाधान अन्तिम एवं निश्चायक होता है, उसे किसी भी आधार पर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।

राज्यपाल द्वारा जारी किये गये अध्यादेश का वही बल तथा प्रभाव होगा जो राज्य विधान मण्डल द्वारा परत विधियों का होता है, किन्तु निम्नलिखित मामलों में पति के निर्देश के बिना राज्यपाल अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है-

  1. जिन अध्यादेशों पर की अनुमति लेनी आवश्यकता होती है. वा
  2. जिन पर राष्ट्रपति की सलाह की आवश्यकता है।

राज्यपाल के द्वारा जारी किया गया अध्यादेश राज्य विधान मण्डल के दोनों सदनों के समक्ष दोनों के आहूत किये जाने के पश्चात् स्वीकृति के लिए रखा जाना अपेक्षित है, अन्यथा यह सदन के आहूत किये जाने के 6 सप्ताह के पश्चात् निभावी हो जायेगा।

(4) न्यायिक शक्तियाँ

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के अनुसार, राज्यपाल को किसी अपराध के लिए सिद्ध-दोष किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, प्रविलम्बन, विराम या प्ररिहार करने अथवा दण्डादेश का निलम्बन, परिहार या लघुकरण करने की शक्ति प्राप्त है। राष्ट्रपति या राज्यपाल को क्षमादान की शक्ति को सम्भावित न्यायिक भूलों को सुधारने के उद्देश्य से प्रदान किया गया है। क्षमादान एक दया है जिसकी मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती है। क्षमादान का प्रभाव केवल खण्ड को समाप्त ही नहीं, वरन् दण्डित व्यक्ति की उम्र स्थिति पर ला देता है, जैसा कि उसने कभी वह अपराध किया ही न हो अर्थात् क्षमादान के पश्चात् व्यक्ति बिल्कुल निर्दोष हो जाता है। जहाँ तक इस अधिकार के प्रयोग किये जाने की बात है, इस अधिकार का प्रयोग अपराध किये जाने के पश्चात् विधिक कार्यवाही शुरू होने से पहले या कार्यवाही के दौरान या दोषसिद्धि के पूर्व या पश्चात् किया जा सकता है।

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