शिक्षा एवं जेन्डर सिद्धान्तों का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत कीजिये।

शिक्षा एवं जेन्डर सिद्धान्त: तुलनात्मक विश्लेषण

शिक्षा एवं जेन्डर सिद्धान्तों समाजीकरण सिद्धांतकार इस बात को स्पष्ट करते हैं कि शिक्षा को स्वयं को तार्किक मनुष्य के रूप में स्त्री व पुरुष में व्याप्त समानताएँ समझना महत्वपूर्ण हैं। हालांकि मायरा सेडकर (Mary Sadker), राबर्टा हॉल (Roberta Hall), बर्निस सेन्डलर (Bernice Sandler) आदि सिद्धांतकार कहते हैं कि स्त्रीत्व कोई प्राकृतिक अवस्था नहीं हैं बल्कि यह स्त्रियों को दी जाने वाली निम्नतर शिक्षा (inferior education) का परिणाम है। उन्हें बचपन से ही अपने रूप सौंदर्य के प्रति सचेत रहने को, स्वयं को कमजोर व असहाय मानने को बढ़ावा देने से, लड़कियाँ स्वयं ही दूसरों से स्वयं को कमतर मानने लगती हैं। अपने परिवार स्कूल तथा समाज से लड़कियाँ स्वयं के प्रति स्वीकृति भरे व्यवहार को सीखती हैं तथा मीडिया भी इस संदेश को पुनर्बलित करता रहता है कि स्त्रियाँ सजावटी वस्तुयें हैं (orientatal) न कि सक्रिय जब भी लड़कियाँ कुछ बोलना चाहती हैं तो उन्हें रोका जाता है तथा तुच्छ महसूस कराया जाता है, इसीलिये अधिकतर लड़कियाँ अपने वाक्यों को अनिश्चित अंत, “शायद”, “हो सकता है” “फिर” आदि पर खत्म करती हैं। लड़कियों में निहित निष्क्रियता, झिझक आदि उनके साथ किये गये व्यवहारों के कारण ही होती है।

यदि अभिभावक लड़कियों से लड़कों के समान ही जटिल तथा चुनौतीपूर्ण प्रश्न पूछें – तो सम्भव है कि लड़कियों में शर्मीलापन (self-effacing) दूर हो जाये। समाजीकरण सिद्धांतकार तर्क देते हैं कि यदि लड़कियों से एक तार्किक तथा सक्षम व्यक्ति की तरह व्यवहार किया जाये तो लड़कियाँ भी लड़कों की तरह ही स्मार्ट, स्वतंत्र, आत्मविश्वासी तथा रचनात्मक सिद्ध हो सकती हैं। उदारवादी नारीवादियों की तरह ही समाजीकरण सिद्धांतकार मानते हैं कि सभी के लिये एक जेन्डर-निरपेक्ष न्याय (Gender neutral justice) होना चाहिये तथा कोई व्यक्ति किसी भी जेन्डर का हो उस पर समान नियम लागू होने चाहिये। इसीलिये वर्षों से चले आ रहे लैंगिक भेदभाव को मिटाने के लिये सकारात्मक नीतियों व योजनाओं की अत्यन्त आवश्यकता है। इसीलिये कामकाजी महिलाओं के हित में उदारवादी नारीवादी ने विभिन्न प्रावधान करने

पर जोर दिया है जैसे- बच्चों की देखभाल के प्रावधान तथा मातृत्व/गोद लेने का अवकाश (maternity / adoption leave) जिससे कि स्त्रियों का कैरियर प्रभावित न हो क्योंकि शिशु के जन्म से स्त्रियों का कैरियर प्रभावित होता है जबकि पिता बनने से पुरुषों का कैरियर अप्रभावित रहता है। समान कार्य के लिये समान वेतन के लिये समान वेतन के लिये भी उदारवादी एकमत हैं। उनका मानना है कि विभेदनकारी नीतियों तथा अन्य बाधाओं को हटा देने से स्त्री व पुरुष साथ-साथ विकास कर सकेंगे। समाजीकरण सिद्धांतकार भी मीडिया दश्यों में, कक्षा गतिकी (Classroom dynamics) में, पाठ्योत्तर क्रियाओं में, किताबों तथा सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में भेदभाव (bais) देर करने पर जोर देते हैं। उनके अनुसार न्याय के लिये यह आवश्यक है कि लड़कियों को भी कक्षाओं में वही अवसर व अनुभव मिलने चाहिये जो कि लड़कों को दिये जाते हैं।

