सल्तनत कालीन शिक्षा व्यवस्था – भारत में सल्तनत कालीन शासकों ने शिक्षा व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया। मुसलमानों ने शिक्षा के प्रसार हेतु अनेक प्रकार की संस्थायें जैसे कि मकतब, मदरसे, खानकाह की स्थापना की। मुसलमान परिवारों में शिशु की शिक्षा बिस्मिल्लाह खानी या मकतब संस्कार से प्रारम्भ होती थी। शिशु की आयु 4 वर्ष 4 माह 4 दिन की हो जाती थी तो उसके माता-पिता बड़े धूमधाम से विस्मिलाहखानी (अक्षर बोध) का संस्कार या काजी द्वारा सम्पन्ना करवाते थे। इस अवसर पर शिशु से अरबी वर्णमाला का प्रथम अक्षर ‘अलिफ’ तख्ती पर लिखवाया जाता था उसके बाद सम्पन्ना परिवारों में शिशु को प्रारम्भिक शिक्षा देने के लिए शिक्षक नियुक्त किये जाते थे। इन शिशुओं का ज्ञान वर्णमाला, कुरान के पाठ, सुलेख, व्याकरण आदि विषयों तक ही सीमित रहता था बाद में उन्हें आमदनामा, गुलिस्ती, बोस्तों, हार-ए-दानिश तथा सिकन्दरनामा का अध्ययन करते थे जो विद्यार्थी इसके उपरान्त शिक्षा नहीं ग्रहण करते थे उन्हें मूंशी तथा जो उच्च शिक्षा ग्रहण करते थे उन्हें मौलवी, कामिल या फाजिल की पदवियों दी जाती थी। हिन्दुओं को शिक्षा गुरुकुलों में दी जाती थीं जहां पर उन्हें विभिन्न विषयों की शिक्षा प्रदान की जाती थी।
सल्तनत काल में मुस्लिम शिक्षा के दो प्रमुख केन्द्र थे-
- मकतब तथा
- मदरसा
मकतब
मकतब पशतमिक शिक्षा के केन्द्र थे। मकतब का अर्थ है- वह स्थान जहाँ लिखना पढ़ना सिखाया जाता है। यहाँ बालकों को शिक्षा मौलवी द्वारा दी जाती थी। मकतब में छात्रों को कुरान की आयतें कठस्थ करायी जाती थी और उन्हें लिपि का ज्ञान कराया जाता था। यहाँ की शिक्षण विधि मुख्यतः मौखिक होती थी लिखने के लिए तख्ती और सरकण्डे की कलम का प्रयोग होता था।
मदरसा
शिक्षा का दूसरा केन्द्र मदरसा था। ये उच्च शिक्षा के केन्द्र थे। राज्य द्वारा स्थापित मदरसों को राज्य की ओर से वित्तीय सहायता मिलती थी। मुहम्मद गोरी ने अजमेर में अनेक मदरसों की स्थापना की भारत में यह मदरसे अपने ही ढंग के थे। लखनौती में मुहम्मद बिन बख्तियार खिल्जी ने अनेक मदरसों की स्थापना की इल्तुतमिश ने मुहम्मद गोरी के नाम पर दिल्ली में मुइज्ज़ी मदरसे की स्थापना की। इसी नाम का एक मदरसा बदायूँ में स्थापित • हुआ। रजिया ने नासिरिया मदरसे की स्थापना दिल्ली में की व मिन्हाज उस सिराज को उसका आचार्य नियुक्त किया। कड़ा के कवि मुतहर ने फिरोजशाह के मदरसे का वर्णन किया है। जलालुदीन रूमी इस मदरसे के प्राचार्य थे वे कुरान को 7 नियमों से पढ़ सकते थे तथा 14 विधायें जानते थे। हदीस के 5 प्रसिद्ध संग्रहों का उन्हें ज्ञान था। वहाँ के विद्यार्थियों को तफ्सीर, फिकट व हदीस पढ़ाया करते थे। इस प्रकार सम्पूर्ण देश में मदरसे स्थापित थे जहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने आते थे।
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खानकाहे
शिक्षा का एक अन्य प्रमुख केन्द्र सूफी संतों की खानकाहें थी अजमेर में शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की खानकाह, दिल्ली में शेख निजामुद्दीन औलिया की खानकाह, आदि शिक्षा के सुप्रसिद्ध केन्द्र थे। दिल्ली व उसके समीप के लगभग 2000 खानका सूपी सन्तों की थी जहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी सूफीमत व आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।
इस काल में प्रत्येक शहर में उपरोक्त तीनों प्रकार की शिक्षा संस्थायें थीं। इस काल में विद्यार्थियों को राज्य की ओर से वित्तीय सहायता तथा वजीफे दिये जाते थे। उनके पाठ्यक्रम में कुरान, हदीस, तरबुफ, तफसीर, ज्योतिषशास्त्र, धर्मशास्त्र, गणित, न्यायशास्त्र, काव्यशास्त्र, व्याकरण, सुलेख इत्यादि अनेक विषय सम्मिलित थे।
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