साक्षात्कार की परिभाषा – सामाजिक अनुसंधान में सामग्री संकलन के लिए अवलोकन ही पर्याप्त नहीं होता साक्षात्कार में एक दूसरे का साक्षात् दर्शन करके परस्पर वार्तालाप करना है। कुछ सूचना प्राप्त करने के लिए जब दो व्यक्तियों का मिलन व बातचीत होती है तो हम उसे साक्षात्कार कहते हैं। अर्थात् जब अनुसंधानकर्ता सामाजिक घटनाओं को समझने के उद्देश्य से किसी सूचनादाता से प्रत्यक्ष भेंट करके वार्तालाप करता है तब उसे साक्षात्कार कहा जाता है।
श्रीमती यंग ने साक्षात्कार को परिभाषित करते हुये कहा है, “साक्षात्कार को एक क्रमबद्ध विधि माना जा सकता है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के आन्तरिक जीवन में अधिक अथवा कम काल्पनिकता से प्रवेश करता है जो उसके लिये सामान्य तथा तुलनात्मक रूप से अपरिचित है।”
श्री महेन्द्र नाथ बसु ने साक्षात्कार की परिभाषा करते हुये कहा है, “एक साक्षात्कार को कुछ बिन्दुओं पर कुछ व्यक्तियों के आमने-सामने का मिलन कहा जा सकता है।”
हेडर तथा लिंडमैन ने साक्षात्कार की परिभाषा करते हुये लिखा है कि, “साक्षात्कार के अन्तर्गत दो मनुष्यों या कुछ मनुष्य के बीच संवाद अथवा मौखिक प्रत्युत्तर होते हैं।”
इस प्रकार आधुनिक युग में इस पद्धति का प्रचलन बढ़ गया है। कोई भी शिक्षित व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक अनाड़ी व्यक्ति भी आज इस शब्द से अनभिज्ञ नहीं है। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् प्रत्येक नागरिक अथवा युवक अधिकतर साक्षात्कार की तैयारी में जुट जाता है। आज साक्षात्कार का इतना अधिक महत्त्व है कि कोई भी छोटी या बड़ी अथवा सरकारी या गैर सरकारी नौकरी साक्षात्कार के बिना सम्भव नहीं है। साक्षात्कार ही एक ऐसा माध्यम है जो कि व्यक्ति के जीवन में आशा का संचार भी कर देता है व निराशा का भी। यह व्यक्ति के आन्तरिक विचारों तथा भावनाओं को पाने का एक उपयोगी व महत्त्वपूर्ण साधन है।
साक्षात्कार के प्रकार
साक्षात्कार के निम्नलिखित प्रमुख प्रकार हैं-
(1 ) व्यक्तिगत साक्षात्कार
व्यक्तिगत साक्षात्कार के अन्तर्गत एक समय में एक ही व्यक्ति से साक्षात्कार किया जाता है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से वार्तालाप करता है और उसके द्वारा जानकारी प्राप्त करता है। साक्षात्कारकर्ता एवं सूचनादाता दोनों ही प्रश्न तथा उत्तर देने में लगे रहते हैं। प्रत्येक प्रश्न से साक्षात्कार करने वाले व्यक्ति को प्रेरणा मिलती जाती है अर्थात् प्रत्येक प्रश्न एवं उत्तर अगले प्रश्न के लिये प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।’
(2) समूह साक्षात्कार
समूह के साक्षात्कार के अन्तर्गत एक साक्षात्कारकर्त्ता एक समय में एक ही स्थान पर एक से अधिक व्यक्तियों से मिलकर साक्षात्कार करता है। अनुसूची के अनुसार उन सभी से प्रश्नों के सही उत्तर प्राप्त करता है तथा सूचनाओं का एकत्रीकरण करता है।
