संसदीय व्यवस्था की विशेषतायें – संसदात्मक शासन प्रणाली में उपर्युक्त गुणों या विशेषताओं के साथ-साथ कुछ कमियाँ भी पापी जाती हैं जो निम्नवत है-
(1) लोकमत एवं लोक-कल्याण पर आधारित
संसदात्मक शासन प्रणाली – प्रजातन्त्र प्रणाली का ही एक रूप है, इसीलिए यह लोकमत का ध्यान रखते हुए लोक-कल्याणकारी कार्य करने का प्रयत्न करती है।
(2) लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों की रक्षा
लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों की रक्षा बहुत सीमा तक संसदात्मक शासन व्यवस्था में ही सम्भव है, क्योंकि संसदात्मक शासन व्यवस्था में जन प्रतिनिधियों की प्रत्यक्ष जवाबदेही जनता के प्रति होती है।
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(3) कार्यपालिका निरंकुश नहीं हो पाती
इस शासन प्रणाली में कार्यपालिका निरंकुश नहीं हो पाती है, क्योकि उसे किसी भी कानून को पारित करवाने के लिए व्यवस्थापिका पर आश्रित रहना पड़ता है। वह स्वेच्छा से किसी भी कानून को बनाकर तथा उसे देश में लागू निरंकुश नहीं बन सकती है। इसके अतिरिक्त व्यवस्थापिका को यह भी अधिकार है कि वह मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके उसे अपदस्थ कर दे। विधायिका मन्त्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न भी पूछ सकती है।
(4) कार्यपालिका और व्यवस्थपिका में सहयोग
इस शासन प्रणाली में कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका में एक-दूसरे के प्रति पूर्ण सहयोग की है, क्योंकि मन्त्रिमण्डल के ही सदस्य विधानमण्डल के भी सदस्य होते हैं। इसी कारण कार्यपालिका उन कानूनों को बड़ी सरलता से पारित करवा लेती है, जिन्हें यह देश के लिए उपयोगी समझती है। इस प्रकार व्यवस्थापिका को देश की आवश्यकतानुसार कानून बनाने में भी सहायता मिलती है।