इस प्रकार से समाजीकरण सिद्धान्त मुख्य रूप से तीन महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाता है पहला, यह लड़कियों की कुछ क्रियाओं के प्रति स्वाभाविक रुझान होने की प्रवृत्ति को नहीं मानता तथा इस धारणा को ध्वस्त करता है कि यदि लड़कियाँ गणित, विज्ञान या खेलों में रुचि नहीं ले रही हैं तो उन्हें इन विषयों की शिक्षा देने की जरूरत भी नहीं है। यदि वे फिजिक्स में रुचि नहीं ले रही तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वे इसे “पुरुषवादी विषय” (masculine subject) मान रही हैं। या वे विश्वास करती हैं कि गृहणी (Home maker) की भूमिका में इससे कोई मदद नहीं मिलेगी। यह सब कोई कारण नहीं है कि लड़कियों को जेन्डर-निरपेक्ष विश्लेषण से दूर रखा जाये या फिर उन्हें संपूर्ण शिक्षा न दी जाये।

दूसरा मुद्दा जो समाजीकरण सिद्धांतकारों ने उठाया वह है स्कूलों तथा कॉलेजों में लड़के व लड़कियों के प्रति सुविधाओं में असमानता/संस्थाओं जैसे विद्यालयों स्तर पर कई ऐसे | उदाहरण होते हैं जहाँ विभेदीकरण तथा असामनता सामने आती हैं जैसे- खेल सुविधाओं में लड़कों के पास अधिक विकल्प तथा वित्तीय सुविधायें होना।

इस प्रकार से अन्य कई संस्थागत भेदभाव (institutional bais) सामने आते हैं जैसे स्कूल तक पहुँच तथा प्रवेश की समस्या, लड़कियों के लिये स्कूल में सहयोगी स्थितियाँ, तथा एक प्रतिनिधित्वकारी पाठ्यचर्या ।

अन्ततः, समाजीकरण सिद्धान्त महिलाओं के प्रति समाज द्वारा किये जा रहे भावुक बर्ताव (Sentimental treatment) की आलोचना करते हुये जेन्डर निरपेक्ष प्रतिमान बनाये जाने पर बल देना है।

यदि स्त्रियों के साथ पुरुष से अलग बर्ताव चाहे वह कार्यस्थल हो, खेल का मैदान हो, कक्षा हो, राजनीति हो या साहित्यिकार क्षेत्र हो, अपनी परिभाषा में लैंगिक विभेदकारी है तो शिक्षाशास्त्री स्त्रियों को निम्नतर सीढ़ी पर छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकते।

जेन्डर अन्तर सिद्धांतकार इसके विपरीत स्त्रियों को पब्लिक क्षेत्रों से सहमित कर देने वाले भावनात्मक बर्तावों की आलोचना नहीं कर पाते परन्तु यह स्त्रियों की उपलब्धियों को पुरुषों के उदाहरण से तुलना करके देखने की प्रवृत्ति की भर्त्सना जरूर करते हैं। इस प्रकार से वे “एक ”जैसा’ (sameness) होने के आधार पर “समानता” (Equality) नहीं चाहते। उनका कहना है

स्त्रियाँ, पुरुषों से बराबरी (cquality) कर सकती हैं परन्तु उनको पुरुषों के समान (identical) होने की आवश्यकता नहीं है। जेन्डर अन्तर सिद्धांतकार जेन्डर विविधता को प्रोत्साहित करते हैं। तथा स्त्रियों के मूल्यों को पुरुषों के समान या अलग स्वतंत्र क्षेत्र में पुनर्प्रतिष्ठित तथा सम्मानित करते हैं।

