उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ‘अनुचित व्यापार व्यवहार’ से “क्या आशय है?

अनुचित व्यापार व्यवहार

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में जून 1993 को किए गए एक महत्वपूर्ण संशोधन के अन्तर्गत इस शब्द की परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि ऐसी अनुचित विधि या कपटमय व्यवहार, जो कि किसी व्यापारी द्वारा वस्तु एवं सेवा के विक्रय, उपयोग, आपूर्ति अथवा सम्वर्द्धन हेतु अपनाया जाता है, अनुचित व्यापार-व्यवहार कहलाता है। 2 (1) (r) (1-5)]

इन अनुचित व्यापार-व्यवहारों के अन्तर्गत उपरोक्त धारा 2 की उपधाराओं में निम्न बातों को सम्मिलित किया गया है –

(1) जनता के सम्मुख मिथ्या प्रस्तुतीकरण

किसी भी प्रकार का लिखित, मौखिक, दृश्यगत, ऐसा प्रस्तुतीकरण जो कि –

  1. ऐसा प्रचार करना कि कोई सेवा किसी विशेष किमया श्रेणी की है, जबकि ऐसा नहीं है,
  2. बिना किसी आधार पर वस्तु की उपयोगिता, निष्पादन क्षमता या जीवनकाल के बारे में जनता के समक्ष मिथ्या प्रचार करना,
  3. ऐसा प्रचार करना कि माल एक विशेष किस्म या प्रमाप का है, जबकि ऐसा नहीं है..
  4. किसी पुरानी वस्तु को नई वस्तु बताना,
  5. किसी वस्तु के विक्रय मूल्य के बारे में जनता को गलत वर्णन करना, उपयोग के लिए तत्पर हो जाए
  6. किसी वस्तु या सेवा के बारे में ऐसा प्रचार करना कि दूसरा पक्ष (ग्राहक) उसके
  7. किसी वस्तु, सेवा या माल के बारे में विश्वसनीय रूप से गारन्टी देना, जबकि ऐसा नहीं है,
  8. किसी दूसरे व्यापारी की वस्तुओं, सेवाओं अथवा व्यवसाय को बदनाम करने हेतु तथ्यों को तोड़-मरोड़कर गलत रूप में प्रस्तुत करके, उसकी ख्याति को हानि पहुंचाना।

(क) वस्तु खराब हो जाने पर नई वस्तु देने, उसके किसी भाग की निर्धारित अवधि में निःशुल्क मरम्मत करने का वचन, आश्वासन या गारण्टी भ्रमयुक्त होना।

इस अधिनियम में इस कथन के सन्दर्भ में कहा गया है कि कोई भी कथन, आश्वासन या गारन्टी उस समय अनुचित व्यापारिक व्यवहार कहलाएगी, जबकि

  • (क) यदि कोई व्यापारी माल को सस्ती दरों पर बेचने का विज्ञापन जनता में प्रकाशित कराता हो. किन्तु बेचने की इच्छा नहीं रखता हो,
  • (ख)वस्तु के विक्रय के लिए प्रदर्शन के स्थान या डिब्बे पर लिखा हो और ऐसा कार्य विक्रय के लिए नहीं हो,
  • (ग) यदि विक्रेता ने माल पर कोई पुरस्कार घोषित किया हो, किन्तु क्रेता को देने की इच्छा नहीं हो,
  • (घ) माल के विक्रय में वृद्धि करने के उद्देश्य से कोई प्रतियोगिता या लॉटरी निकालने की घोषणा करता हो, किन्तु ऐसा कार्य निर्धारित तिथि पर नहीं करता हो,
  • (ड) यदि वस्तु पर कोई गिफ्ट आदि निःशुल्क देने की घोषणा की हो और उस भेंट का मूल्य, वस्तु के कुल मल्य में पहले से ही जोड़ दिया गया हो,
  • (च) ऐसी कोई भी वस्तु, जो सक्षम अधिकारी द्वारा निर्धारित मापदंड के योग्य घोषित नहीं की गई है और विक्रेता उपभोक्ता को उसके प्रयोग का विश्वास दिलाता है तथा जिसके प्रयोग से क्षति होती हो, भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के द्वारा सितम्बर, 1988 में दिए गए एक निर्णय के अनुसार, ‘कृषि को नुकसान पहुँचे, इस पर विरोध व्यक्त करते हुए “निम्न-स्तरीय बीजो (Lower standard or defective seeds) विक्रय को भी अनुचित माना है।
  • (छ) किसी वस्तु यासेवा के सम्बन्ध में उसके स्तर, गुणवत्ता (Quality), मात्रा (Quantity) या मिश्रण-सूत्रों (Compound Formulae) आदि की कोई भी गलत सूचना, उपभोक्ताओं को देना अनुचित व्यापारिक व्यवहार माना गया है।

(2) पुरस्कारों के प्रस्ताव

यदि कोई व्यापारी कुछ न देने के उद्देश्य से ग्राहकों को निःशुल्क भेंट या पुरस्कार देने के लिए प्रस्ताव रखता है और ग्राहकों से इस प्रकार के प्रस्ताव के लिए मूल्य वसूल करता रहता है तो इसे अनुचित व्यापार-व्यवहार कहा जाएगा।

(3) लॉटरी इत्यादि की प्रतियोगिताएँ आयोजित करना

कोई भी भाग्य का खेल या लॉटरी अवैध मानी गई है। इस आधार पर यदि व्यवसाय में वृद्धि करने के लिए ये प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं तो यह अनुचित व्यापार व्यवहार कहलाएंगी और अवैध होंगी।

(4) अनुचित विक्रय के विज्ञापन

यदि कोई व्यापारी न्यूनतम मूल्यों के आधार पर वस्तुएँ बेचने का विज्ञापन देता है, जबकि वह ऐसे कार्य के लिए कोई निश्चित अवधि सीमा भी प्रकट नहीं करता है और न ही उसकी इच्छा न्यूनतम मूल्यों पर बेचने की होती है, तो उस अवस्था में इसे अनुचित व्यापार व्यवहार कहा जाएगा।

(5) माल की जमाखोरी या माल का नष्ट किया जाना

किसी व्यापारी द्वारा बाजार में माल की आपूर्ति में कृत्रिम कमी कर देना या जानबूझकर माल को नष्ट करके आम जनता को परेशानी मे डाल देना अनुचित व्यापार व्यवहार के अन्तर्गत आता है।

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(6) सुरक्षा प्रमाप

वस्तु की उपयुक्तता, डिजाइन, स्वरूप तथा पैकिंग (आवेष्टन) इत्यादि ‘भारतीय मानक संस्थान’ द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। यदि मानकों का पालन नहीं किया जाता है तो यह अनुचित व्यापार-व्यवहार कहलाएगा।

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