राज्यपाल की स्थिति – भारत में केन्द्र के समान ही राज्य स्तर पर भी संसदीय शासन की स्थापना की गयी है। इस प्रणाली में शासन की वास्तविक शक्तियाँ मन्त्रिपरिषद् में निहित होती है तथा राज्य का प्रधान मात्र औपचारिक प्रधान होता है। किन्तु इसका आशय यह नहीं है कि राज्यपाल का पद एक गौण पद है।
यद्यपि राज्यपाल औपचारिक प्रधान मात्र ही होता है, किन्तु एक निष्पक्ष एवं निर्दलीय व्यक्तित्व होने के कारण उसका पद अत्यन्त सम्मानीय एवं प्रतिष्ठित होता है। उसका व्यक्तित्व एवं कार्य राज्य शासन के सुचारु संचालन एवं स्थिरता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राज्यपाल शासन की सभी आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त करता है तथा समय-समय पर अपने सुझाव भी प्रदान करता है। एक सक्रिय राज्यपाल सत्तारूढ़ दल एवं विरोधी दलों के मध्य समन्वयक की भूमिका निभाता है।
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राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर, अध्यादेश जारी करते समय कोई विधेयक राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करते समय इत्यादि स्थितियों में राज्यपाल अपने स्वविवेक का प्रयोग कर अपनी दृढ़ता को प्रदर्शित करता है और इस प्रकार राज्य शासन को सुगम एवं कार्यकुशल बनाता है। एम. पी. पायली का कहना ठीक है कि, “राज्यपाल मन्त्रिमण्डल का सूझ-बूझ वाला परामर्शदाता है, जो राज्य की अशान्त राजनीति में शान्त वातावरण पैदा कर सकता है।”
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