उपकल्पना क्या है? इसके स्रोत बताइये। एक अच्छी उपकल्पना के गुण एवं | लक्षणों की विवेचना कीजिए।

उपकल्पना क्या है? – अनुसंधान एक प्रकार की यात्रा है। जिस प्रकार यात्रा किसी विशेष स्थान से आरम्भ होती है उसी प्रकार अनुसंधान भी किसी बिन्दु से आरम्भ होता है। इस बिन्दु को हम उपकल्पना कह सकते हैं। अनुसंधान आरम्भ करने से पूर्व पूर्वानुमान लगाना होता है। इस पूर्वानुमान को जो हमें अनुसंधान की दिशा प्रदान करता है, उपकल्पना कहा जा सकता है। उपकल्पना का अनुमान के आधार पर निर्माण किया जाता है, अतः अनुसंधान के दौरान इसमें संशोधन किया जा सकता है।

लुण्डवर्ग के अनुसार “उपकल्पना एक अनिश्चित सामान्यीकरण है जिसकी सत्यता की परीक्षा अभी शेष रहती है। अपने प्राथमिक स्तरों पर कोई संकेत, अनुमान, काल्पनिक विचार अथवा इच्छा या जो कुछ भी बात सर्वेक्षण का आधार बनती है, हो सकती है।”

गुडे एवं हॉट के अनुसार- “निगमन का निरूपण चाहे जैसा भी हो उपकल्पना की रचना करता है यदि यह सत्यापित किया जाय तो सैद्धान्तिक रचना का एक अंग बनता है।” श्री पी. वी. रंग के अनुसार- “एक कार्यवाहक विचार जो उपयोगी खोज का आधार बनता है, कार्यवाहक उपकल्पना माना जा सकता है।”

उपकल्पना के प्रकार

व्यक्ति का सामाजिक जीवन अत्यन्त विषम है, अतः जितनी सामाजिक समस्याएँ हो सकती हैं उतनी ही उपकल्पनाएँ भी हो सकती हैं। गुडे एवं हॉट ने उपकल्पनाओं को निम्नलिखित

तीन श्रेणियों में विभाजित किया है :-

  1. वे उपकल्पनाएँ जो परीक्षात्मक एकरूपता प्रदर्शित करती हैं।
  2. वे उपकल्पनाएँ जो तार्किक सम्बन्धों के अस्तित्त्व को प्रदर्शित करती हैं।
  3. वे उपकल्पनाएँ जो विवेचनात्मक परिवर्तनशीलता के सम्बन्ध को प्रदर्शित करती है।

उपकल्पनाओं के स्रोत

उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि उपकल्पना एक ‘विचार’ होता है। यह विचार कैसे उत्पन्न होता है? विचार व्यक्तिगत अनुभूति से उत्पन्न होता है जबकि सामाजिक मान्यताएँ तथा व्यक्तिगत अनुभव भी उपकल्पना का निर्माण करते हैं। उपकल्पनाओं के मुख्य स्रोत निम्नलिखित होते हैं:-

1.वैज्ञानिक सिद्धान्त

जिन वैज्ञानिक सिद्धान्तों का निर्माण हो चुका है अथवा दूसरे शब्दों में जिनका प्रतिपादन हो चुका है उनके ऊपर भी फिर से खोज की जा सकती है। सामान्यीकरण की फिर से परीक्षा की जा सकती है। वैज्ञानिक सिद्धान्त के किसी एक पक्ष को लेकर फिर से अनुसंधान किया जा सकता है।

2. सामान्य संस्कृति

प्रत्येक समाज की संस्कृति भिन्न-भिन्न होती है। उस संस्कृति का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है, अतः उपकल्पना संस्कृति से प्रभावित होती है। व्यक्ति एक विशेष प्रकार का व्यवहार क्यों करता है ? इसका उत्तर उसके सांस्कृतिक पर्यावरण में मिलेगा। भारतीय संस्कृति में ‘सादा जीवन उच्च विचार’ और पाश्चात्य संस्कृति में ‘व्यक्तिगत सुख’ प्रमुख धारणा होती है। विभिन्न समाजों में इन्हीं धारणाओं के आधार पर उपकल्पना बनायी जा सकती है। इस प्रकार सांस्कृतिक पृष्ठभूमि उपकल्पना के निर्माण का महत्वपूर्ण स्रोत है। ये सांस्कृतिक तत्त्व उपकल्पना के आधार होते हैं।

3. समरूपता

समाज में कोई दो तथ्य ऐसे हो सकते हैं, जिनमें समानता होती है। पशु और मनुष्य कुछ अवसरों पर समान रूप से व्यवहार करते हैं। इस प्रकार इन समान तथ्यों के आधार पर उपकल्पना का निर्माण किया जा सकता है। इस विषय में यह कहा जा सकता है कि समरूपता उपकल्पनाओं के निर्माण तथा घटना में किसी चलाऊ नियम की खोज में अत्यन्त उपयोगी पथ प्रदर्शक होते हैं।

4. व्यक्तिगत अनुभव

समाज में भिन्न-भिन्न स्वभाव के व्यक्ति होते हैं। उनके अपने व्यक्तिगत अनुभव उपकल्पना के निर्माण में सहायक होते हैं। इसका कारण यह होता है कि समाज में एक ही तथ्य को व्यक्ति भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं। माल्थस और न्यूटन आदि के सिद्धान्त व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर ही निर्मित किये गये थे।

एक अच्छी उपकल्पना के गुण (लक्षण)

