सामाजिक संरचना के तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।

सामाजिक संरचना के तत्त्वों के विषय में विद्वानों ने अलग-अलग मत प्रतिपादित किया है जिसका वर्णन निम्नवत् किया जा सकता है जानसन द्वारा प्रतिपादिन सामाजिक संरचना के तत्प-ये तत्व निम्न है

(1) विभिन्न प्रकार के उप समूह

सामाजिक संरचना का निर्माण कई प्रकार के उप-समूहों द्वारा होता है जो परस्पर सम्बन्धात्मक मानदण्डों द्वारा जुड़े होते हैं। इनका सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण स्थान होता है।

(2) भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमिकाएं

इन विभिन्न प्रकार के उप-समूहों में विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ होती हैं जो सापेक्ष दृष्टि से स्थायी होती है। भूमिकाएँ भूमिकाधारियों से अधिक स्थायी होती है।

(3) नियामक मानदण्ड

उप-समूहों तथा भूमिकाओं को परिभाषित, नियंत्रित एवं निर्देशित करने के लिए नियामक मानदण्ड होते हैं ये मानदण्ड हो भूमिकाओं के पारस्परिक सम्बन्धों एवं अन्य प्रणालियों से सम्बन्धों को भी निर्धारित करते हैं। इन्हीं के फलस्वरूप सामाजिक अन्तः क्रिया में स्थायित्व, नियमितता एवं पुनरावृति पायी जाती है।

(4) सांस्कृतिक मूल्य

सामाजिक संरचना में सम्बन्धात्मक एवं नियामक मानदण्डों के अतिरिक्त सांस्कृतिक मूल्य भी होते हैं जिनके आधार पर वस्तुओं की तुलना की जाती है। मूल्यों के आधार पर ही भावनाओं, विचारों, लक्ष्यों, साधनों, सम्बन्धों, समूहों, पदार्थों एवं गुणों का मूल्यांकन किया जाता है। जीवन में विभिन्न पक्षों एवं क्षेत्रों के अनुसार मूल्य भी अलग-अलग होते हैं।

मैकाइवर तथा पेज द्वारा बताए सामाजिक संरचना के तत्त्व

मैकाइवर तथा पेज के अनुसार सामाजिक संरचना के प्रमुख तत्व निम्नलिखित है

(1) जनरीतियाँ व प्रथायें

वे जनरीतियाँ तथा प्रक्षायें जो समाज को स्थायित्व प्रदान करने वाली शक्तियों के रूप में मानी जाती हैं सामाजिक संरचना का आधार होती है। इन जनरीतियों तथा प्रथाओं के पीछे समाज की शक्ति निहित है। सामाजिक नियंत्रण का आधार भी सामाजिक रीति-रिवाज ही है।

(2) प्रमुख सामाजिक विधियां

मैकाइवर एवं पेज ने प्रमुख सामाजिक विधियों में धर्म, प्रथाओं, कानून, फैशन तथा धुन आदि को रखा है ये सभी सामाजिक विधियों में धर्म, विभिन्न स्वरूप हैं। समाज इन्हीं सामाजिक तत्वों से निर्मित होता है।

(3) सामाजिक विधियाँ और व्यक्तिगत जीवन

जनरीतियाँ, रूढ़ियाँ तथा प्रथायें प्रत्येक मानव समाज में इतनी प्रबल और शक्तिशाली बन जाती है कि व्यक्ति अपनी इच्छाओं के अनुसार कार्य करने में स्वतंत्र नहीं रह जाता है उसे वहीं कार्य करना होता है जिसे करने के लिए समाज उसे स्वीकृति प्रदान करता है।

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(4) सामाजिक संरचना के प्रमुख स्वरूप

मैकाइवर तथा पेज के अनुसार सामाजिक संरचना के स्वरूपों का यदि साक्षात्कार करना है तो वे समाज में पाये जाने वाले विभिन्न समूहों के द्वारा ही सम्भव है। इन समूहों में प्राथमिक व द्वैतीयक दोनों प्रकार के समूह सम्मिलित होते हैं। उदाहरणार्थ- परिवार, ग्राम, नगर, समुदाय तथा धर्म आदि सभी समूह सामाजिक संरचना के विभिन्न अंग हैं। सामाजिक जातियों, वर्ग, प्रजातीय समूह सामाजिक संरचना के विभिन्न अंग हैं।

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