संघर्ष की परिभाषा लिखिए तथा इसके स्वरूप की विवेचना कीजिए।

संघर्ष की परिभाषा

संघर्ष की परिभाषा एवं अर्थ अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंसात्मक तरीके अपनाकर या उनको धमकी देकर दूसरे की इच्छाओ को दबाना ही संघर्ष है। प्रो० ग्रीन के शब्दों में “संघर्ष जानबूझकर किया गया वह प्रयत्न है जो कि किसी की इच्छा का विरोध करने, उसके आड़े आने या उसे दबाने के लिए किया जाता है।”

सर्वश्री गिलिन और गिलिन ने भी संघर्ष की प्ररिभाषा करते हुए लिखा है कि “संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति का समूह अपने विरोधी के प्रति प्रत्यक्षतः हिंसात्मक तरीके अपनाकर या ऐसे हिंसात्मक तरीका अपनाने की धमकी देकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करना चाहता है।

इस प्रकार अपने उद्देश्यो की पूर्ति के लिए हिंसात्मक तरीके अपनाकर दूसरे की इच्छाओं को दबाना ही संघर्ष है।

संघर्ष के स्वरूप

सर्वश्री गिलिन और गिलिन ने संघर्ष के निम्नलिखित पांच स्वरूपों का वर्णन किया है

1. वैयक्तिक संघर्ष

जब संघर्ष दो व्यक्तियों के बीच होता है, तो उसे हम वैयक्तिक संघर्ष कहते हैं। घृणा, द्वेष, क्रोध, शत्रुता आदि के कारण इस प्रकार का संघर्ष हो सकता है। हम अक्सर दो व्यक्तियों के बीच हाथापाई होते, लाठी या चाकू या छुरी चलते देखते हैं। इसके पहले कि दो व्यक्ति हिंसात्मक उपायों को अपनाएँ, वे एक-दूसरे की दुर्बलताओं का चित्रण करते है, एक दूसरे को डराते हैं, गाली गलौज करते हैं, एक दूसरे की दुर्बलताओं का चित्रण करते हैं। एक दूसरे को डराते धमकाते है और फिर कहीं शारीरिक बल चा अस्त्र का प्रयोग करते हैं।

2. प्रजातीय संघर्ष

वैयक्तिक संघर्ष के अतिरिक्त सामूहिक संघर्ष भी हो सकता है। प्रजातीय संघर्ष भी इसमें से एक है प्रातीय संघर्ष का आधार है प्रजातीय श्रेष्ठता व हीनता जैसी अवैज्ञानिक धारणा है। अमेरिका में नीग्रो व श्वेत प्रजाति के बीच तथा श्वेत प्रजाति व जापानियों (पीत प्रजाति) के बीच और अफ्रीका में श्वेत तथा श्याम प्रजातियों के बीच अक्सर जो संघर्ष होता है, वह प्रजातीय संघर्ष का ही अनुपम उदाहरण है। विभिन्न प्रजातियों मे वास्तविक अन्तर तो कुछ विशिष्ठ शरीरिक लक्षणों का ही होता है, पर प्रजातीय संघर्ष के कारण के रूप में यह शारीरिक अन्तर उतने महत्वपूर्ण नहीं है जितने की सांस्कृतिक भेद या स्वार्थो की भिन्नता। इससे भी महत्वपूर्ण कारण प्रजातीय या हीनता की गलत धारणा है। अमेरिका में आज भी यह धारण अपने पूर्ण रूप में विद्यमान है।

3. वर्ग संघर्ष

सामाजिक जीवन में वर्ग संघर्ष भी एक उल्लेखनीय घटना है। श्री कार्ल मार्क्स ने इस प्रकार के संघर्ष पर अधिक बल दिया है। आपके अनुसार समाज में ही दो विरोधी वर्ग- ‘शोषक और शोषित’ होते हैं। जब शोषक वर्ग की शोषण नीति असहनीय हो जाती है, तब एक स्तर पर इन दोनों वर्गों में संघर्ष स्पष्ट हो उठता है। ‘कम्युनिस्ट घोषणा-पत्र ‘ में सर्वश्री मार्क्स और एंजिल ने लिखा है कि “अभी तक के सभी समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का ही इतिहास है स्वतन्त्र व्यक्ति तथा दास, कुलीन वर्ग तथा साधारण जनता सामन्त तथा अर्द्धदास किसान, गिल्ड का स्वामी और उसके कार्य करने वाले कारीगर संक्षेप में, शोधक और शोषित, सदा एक-दूसरे के विरोधी होकर कभी प्रत्यक्षतः अनवरत रूप से आपस में संघर्ष करते रहे हैं। इस संघर्ष का अन्त प्रत्येक बार या तो समग्र समाज के क्रांन्तिकारी पुनर्निमाण में हाता है या संघर्षरत वर्गों की आम बर्बादी में”