हालांकि जेन्डर-अन्तर सिद्धान्तकार, समाजीकरण सिद्धान्तकारों की तरह ही यह मानते हैं कि स्त्रियों से पब्लिक क्षेत्र (Public sphere) में भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये, परन्तु उनके अनुसार इसका तात्पर्य यह नहीं कि उनसे मानद पुरुष (Honorary man) की तरह बर्ताव किया। जाये। इसके बजाय उनका तात्पर्य है कि स्त्रियों व पुरुषों में अन्तर होना किसी भी प्रकार से उनके प्रति विभेदनकारी व्यवहार का आधार नहीं बनना चाहिये।

जेन्दर अन्तर सिद्धान्तकारों के अनुसार, निजी क्षेत्र के कौशलों (Private sphere Skills) तथा ज्ञान को उपेक्षित करना एक प्रकार का विभेदीकरण (discrimination) है तथा इसके अतिरिक्त स्त्रियाँ जो सम्बन्ध परक कौशल (relational skills) तथा अन्य गुण कार्यस्थल पर अपने साथ लेकर आती है, उसका महत्व पुरुषों से किसी मायने में कम नहीं है, हाँ मित्र जरूर है। चाहे घर हो या कार्यस्थल, वे तर्क देते हैं कि स्त्रियों के “विशिष्ट योगदानों” (disctinctive contributions) की सराहना की जानी चाहिये।

जेन्डर अन्तर सिद्धान्त के अनुसार “स्त्रीत्व” के गुणों को स्त्रियों के गुण कह कर बचाव करना नहीं है बल्कि उन मूल्यों को महत्त्व देना है जिन्हें थियो से जोड़कर देखे जाने के कारण हीन या निम्नतर माना जाता है।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात जिस पर यह लोग प्रश्न उठाते हैं वो है (Musculine) गुणों को सार्वभौमिक गुण या मूल्य के रूप में स्वीकारना, क्योंकि सार्वभौमिक-पर-पुरुष आधारित मानक (Universal-but-male-referenced standards) स्त्रियों से जुड़े विशिष्ट मूल्यों को दबा देते हैं या नजर अंदाज कर देते हैं। इस प्रकार से यह स्त्रियों के “सम्बन्धपरक महत्त्व’ (relational work) देने वाले कार्य को महत्त्व प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये स्कूल में शिक्षक जिस प्रकार का “सम्बन्ध करके ज्ञान” (relatoinal knwoledge) रखते हैं उसे अब एक “विशिष्ट ज्ञान” (knowledge) की तरह देखा जाता है न कि एक आदत (Knack or habit)।

एक तरफ जहाँ यह दोनों सिद्धान्तकार (समाजीकरण एवं जेन्डर अन्तर) उदारवादी नारीवाद की तरह यह मानते हैं कि परिवर्तन लाने के लिये व्यवस्था में रहकर सुधार लाने हैं वहीं वामपंथी तथा संरचना एवं विखंडन सिद्धान्तकार कहते हैं कि स्त्रियों के कार्य तथा उनसे जुड़े मूल्यों का अवमूल्यन नजरअंदाज या पक्षपात करने का परिणाम नहीं है बल्कि यह समाज के सन संबंधों का परिणाम है। न तो समाजीकरण नारीवाद तुलनात्मक रूप से समान कार्य के लिये समान वेतन की माँग करते हैं न ही अंतर नारीवाद द्वारा स्त्रियों के कार्य को सम्मानित दर्जा देने से कोई परिवर्तन आने वाला है, इसके विरोध में संरचनावादी सिद्धांतकार कहते हैं, चौक किसी भी स्त्री के कार्य को न तो पुरुष के कार्य जितना सराहा जाता है न कि वह उनके जितना उत्पादन तथा तार्किक भ्रम माना जाता है। क्योंकि सांस्कृतिक, आर्थिक, संस्थागत रूप से स्त्रियों को उ स्थिति बनाये रखने का (Status Quo) प्रयास किया जाता है अतः किसी भी नियमों की दुर्द देने या आदर्शो की बात करने से परिवर्तन नहीं आ सकता क्योंकि यह सभी संस्थायें शक्तिशाली हैं तथा इनके पास सत्ता है। वास्तविक परिवर्तन केवल तभी संभव है जब प्रभुत्वशाली वर्ग की

