सप्तवर्षीय युद्ध के कारण, परिणामों तथा महत्व की विवेचना कीजिए।

सप्तवर्षीय युद्ध के कारण – मेरिया विरिजा ने विवश होकर सन् 1748 ई. में साईलेशिया पर प्रशा के अधिकार को स्वीकार तो कर लिया, किन्तु यह साईलेशिया को प्राप्त करने के लिए पुनः लालायित हुई। अतः इस समय यूरोप की राजनीति में कूटनीति क्रान्ति आरम्भ हो गई। यूरोप

प्रमुख रूप से दो खेमों में विखण्डित हो गया। एक खेमें में इंग्लैण्ड तथा प्रशा थे तथा दूसरे खेमे में फ्रांस, अस्ट्रिया, स्वीडन, स्पेन, नेपाल सादीनिया आदि थे अगस्त 1757 ई. को फ्रेडरिक ने बिना कोई सूचना दिए सैक्सनी पर आक्रमण कर दिया। 1757 ई. से 1763 ई. तक चलने वाले सप्तवर्षीय युद्ध के कई तत्कालीक सामरिक व राजनैतिक कारण थे जो निम्नवत् थे-

(1) साम्राज्यवादी राष्ट्रों की प्रतिष्ठा जिज्ञासा

एता शेपल की सन्धि (1748 ई.) से मेरिया ऑस्ट्रिया के साम्राज्य की शासिका बन गई परन्तु साइलेशिया का प्रदेश उसके हाथ से निकल गया तथा फ्रांस को कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। अतः इंग्लैण्ड व फ्रांस के मध्य औपनिवेशिक विस्तार के लिए भयंकर युद्ध की शुरूआत है। अतः स्पष्टतया ऑस्ट्रिया तथा प्रशा के शक्ति परीक्षण के साथ-साथ इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की प्रतिस्पर्धा भी इस युद्ध का प्रमुख कारण थी।

(2) ऑस्ट्रियन शासिका की अतिमत्वाकांक्षा

एला शेपल सन्धि के अनुसार मेरिया थिरिजा को उत्तराधिकार युद्ध के परिणामतथा साइलेशिया का प्रदेश प्रशा को सौंपना पड़ा जो उसके लिए असहनीय था। उसने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया। वह हैप्सबर्ग राजवंश को पुनः प्रतिष्ठित करना चाहती थी और यह प्रशा पर नियंत्रण से ही सम्भव था और इधर प्रशा भी अपनी बनी हुई प्रतिष्ठा को बरकरार रखना चाहता था। परिणामतया वह साइलेशिया को अपने अधिकार में बराबर रखना चाहता था। अतः इसी कारण ऑस्ट्रिया व प्रशा आपस में वैमस्यता की भावना को बलवती कर बैठे।

(3) गुटबन्दी

इस युद्ध के महत्वपूर्ण कारणों में एक कारण यह भी था कि यूरोपीय साम्राज्य के स्वार्थों की पूर्ति हेतु आपस में गुटबन्दी करने में लगे हुए थे। ऑस्ट्रिया साम्राज्ञी मेरिया बिरिजा ने फ्रांस व रूस के साथ वासाय की सन्धि कर ली जिसके अनुसार इंग्लैण्ड व फ्रांस के मध्य संघर्ष होने की स्थिति में ऑस्ट्रिया तटस्थता की नीति का अनुपालन करेगा। बदले में फ्रांस ने ऑस्ट्रिया की सीमाओं का अक्षुण रखते हुए उसके किसी भी क्षेत्र पर आक्रमण न करने का वचन दिया। दोनों देशों ने एक दूसरे को सुरक्षा का भी वचन दिया। इस प्रकार इस सन्धि ने प्रशा के ऑस्ट्रिया पर आक्रमण होने की स्थिति में फ्रांस की सहायता का वचन प्राप्त कर लिया, परन्तु इंग्लैण्ड द्वारा फ्रांस पर आक्रमण होने की स्थिति में ऑस्ट्रिया फ्रांस की सहायता के लिए वचन बद्ध न था। इस स्थिति ने इंग्लैण्ड व आस्ट्रिया की पुरानी दोस्ती को खत्म कर दिया तथा फ्रांस व ऑस्ट्रिया को एकीकृत कर दिया। सन् 1757 ई. में रूस की शासिका एलिजाबेथ ने इस सन्धि को स्वीकार कर लिया। इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए इंग्लैण्ड ने प्रशा के साथ वैस्टमिनिस्टर सन्धि की। जो इंग्लैण्ड के रक्षात्मक एवं आक्रमणात्मक रूख को दर्शाता था। इस सन्धि की शर्तों के अनुसार दोनों देशों ने जर्मनी की तटस्थता की रक्षा तथा किसी भी बाहरी आक्रमण का मिलकर विरोध करने का वचन दिया। इस प्रकार एलाशैपल की सन्धि के बाद की इन राजनैतिक परिस्थितियों ने यूरोप को पूरी तरह दो गुटों में बाँट दिया। एक ओर फ्रांस आस्ट्रिया व रूस थे और दूसरी ओर इंग्लैण्ड प्रशा। इन गुटबन्दियों ने प्राचीन आपसी सम्बन्धों में भारी फेर बदल कर दिया। इसी कारण से