4. राजनीतिक संघर्ष

राजनीतिक संघर्ष एक राष्ट्र या देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच होता है। इसका कारण भी स्पष्ट है। प्रत्येक राजतीतिक पार्टी या दल के अपने कुछ पृथक आदर्श सिद्धान्त और उद्देश्य होते हैं जो दूसरी पार्टी के बिल्कुल विरोधी हो सकते हैं और होते भी हैं। ऐसी अवस्था में राजनीतिक संघर्ष स्वाभाविक हो जाता है। उदाहरणार्थ, भारतवर्ष में कांग्रेस तथा अन्य पार्टियों के बीच राजनीतिक संघर्ष निरन्तर चलता रहता है। परन्तु स्मरण रहे कि यह संघर्ष सिंहात्मक उपायों तथा साधनों द्वारा उतना नहीं चलाया जाता जितना कि संवैधातिक तरीकों के द्वारा। हाँ, यदि कोई राजनीतिक पार्टी शासक वर्ग बन जाती है अर्थात् चुनावों में अधिक स्थान पाकर सत्ता हथिया लेती है तो वह सरकारी सत्ता के आधार पर विरोधी दल के नेताओं को कैद करके नजरबन्द रखकर या उनकी गति विधि को सीमित करके उन पर नियन्त्रण रखने का प्रयत्न कर सकती है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष

यह भी राजनीतिक संघर्ष का ही एक विस्तृत रूप है। राजनीतिक संघर्ष का क्षेत्र जब एक राष्ट्र की सीमा पार करके अन्य राष्ट्रो तक फैल जाता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष कहते है। दूसरे शब्दों में जब दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच संघर्ष होता है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष कहलाता है। इसका सबसे स्पष्ट रूप युद्ध है जैसा कि भारत और चीन के बीच या भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध ।

उपरोक्त प्रकारों के अतिरिक्त संघर्ष के अग्रलिखित दो रूप और हो सकते हैं

1. प्रत्यक्ष संघर्ष

प्रत्यक्ष संघर्ष वह संघर्ष है जिसमें कि संघर्ष करने वाले व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से देखे जा सकते हों। दो सेनाओं की लड़ाई, दो व्यक्तियों या समूहों में दंगा-फसाद अथवा मारपीट प्रत्यक्ष संघर्ष के अति उत्तम उदाहरण हैं। समाज में ही यदि एक ओर लड़ाई, झगड़ा, वर्ग संघर्ष आदि पाया जाता है। तो दूसरी ओर पति-पत्नी का मधुर कलह भी होता है। वास्तव में यह सभी प्रत्यक्ष संघर्ष के रूप हैं।

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2. अप्रत्यक्ष संघर्ष

अप्रत्यक्ष संघर्ष वह संघर्ष है, जबकि संघर्ष करने वाले व्यक्ति अथवा समूह प्रत्यक्ष रूप से साधारणतया दृष्टिगोचर नहीं होते। जब एक मनुष्य या समूह अपने स्वार्थ की पूर्ति, दूसरे के स्वार्थ की अवहेलना कर या दूसरे को हानि पहुँचा कर करना चाहता है। तो उसको अप्रत्यक्ष संघर्ष कहा जाएगा। प्रतिस्पर्धा इस प्रकार के संघर्ष का अति उत्तम उदाहरण हैं। मोटर कार बनाने वाली दो फैक्ट्री के मालिक, हो सकता है कि एक-दूसरे से व्यक्तिगत रूप से परिचित न हों, आपस में अप्रत्यक्ष संघर्ष करते रहते हैं। ये दोनों ही मालिक अपनी अपनी मोटरकारों का अधिक से अधिक बाजार प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। यही अप्रत्यक्ष संघर्ष है वास्तव में इस प्रकार का संघर्ष समाज की उन्नति के लिए अति आवश्यक है।

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