सत्ता तथा सुविधाओं को छिन्न-भिन्न किया जायेगा, क्योंकि संरचनावादी नजरिये से देखने पर सत्ता (power) एक सम्बन्धित अवधारणा नजर आती है जिसका तात्पर्य है दूसरों पर सत्ता । इसलिये स्त्रियों को यदि एक समूह के रूप में सत्ता चाहिये तो, पुरुषों को एक समूह के रूप में अपनी सत्ता खोनी पड़ेगी। हालांकि स्त्री एक व्यक्ति के रूप सत्ता तक पहुँच बना सकती हैं परन्तु समूह के रूप में महिलायें तब तक पुरुष के बराबर नहीं पहुँच सकती जब तक व्यवस्था को मूलभूत रूप से नहीं। बदला जाता। इसी के समान्तर पर थोड़ा भिन्न विचार रखते हुए विखंडन सिद्धांतकार कहते हैं। जेन्डर तथा योग्यता को निर्धारित करने वाले सामाजिक विमर्शो पर प्रश्न उठाने से पुरुष की लाभकारी स्थिति को धक्का पहुंचेगा। इस प्रकार से पुरुष हमेशा उस परिवर्तन का विरोध करेगा। जिससे उनकी सत्ता या सुविधा को नुकसान पहुँचता हो। विखंडन सिद्धांतकार उन विमर्शो पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जो हमारे विचारों तथा रुझानों को अच्छा और प्राकृतिक अपनाने को संगठित करते हैं जैसे भाषा, दृश्यचित्र, सांस्कृतिक अभ्यास तथा “master narratives” इत्यादि । संरचनात्मक सिद्धांतकार उन तरीकों को स्पष्ट करते हैं जिसमें भौतिक, संस्थागत तथा दूसरे सत्ता संबंध सामाजिक लाभ को कुछ हाथों में ही दे देते हैं (सामाजिक लाभ जैसे धन, स्वास्थ्य, आराम, विद्धत्ततापूर्ण सम्मान, सांस्कृतिक सत्ता तथा औद्योगिक नियंत्रण आदि) ।

एक ओर जहाँ समाजीकरण सिद्धांतकार मानते हैं कि प्रत्येक स्त्री की जीत समूची नारी जाति की जीत के रूप में देखने से विकास होगा वहीं संरचनावादियों का कहना है कि व्यक्तिगत रूप से एक स्त्री को सत्ता तक पहुंच देने से स्त्री व पुरुष के सत्ता संबंधों को नहीं बदला जा सकता। इस प्रकार की प्रतीकात्मक जीत के प्रभाव को भावुक रूप से स्वीकारना तथा अपवाद के रूप में एक दो उदाहरण देने से यह महसूस होता है कि हमारी व्यवस्था खुली हुई है, परन्तु वास्तव में इससे व्यवस्था या तंत्र (System) में कोई बदलाव नहीं आता। बल्कि इस तरह के उदाहरणों से यथास्थिति (Status Quo) बनाये रखने में ही मदद मिलती है। सत्ता के पितृसत्तात्मक आधार कुछ प्रतिशत स्त्रियों को सत्ता के पद या सुविधा प्रदान कर सकते हैं, परन्तु वे इसे अपनी शर्तों तथा नियमों पर ही करने दे सकते हैं। जो कोई भी सुविधायें एक पितृसत्तात्मक पूँजीवाद; व्यक्तिगत कार्यरत महिला को देता है, फिर भी वह मानकर चलता है कि अधिकतर स्त्रियाँ मुफ्त या कम मूल्य वाला सेवा कार्य करती रहेगी। यहाँ तक कि वो स्त्रियाँ जो घर के बाहर कार्य करती हैं वे भी घर पर आकर “द्वितीय पारी” का मुफ्त कार्य करती हैं (Second, unpaid shift)