सभी उपकल्पनाएँ अनुसंधान के लिये उपयुक्त नहीं होतीं। एक अच्छी उपकल्पना में निम्नलिखित गुण विद्यमान होने चाहिये :-

1. स्पष्टता – एक अच्छी उपकल्पना में स्पष्टता होनी चाहिये। स्पष्ट होने से तात्पर्य यह है कि वह ठीक से परिभाषित की जा सके। इसके लिये उपकल्पनाओं की अवधारणाओं की स्पष्ट परिभाषा होनी चाहिये। ये अवधारणाएँ सामान्य होनी चाहिये।

2. विशिष्टता – उपकल्पनाओं का स्वरूप सामान्य नहीं होना चाहिये। समाज के किसी विशेष पक्ष का अध्ययन श्रेष्ठ होता है, अतः उपकल्पना विशिष्ट होनी चाहिये।

3. सरलता – उपकल्पना सरल होनी चाहिये। इसे विषय के अनुकूल भी होना चाहिये। जिन कारणों से उपकल्पना का निर्माण किया गया है वे स्पष्ट तथा निश्चित होनी चाहिये। पी० वी० यंग ने इस सन्दर्भ में लिखा है कि- “अनुसंधानकर्ता को अपनी समस्या के विषय में जितनी अधिक सूझ होगी, उतनी ही अधिक सरल उसकी उपकल्पना भी होगी।”

4. संक्षिप्तता- उपकल्पना संक्षिप्त होनी चाहिये। इसका संदर्भ वैज्ञानिक होना चाहिये। संक्षिप्त होने से अनुसंधान में सरलता रहती है।

5. अनुभव के आधार पर- उपकल्पना का निर्माण व्यक्तिगत अनुभव अथवा उपलब्ध ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिये।

6. अनुसंधान की उपलब्ध प्रणालियों से सम्बन्धित – उपकल्पना का अनुसंधान को उपलब्ध प्रणालियों से संबंधित होना चाहिये। यदि ऐसा नहीं होगा तो उसका परीक्षण आसानी से नहीं हो सकेगा। यदि उपकल्पना के परीक्षण के लिये प्रणालियाँ उपलब्ध नहीं हैं तो उपकल्पना अव्यावहारिक हो जायगी। इस विषय में गुडे तथा हॉट का कथन है-“जो सिद्धान्तशास्त्री यह ज्ञान नहीं रखता कि उसकी उपकल्पना की परीक्षा के लिये कौन-कौन सी प्रणालियाँ उपलब्ध हो सकती है वह व्यावहारिक प्रश्नों के निर्माण में सफल नहीं होता है।”

7. पूर्व निर्मित सिद्धान्तों का आधार – उपकल्पना ऐसी होनी चाहिये जिसका सम्बन्ध सिद्धान्तों से हो तथा जिनका निर्माण पहले से हो चुका हो। पृथक् उपकल्पनाओं से विज्ञान का विकास उचित ढंग से नहीं होता। उचित वैज्ञानिक विकास के लिये यह आवश्यक है कि उपकल्पनाओं से सिद्धान्त बनाये जायें तथा सिद्धान्तों से ही उपकल्पनाओं का निर्माण किया जाये।

इस प्रकार केवल वे ही उपकल्पनायें वैज्ञानिक अध्ययन का विषय बनती है, जिनमें उपर्युक्त गुण विद्यमान हों। जिस उपकल्पना की सत्यता का परीक्षण न हो सके वह व्यर्थ है।

उपकल्पना का महत्त्व

एक अच्छी उपकल्पना अनुसन्धान की आधारशिला होती है, अतः उपकल्पना का अनुसंधान में विशेष महत्त्व होता है। उपकल्पना का निम्नलिखित महत्त्व है-

1.उपकल्पना ही बताती है कि अनुसंधान का उद्देश्य क्या है

उपकल्पना से हमें यह ज्ञात होता है कि अनुसंधान का क्या उद्देश्य है। उपकल्पना हमें यह बताती है कि हम किन तथ्यों को प्राप्त करना चाहते हैं तथा हम क्या परीक्षण करना चाहते हैं। गुडे तथा हॉट के शब्दों में “एक उपकल्पना यह बताती है कि हम क्या खोज रहे हैं।”

2. अनुसंधान की दिशा उपकल्पना के द्वारा ही की जाती है

अनुसंधानकर्त्ता जब अपने अनुसंधान के लिये निकलता है तो उसका आधार उसकी उपकल्पना ही होती है। उसे उपकल्पना से प्रारम्भिक जानकारी मिलती है तथा उसे आगे बढ़ाने का अवसर भी मिलता है। इस प्रकार उपकल्पना उस दिशासूचक यंत्र के समान है जो किसी यात्री को उसकी दिशा की सूचना देता है।

परिस्थितिकी क्या है?

3. तथ्यों को एकत्रित करने में उपकल्पना सहायता करती है

उपकल्पना के आधार पर ही सामग्री एकत्रित की जाती है। इस विषय में पी० वी० यंग का कथन उल्लेखनीय है- “उपकल्पना के प्रयोग से आधार रहित तथा उन आँकड़ों के बिना सोचे संकलन में नियंत्रण होता है जो बाद में अप्रासंगिक सिद्ध हो।”

4. परिणाम निकालने में सहायक

उपकल्पना निष्कर्ष निकालने में सहायक होती है। इसका कारण यह है कि उपकल्पना अध्ययन के क्षेत्र को सीमित कर देती है। उपकल्पना वैज्ञानिक सिद्धान्त तथा अनुसंधान को मिलानेवाली कड़ी है। उपकल्पना के अभाव में एकप्रकार से निरुद्देश्य विचारहीन भटकना है।”

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