समानता के अधिकार की व्याख्या कीजिए।

समानता के अधिकार की व्याख्या समानता के अधिकार प्रजातन्त्र का आधार स्तम्भ है. अतः भारतीय संविधान के अधिकार पत्र में सर्वप्रथम अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक समानता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। संविधान के द्वारा नागरिकों को निम्नलिखित पाँच प्रकार की समानताएँ प्रदान की गयी है

1. विधि के समक्ष समानता

अनुच्छेद 14 के अनुसार, “भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। इस व्यवस्था का आशय यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक सा कानून बनायेगा तथा उन्हें एक समान लागू करेगा। दूसरे शब्दों में, समान परिस्थितियों में सभी व्यक्तियों के साथ कानून का व्यवहार एक-सा होगा।

2. सामाजिक समानता

कानून के समक्ष समानता के साथ-साथ संविधान के द्वारा सामाजिक समानता की भी व्यवस्था की गयी है। अनुच्छेद 15 के अनुसार, “राज्य द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में पक्षपात नहीं किया जाएगा।”

3. अवसर की समानता

अनुच्छेद 16 के अनुसार, ” सब नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के लिए समान अवसर प्राप्त होंगे और इस सम्बन्ध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर सरकारी नौकरी या पद प्रदान करने में भेदभाव नहीं किया जाएगा।”

4. अस्पृश्यता का अन्त

अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता का अन्त कर दिया गया और इसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध कर दिया गया है। अस्पृश्यता से उत्पन्न होने वाली किसी अयोग्यता को लागू करना अपराध घोषित किया गया है, जो कानून के अनुसार दण्डनीय होगा।

राज्य के प्रमुख तत्वों का उल्लेख कीजिए।

5. उपाधियों का अन्त

अनुच्छेद 18 में व्यवस्था की गयी है कि “सेना अथवा विद्य सम्बन्धी उपाधि के अतिरिक्त राज्य कोई अन्य उपाधि प्रदान नहीं कर सकता।” इसके साथ ही भारत का कोई भी नागरिक बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।

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