इस प्रकार से संरचनावादी, स्त्री-पुरुष के व्यक्तिगत संबंधों को देखने के बजाय इस पर ध्यान केन्द्रित करते हैं कि किस प्रकार व्यवस्था स्वयं की सत्ता संबंधों को संगठित करती हैं तथा उन्हें आकार देती हैं।

संरचनावादियों के शैक्षिक योगदानों में, इसका उन मूल्यों को महत्त्व देना है जो उदारवादी विचारधारा से बाहर आते हैं, जिसमें प्रभुत्वशाली लोगों द्वारा दमित लोगों की उपलब्धियों को महत्त्व दिया जाता है, महिलाओं के कार्य का संस्थागत रूप से दोहन किया जाता है। यहाँ पर शिक्षा का कार्य न केवल विद्यमान असमानताओं को उदारपूर्वक बताना है बल्कि इसको दमनकारी संबंधों को बनाये रखने वाले स्त्रीत्व तथा पुरुषत्व के मूल्यों को भी संबोधित करना होता है।

हालांकि संरचनावादी तथा विखंडन सिद्धान्तकार दोनों ही सत्ता को संबंधित करके देखते है परन्तु वे सत्ता को परिभाषित भिन्न प्रकार से करते हैं।

विखंडन सिद्धान्तकार मानते हैं कि सत्ता कोई स्थिर वस्तु नहीं बल्कि यह गतिशील हैं। इसलिये इसे प्रश्न करना तथा बदलना काफी कठिन है। यह सत्ता को न तो अधिकार के रूप में

देखते हैं न ही एक समूह या व्यक्ति का दूसरे समूह या व्यक्ति पर आरोपित करके देखते हैं बल्कि यह मानते हैं कि यह एक अतंक्रिया की प्रकृति है। मिशेल फूको (Michel Foucault) के शब्दों में “सत्ता का संचारण होता है” (power circulates ) । सत्ता कभी भी किसी के हाथों में नहीं होती है और न ही इसे किसी सुविधा या धन में बदला जा सकता है। फूकों कहते हैं कि “व्यक्ति सत्ता के वाहक हैं न कि इसके उपयोगकर्ता अतः सत्ता हमेशा बदलाव की स्थिति में रहती हैं।” चूँकि सत्ता हमेशा निर्माण की स्थिति में हैं अतः सत्ता के सम्बन्धों के इतिहास से सत्ता की किसी भी नई कार्यशैली का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। विखंडनवादी इस प्रकार किसी भी कदम को “गलत” कहने के बजाय, सत्य पर सभी प्रकार के प्रश्न उठाते रहते हैं। इस प्रकार से मुख्यतः वह ज्ञान तथा ज्ञान के स्रोतों पर प्रश्न उठाते रहते हैं। वे पूछते हैं कि कैसे भाषा यह सिद्ध करती हैं कि हम जो कह रहे है वह सत्य है? क्यों हम कुछ पहचानों, स्थितियों तथा सम्बन्धों को प्राकृतिक या स्वाभाविक स्वीकार कर लेते हैं तथा किस प्रकार से हमारी संरचनायें ये बताती है कि जो भी स्वाभाविक नहीं है वह “विदलित’ (deviant) या “अस्वाभाविक” हैं या “दूसरा ” (“other”) है। इसीलिये विखंडन सिद्धांत, नस्ल या जेन्डर के सिद्धान्तों को स्वयं में महत्वपूर्ण मानने के बजाय उन्हें भाषा तथा संचार में कैसे प्रयुक्त किया गया है यह महत्त्वपूर्ण मानते हैं। यह “प्राकृतिक” नहीं है बल्कि यह तुलना से उत्पन्न हो रहा है जिसमें जो “आदर्श” नहीं है उससे ही अर्थ निकलते हैं। न केवल बल्कि दूसरी अन्य बातें जिन्हें हम प्राथमिक रूप से पहचानते या परिभाषित करते हैं जैसे नस्ल, क्षेत्रीयता, लैंगिक पहचान यह सब केवल अभिव्यक्तियाँ (Performances) हैं तथा इन अभिव्यक्तियों से परे कोई चीज अस्तित्व में नहीं है। उदाहरण के लिये डिज्नीजेंड में काल्पनिक अतीत को गढ़ा गया है। तथा यह उनकी नकल है जिसकी कोई सत्यता नहीं। विखंडना सिद्धान्तकार सभी प्रकार की द्वैधता (Dichotomy) पर सवाल उठाते हैं। चाहे वह स्त्री/पुरुष द्वैधता ही क्यों न हो।