( 4 ) आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष

इस युद्ध का एक परोक्ष कारण फ्रांसीसियों और अंग्रेजों का उपनिवेशों के लिए आपस में संघर्ष भी था। 1740 ई. से 1748 ई. में भारत में कई युद्ध हो चुके थे अमेरिका में भी दोनों के संघर्ष की समान स्थितियाँ थीं 1754 ई. से दोनों देशों में पुनः प्रतिद्वन्दिता प्रारम्भ हो गई।

(5) व्यक्तिगत कारण

युद्ध का एक कारण फ्रेडरिक महान का स्त्री विरोधी शासक होना था और ऑस्ट्रिया, रूस एवं फ्रांस की स्वी शासिकाओं के विरुद्ध वाक प्रगल्पता भी करता था। फ्रेडरिक महान ने समय-समय पर मेरिया थिरिजा, एलिजाबेथ एवं प्रेमिका नदाम पोमाइ पर दिये गए वक्तव्यों से ये अत्यन्त रूष्ट थी और वे सब उसे दण्ड देना चाहती थीं। इन सबने आपसी प्रतिद्वन्दिता को बढ़ाने का कार्य किया।

(6) तात्कालिक कारण

युद्ध का तात्कालिक कारण प्रशा द्वारा युद्ध की घोषणा किए बिना 1757 ई. में सैक्सनी पर आक्रमरण कर उस पर अधिकार कर लेना था। फ्रेडरिक की इस हरकत से रूस एवं स्वीडन आतांकित हो गए और शीघ्र ही दोनों पक्षों में युद्ध प्रारम्भ हो गया।

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युद्ध का महत्व एवं परिणाम

इस युद्ध के परिणामस्वरूप फ्रेडरिक के महान कुशल नेतृत्व में प्रशा के सैनिकों ने सैक्सिनों पर अधिकार प्राप्त करने प्राग की ओर प्रस्थान किया। किन्तु विवश होकर फ्रेडरिक को प्राग का घेरा उठाना पड़ा। क्योंकि अब तक रूस, ऑस्ट्रिया एवं फ्रांस की सेनाओं ने प्रशा को चारों ओर से घेर लिया। यह समय फ्रेडरिक के लिए अत्यन्त संकट का समय था, किन्तु फ्रेडरिक ने साहस व अपनी कुशलता का परिचय देते हुए अपने शत्रुओं की व्यूह रचना को छिन्न-भिन्न कर दिया। किन्तु अब फ्रेडरिक की सैन्य शक्ति अत्यन्त क्षीण हो गई थी। अतः उसे आने वाले 5 वर्षों में रक्षात्मक युद्ध करना पड़ा। ऑस्ट्रिया की सहायता करने वाले विभिन्न राष्ट्र परिस्थिति वश उससे अलग हो गए। जिससे विवश होकर मेरिया थिरिजा को प्रशा के साथ हार्ट्स वर्ग की सन्धि करनी पड़ी। हार्टसवर्ग की सन्धि के अनुसार साइलेशिया पर प्रशा के अधिकार को स्वीकारा गया। इस प्रकार 17 फरवरी 1763 ई. को इस सन्धि ने सप्तवर्षीय युद्ध का अन्त कर दिया। किन्तु इसके परिणाम अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। इसमें प्रशा की प्रधानता सम्पूर्ण यूरोप में हो गई। ऑस्ट्रिया के हैरसवर्ग वंश की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुँचा फ्रांस को लाभ न मिला। इंग्लैण्ड का एकाधिकार समुद्र पर हो गया। यही इस युद्ध का महत्वपूर्ण परिणाम था।

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