सामाजिक प्रक्रिया की अवधारणा – समाज में व्यक्ति की आवश्यकताएं अनंत हैं जिनकी पूर्ति के लिए वह दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में आता है तथा समाज के नियमों के अनुसार उनसे व्यवहार करता है। समाजशास्त्रीय शब्दावली में इसे सामाजिक अंतः क्रिया कहते हैं। अंतःक्रिया, में दो व्यक्ति या समूह आपस में क्रिया करते हैं। वास्तव में देखा जाए तो समाज विभिन्न प्रस्थितियों के बीच होने वाली क्रिया है। समाज का आधार यही अंतःक्रिया होती है। अंतःक्रिया किसी न किसी प्रकार के संबंधों को जन्म देती है। अंतःक्रिया का आधार हमेशा मधुर संबंध ही नहीं होता बल्कि ईर्ष्या, घृणा भी होता है। उदाहरणार्थ, दो व्यक्तियों या दो देशों के बीच संघर्ष सामाजिक अंतःक्रिया ही है। अतः क्रिया का निरंतर रूप से होना ही सामाजिक प्रक्रिया कहलाता है। अंतः क्रिया के विभिन्न स्वरूपों को भी हम सामाजिक प्रक्रिया कहते हैं।
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गिलिन व गिलिन Cultural Sociology में लिखते हैं कि, “सामाजिक प्रक्रिया से हमारा तात्पर्य अंतः क्रिया करने के वे तरीके हैं जिन्हें हम व्यक्तियों एवं समूहों के बीच संबंधों के समय देखते हैं। अथवा जब प्रचलित जीवन-विधियों के परिवर्तन में व्यवधान पहुंचाते हैं।”
बीसंज तथा बीसंज (Modern Society) के शब्दों में, “अंतःक्रिया के विभिन्न स्वरूप ही सामाजिक प्रक्रिया कहलाते हैं।’