विखंडन सिद्धांतकार हालांकि परिवर्तन के लिये कोई निश्चित योजना नहीं दे पाते परन्तु वे शिक्षाविदों के लिये जेन्डर समानता लाने के कई उपकरण जरूर दे देते हैं। इन उपकरणों के यह विश्लेषण शामिल हैं कि क्यों शैक्षिक रूप से उन्नत कक्षायें भी लैंगिक भेदभाव (Sexism) को दूर नहीं कर पा रही है? इसमें विभिन्न जेन्डर के पहलू तथा सम्बन्धों जैसे नस्ल, वर्ग तथा – नृजातीय का विश्लेषण भी निहित है। अंततः विखंडन सिद्धान्तकार मानते हैं कि अर्थपूर्ण परिवर्तन यहाँ तथा अभी संभव है परन्तु यह क्रांतिकारी होने के बजाय उद्भावित होगा तथा यह तभी संभव है जब हम सहज, स्वाभाविक तथा प्राकृतिक दिखने वाले संबंधों पर प्रश्न उठा सकेंगे तथा उन्हें पुनसंरचित करने की कठिनाइयों को भी सहन कर सकेंगे। इससे सम्भव है कि हम एकदम नये । प्रकार के जेन्डर सम्बन्धों में प्रवेश कर पायें जिसकी वर्तमान में कल्पना भी असंभव हो।

निष्कर्ष एक तरफ जहाँ समाजीकरण सिद्धान्त, लड़कियों व स्त्रियों को सम्मिलित करने के लिये वर्तमान में विद्यमान पुरुषत्व के लक्ष्यों तथा प्रतिमानों को उन्नत करने की बात करते हैं वहीं संरचनावादी तथा विखंडन नारीवाद जेन्डर तथा अन्य प्रकार की असमानता को प्रकाश में लाने की बात करते हैं जिससे उन्हें दुबारा प्रस्तुत तथा क्रियान्वित न किया जा सके। वहीं जेन्डर अन्तर सिद्धान्त, विद्यालयों में एक नयी तथा स्वतंत्र नीति लाने पर जोर देते हैं। शैक्षिक परिवर्तन में इसका सर्वाधिक योगदान इसकी बैकल्पिक दृष्टि ही हैं, जिससे स्कूलों में सकारात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके। परन्तु इस वैकल्पिक दृष्टि में अन्य बहुत से मूल्य एवं व्यवस्थायें आधारित है। जिन्हें प्रश्न किया जाना आवश्यक है।

मानवीय संसाधनों का शिक्षा में महत्त्व स्पष्ट करें।

सबसे सरलतम विश्लेषण समाजीकरण सिद्धान्तकारों का हैं जो कहते हैं कि ‘स्त्रीत्व’ (“femininity”) का तात्पर्य द्वितीयक दर्जे का प्राणी होना है। चूँकि यह पुरुषत्व के आधीन है। अतः उन्हें पुरुषों के बराबर लाने के लिये अवसर देने ही होंगे। संरचनावादियों के अनुसार घरेलू मूल्य (domestic values) पूरी तरह से ‘सेवा मूल्य’ (service values) हैं; इनका कार्य आदमियों, परिवारों तथा सार्वजनिक क्षेत्रों को सहारा देना है। उक्त सभी विश्लेषण हमें हालांकि जटिल मुद्दों को समझने की समझ प्रदान करते हैं परन्तु कोई एक भी प्रश्न का पूरा उत्तर प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं। परन्तु एक साथ मिलकर वे प्रभावशली दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

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