वानप्रस्थ आश्रम पर टिप्पणी लिखिए।

मनुष्य जीवन के तृतीय चरण को वानप्रस्थ आश्रम कहा जाता था जिसका समय 50 वर्ष से लेकर 75 वर्ष तक माना गया है। इस आश्रम में मनुष्य गृह को त्याग कर वन में चला जाता था, जहाँ इन्द्रियों को वश में रखकर एकान्त में आध्यात्मिक साधना एवं तपस्या करता था। वह जंगल में भूमि पर शयन तथा कन्द-मूल के माध्यम से उदर की पूर्ति करता था। वानप्रस्थ व्यक्ति की जीवनचर्या काफी कठोर होती थी। उसे अपना घर तथा गाँव छोड़कर जंगल में जाना पड़ता था। उसे अपने गृहस्थ जीवन से हर सम्बन्ध तोड़ना पड़ता था। एक वानप्रस्थी के लिए मांस तथा मिठाई जैसे खाद्यौ का सेवन वर्जित था।

वह कन्दमूल फल खाकर ही जीवन यापन कर सकता था। वानप्रस्थ गाँव में पैदा हुए कन्दमूल फल को नहीं ग्रहण कर सकता था। इन चीजों को उसे अपने यत्न से प्राप्त करना होता था। वानप्रस्थ व्यक्ति वानप्रस्थ आश्रम में ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करता था तथा ब्रह्मचर्य के पालन के साथ-साथ वह सादगी का जीवन व्यतीत करता था। इस प्रकार से इस आश्रम एक कठोर एवं अनुशासित आश्रम था।

सामाजिक प्रस्थिति क्या है? विवेचना कीजिए।

इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि वानप्रस्थ आश्रम मोक्ष का काम करता था। अतएवं वानप्रस्थ नियमों का पालन करते हुए यदि व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी तो वह मोक्ष प्राप्त करता था।

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