(3) अव्यवस्थित अथवा अनियन्त्रित साक्षात्कार
अनियन्त्रित अथवा अव्यवस्थित साक्षात्कार तथा कहानी टाइप होता है। इस साक्षात्कार के अन्तर्गत साक्षात्कार कर्त्ता किसी भी प्रकार की पूर्व-निर्मित अनुसूची के आधार पर प्रश्नों को नहीं पूछता बल्कि जो उसके मन में आता है अपनी इच्छानुसार बिना किसी योजना के अव्यवस्थित प्रश्नों को पूछता चला जाता है। वह स्वतन्त्र रूप से कोई भी प्रश्न पूछ सकता है। साक्षात्कारकर्ता किसी प्रश्न के रूप में उत्तरदाता के सम्मुख कोई चुनौती देने वाली परिस्थिति या विषय की ओर संकेत कर देता है। उत्तरदाता उसके समाधान हेतु अपनी ओर से विस्तृत अथवा संक्षिप्त विवरण के रूप में अथवा कहानी या स्वयं के अनुभव को कहानी के रूप में अपना उत्तर स्वतन्त्र रूप से उसके सम्मुख प्रस्तुत करता है। साक्षात्कारकर्ता किसी भी प्रश्न के उत्तर के बीच में उसे टोकता नहीं है उसे शान्ति से सुनता है। एक प्रश्न का उत्तर सुनने के पश्चात् ही वह उत्तरदाता से दूसरा प्रश्न करता है। यह अनौपचारिक साक्षात्कार का ही दूसरा रूप है।
(4) केन्द्रित साक्षात्कार
इस प्रणाली का प्रयोग सर्वप्रथम मटन तथा उसके साथियों ने किया था। इसके अन्तर्गत साक्षात्कारकर्त्ता को अपना ध्यान किसी एक विषय पर ही केन्द्रित करना पड़ता है। अतः यह आवश्यक होता है कि उत्तरदाता उस परिस्थिति में रह चुका हो जिसका कि अध्ययन किया जा रहा है। साक्षात्कारकर्ता अपना ध्यान इस विषय पर केन्द्रित करता है तथा यह जानना चाहता है कि उस परिस्थिति, घटना या अवस्था का अध्ययन करने वाले व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ा है, सूचनादाता उस घटना अथवा परिस्थिति के द्वारा उत्पन्न विभिन्न विचारों, भावनाओं तक मानसिक दशाओं का वर्णन करता है। इस साक्षात्कार में स्वतन्त्र वर्णन होता है इसीलिए यह भी स्वतन्त्र साक्षात्कार का ही दूसरा रूप है। साक्षात्कारकर्ता आवश्यकतानुसार साक्षात्कार प्रदर्शिका का भी प्रयोग करता है। केन्द्रित साक्षात्कार का प्रयोग रेडियो, फिल्म तथा सन्देशवाहन के साधनों का प्रभाव जानने हेतु किया जाता है। इस प्रकार सैनिकों के नैतिक बल पर, रेडियो प्रोग्रामों, प्रचार साधनों, मनोरंजन-कार्यक्रमों इत्यादि का प्रभाव भी इस विधि के द्वारा सुगमतापूर्वक जाना जा सकता है।
(5) पुनरावृत्ति साक्षात्कार
पुनरावृत्ति साक्षात्कार यह साक्षात्कार होता है जिसमें एक से अधिक बार साक्षात्कार किया जाता है। कुछ सामाजिक परिवर्तन या घटनाएँ इस प्रकार की होती हैं जिनका प्रभाव थोड़े समय में स्पष्ट नहीं होता अर्थात् एक बार के अध्ययन से पूर्णतया दृष्टिगोचर नहीं होता। इसलिए उन परिवर्तनों या घटनाओं का प्रभाव जानने के लिए बार-बार साक्षात्कार करना आवश्यक होता है। समय के तत्त्व का प्रभाव एक बार के साक्षात्कार से नहीं जाना जा सकता। ऐसी स्थिति में कई बार बीच-बीच में समय देकर बार-बार साक्षात्कार करना पड़ता है। इस बार-बार साक्षात्कार करने की प्रक्रिया