सिकन्दर और पुरू के मध्य सम्बन्ध – सिकन्दर और पोरस (पुरू) युद्ध सिकन्दर ने तक्षशिला में पुरू (पोरस) के पास दूत | भेजा और कहा कि पुरु उसकी सेवा में पहुंच कर उसका अधिपत्य स्वीकार करे पुरु ने दूत से ने | कहला भेजा कि केकैय राजा पुरू, विदेशी नरेशों का स्वागत रणभूमि में ही करता है। युद्ध के लिए | सिकन्दर की सेनाएँ झेलम नदी के पश्चिमी किनारे पर पहुँच गई। राजा पुरु की सेनाएँ भी नदी के दूसरे तट पर इकट्ठी हो गई महीनों तक दोनों सेनाएँ झेलम के तट पर आमने-सामने पड़ी रही, | किन्तु सिकन्दर में इतना साहस नहीं था कि वह विशाल और लड़ाकू पुरु की सेना के ऊपर आक्रमण कर दे। एक अंधेरी रात जब काफी वर्षा हो रही थी। सिकन्दर ने अपनी सेना को 20 मील उत्तर ले जाकर चुपचाप सिन्धु नदी पार करके पुरु पर आक्रमण कर दिया। पानी अधिक बरस जाने के कारण कीचड़ में पुरु के रथ और हाथी बेकार हो गए। हाथियों के मड़क जाने से पुरु की सेना में भगदड़ 1 मच गई। सेना के तितर-बितर हो जाने से पुरू बन्दी बना लिया गया। बन्दी पुरू से सिकन्दर ने यह प्रश्न किया कि तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाय? इस पर पुरुष ने उत्तर दिया कि “जैसे एक राजा दूसरे राजा के साथ व्यवहार करता है।” इससे सिकन्दर बहुत खुश हुआ और उसने पुरू को अपना मित्र बना लिया।
कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि पर टिप्पणी लिखिए।
पुरुष से मित्रता सिकन्दर की एक कूटनीतिक विजय थी। इस मित्रता के कारण अन्य क्षेत्रों की विजय में उसे पुरु की सेना और हाथियों का सहयोग मिला। इसके बदले पुरु को अपने राज्य पर (सिकन्दर के आधीन रहकर ) शासन करने का अधिकार मिला तथा अन्य कुछ जीते गए क्षेत्र भी उसके आधीन हो गए। विजित क्षेत्रों के लिए सिकन्दर ने तीन क्षत्रप नियुक्त किए. फिलिप, पोरस और पिथन झेलम और व्यास के बीच का क्षेत्र पोरस के नियन्त्रण में था सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् उसका साम्राज्य उसके क्षत्रपों में विभाजित हो गया, जिनका आपस में युद्ध छिड गया। फिलिप से युद्ध के दौरान उसके सेनापति यूडेमस के हाथों 317 ई.पू. में पुरु की मृत्यु हुई।