को ही पुनरावृत्ति साक्षात्कार कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर आय से अधिक सन्तुष्ट और जीवन स्तर इत्यादि इसी प्रकार के विषय है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की आर्थिक सन्तुष्टि और जीवन स्तर इत्यादि से सम्बन्धित दशायें एक समान नहीं रहती, उनमें समय-समय पर अन्तर आता रहता है। इस प्रकार इन विषयों का अध्ययन पुनरावृत्ति साक्षात्कार के द्वारा ही सम्भव होता है। इस प्रकार के साक्षात्कार किसी सामाजिक एवं वैचारिक प्रक्रिया क्रमिक विकास जानने में अत्यन्त उपयोगी होते हैं। साथ ही यह साक्षात्कार किसी विषय पर गहरी सूचनाएँ एकत्रित करने में सहायक होता है।
(6) औपचारिक साक्षात्कार
औपचारिक साक्षात्कार के अन्तर्गत साक्षात्कारकर्ता अनुसूची के द्वारा निर्मित प्रश्नों को उत्तरदाता से औपचारिक सम्बन्ध स्थापित करके पूछता है तथा उत्तरदाता द्वारा दिये गये उत्तरों को लिख लेता है। इस साक्षात्कार के अन्तर्गत साक्षात्कारकर्त्ता अनुसूची के अतिरिक्त प्रश्न पूछने तथा उत्तर लिखने के लिये किसी भी प्रकार से स्वतन्त्र नहीं होता। अनुसूची में जो निश्चित प्रश्न लेखबद्ध होते हैं उन्हीं को उत्तरदाता से पूछता है। इस अनुसूची के प्रश्नों को नियमित संचालित तथा नियंत्रित साक्षात्कार भी कहा जाता है।
(7) अनौपचारिक साक्षात्कार
अनौपचारिक साक्षात्कार औपचारिक साक्षात्कार का विपरीत रूप है। इस साक्षात्कार के अन्तर्गत साक्षात्कारकर्त्ता किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछने व लिखने के लिये पूर्णरूप से स्वतन्त्र होता है। प्रश्नों का पूर्व निर्धारित होना इस प्रणाली के अर्न्तगत आवश्यक नहीं होता। इसमें अनुसूची की सहायता नहीं ली जाती है। साक्षात्कारकर्त्ता प्रश्नों को किसी भी क्रम के अनुसार या बिना किसी क्रम के आगे पीछे से पूछ सकता है। इस प्रकार से यह एक प्रकार का अनियन्त्रित साक्षात्कार ही है।
साक्षात्कार में बरती जाने वाली सावधानियाँ
चूँकि साक्षात्कार पद्धति की सफलता उसकी विधिवत् योजना पर आधारित होता है। अतएव साक्षात्कारकर्ता को इस सन्दर्भ में अत्यन्त सावधानी रखनी पड़ती है। यह सावधानी साक्षात्कारक के लिए साक्षात्कार को आरम्भ से लेकर अन्त तक बनाये रखनी पड़ती है, तभी उसे अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त हो सकती है। साक्षात्कार प्रक्रिया के निम्नलिखित तीन चरण होते हैं- इनका विवरण निम्नांकित हैं-
(1) साक्षात्कार की तैयारी
साक्षात्कार से पूर्व साक्षात्कारकर्त्ता के लिए यह आवश्यक होता है कि उससे सम्बन्धित समस्या, जिस पर उसे साक्षात्कार करना होता है, का विस्तारपूर्वक ज्ञान हो। ऐसा होना इस कारण आवश्यक होता है कि साक्षात्कारकर्त्ता सूचनादाता से ऐसे प्रश्नों को न पूछ बैठे, जिनका सूचनादाता को उत्तर न आने पर अत्यन्त लज्जा का सामना करना पड़े। अतः साक्षात्कारकर्त्ता के लिए सम्बन्धित समस्या की प्रकृति का पूर्ण रूप से ज्ञान होना आवश्यक होता है।
(2) साक्षात्कार प्रदर्शिका का निर्माण
साक्षात्कारकर्त्ता को अनावश्यक प्रश्नोत्तर से बचने के लिए साक्षात्कार प्रदर्शिका का निर्माण कर लेना चाहिए। साक्षात्कार प्रदर्शिका में समस्या की रूपरेखा, साक्षात्कार की पूर्व योजना, विषय से सम्बन्धित प्रश्नों की सूची आदि का उल्लेख रहता है।
(3) व्यक्तियों का चयन
साक्षात्कार के लिए, सूचना देने वाले व्यक्तियों का पहले से ही चयन कर लेना चाहिए। निदर्शन के आधार पर सूचनादाताओं का चयन करना चाहिए, ताकि इस कार्य के लिए उन्हीं व्यक्तियों का चुनाव किया जा सके, जिन्हें समस्या की भली प्रकार से जानकारी हो। सूचनादाताओं की संख्या कम होनी चाहिए। यदि सूचना देने वाले व्यक्ति पहले से ही परिचित हो तो और भी अच्छा है। इस प्रकार सूचनादाताओं का एक ऐसा वर्ग बना देना चाहिए जिनसे कि समय-समय पर सम्बन्धित समस्याओं की सूचनाएँ प्राप्त की जा सके।
(4) प्रारम्भिक जानकारी
सूचनादाताओं का चयन करने के पश्चात् उनके सम्बन्ध में और जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। सूचनादाताओं की योग्यता, व्यवसाय तथा निवास- स्थान की पूर्ण जानकारी कर लेनी चाहिए। इस प्रकार सूचनादाता के व्यक्तित्त्व और उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का समझने में सहायक होगी और साक्षात्कार-पद्धति में पूर्ण सफलता मिलेगी।
(5) समय का निश्चय
साक्षात्कार करने का समय पहले से ही निश्चित कर लेना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से साक्षात्कारकर्ता और सूचनादाता दोनों को ही सुविधा रहती है। साक्षात्कारकर्त्ता को सूचनादाता के पास पहले से ही परिचयपत्र भेजकर एक समय निश्चित कर लेना चाहिए। इस प्रकार साक्षात्कारकर्त्ता को सूचनादाता समय पर मिल सकेगा। ऐसा करना इस कारण आवश्यक है कि यदि अकस्मात् ही साक्षात्कारकर्त्ता सूचनादाता के पास पहुँच जाए और सूचनादाता किसी कार्य में व्यस्त हो तो वह साक्षात्कार के लिए टाल देगा और यदि किसी प्रकार तैयार भी हो गया तो उसे खीझ होगी और साक्षात्कार के लिए पारस्परिक सौहार्द का वातावरण भी उपस्थित नहीं हो सकेगा।
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(6) स्थान का निश्चय
साक्षात्कार के लिए स्थान का निश्चय कर लिया जाना भी आवश्यक है, व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत समस्याओं की जानकारी सबके समक्ष कदापि नहीं दे सकता है। यह उसका अत्यन्त गोपनीय मामला होता है। अतः साक्षात्कारकर्त्ता को सूचनादाता से बातचीत करके इस कार्य के लिए एक उपयुक्त स्थान पहले से ही निश्चित कर लेना चाहिए।
इस प्रकार साक्षात्कार प्रविधि, जो सामाजिक अनुसंधान की महत्त्वपूर्ण प्रविधि है, के द्वारा सूचनाओं के संग्रह हेतु अनेक सावधानियाँ तथा चरणबद्ध तैयारी की आवश्कता होती है तभी साक्षात्कार व्यवस्थित ढंग से पूर्ण होता है।
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